सीमित जीवन को मैंने अपने जीवन के आध्यात्मिक मन के आधार पर कुछ लेख प्रस्तुत किए हैं जो वास्तविक रूप से मनुष्य के जीवन में घटित होते हैं एवं महसूस करते हैं !
दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है। इसमें बताया ग
यह किताब उस सफर की कहानी है जिसमें मुसाफिर के पैदा होते ही उसका गहन संघर्ष शुरू हो जाता है। बचपन के कुछ अच्छे दिन गुजरते ही मानो उसकी जिंदगी मैं बहुत बड़ा ग्रहण लग जाता है। उसकी माता उसे एक दिन हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाती है। खैर जैसे तैसे जीवन को
Es e-book me Muslim ko sahi rasta dikhaya hai
इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने
भोर भयी रे अब तो उठ जा दिनचर आया आलस त्याग कुछ तो काम कर। ऐसै अपनी किस्मत को कब तक बोलेगा। खुद आलसी बना 10 बजे तक सोता है। फिर क़िस्मत को रोता है। कैसा अजीब इसान है। तू रोता भी खुद है। और कोशता भी खुद है भोर भयी अब तो जाग जा रे बदें
मेरी जिंदगी का हाल भी यही रहा मेरा जन्म निर्धन परिवार में हुआ फिर में एक वर्ष का ही था कि मेरे पिताजी का। निर्धन हो गया फिर में ननिहाल में रहने लगा वहां मेरे ननिहाल वालो ने कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी मेरे को कभी यह नहीं लगा कि ये मे
जिंदगी एक जिंदगी है, जिंदगी को जिंदगी की तरह जियो, ना जिंदगी को अपनी तरह जियो, क्योंकि जीने का नाम ही जिंदगी है, हम हैं तो जिंदगी है, हम नहीं तो कुछ भी नहीं, दिल खोलकर जियो, जीने का नाम ही जिंदगी है।
सच का आईना सच का आईना देखु कैसे। यहाँ तो आज कल आईना भी धोखा दे जाता है। होता कुछ और है दिखाता कुछ और है। पर इंसानियत खोने लगी है उसकी आँखें भी धोखा खाने लगी है। जब कोई आईना देखता है तो पहले ही अपना अस्तित्व को जाने कहाँ खो देता है। मेकअप के
हस्तरेखा शास्त्री जी हमें कुछ बताया , मेरी जीवन की भाग्य भबिता कुछ तो बताओ ! कैसी बीतेगी जिंदगी रहस्य कुछ सुनाओ , कौन सा रेखा किया कही रही हमें भी बताओ !मेरी जीवन ... सुख दुःख का चरण समय से बताओ , दुःख का काट यदि हो कोई उपाय बताओ! मेरी जीवन की ...
बेटी से ही घर की रोशनी। बेटी से ही घर में रौनक। बेटी ही तो है जो हर हाल में अपनो का साथ देती हैं। परन्तु बेटी अपना कर्तव्य निभाते हुए ये भूल जाती हैं कि जिस घर वो विदा होके गई है। वो भी तो उसी का कब से राह देख रहा था। बेटी,बहन,और माँ का दिल से रि
ये पुस्तक एक सच्ची घटना पर आधारित लेखनी है जिसमें एक गांव की रहने वाली महिला के जीवन का सजीव घटना को शब्दो में वर्णित किया गया है एक चंचल , हंसमुख, मिलनसार और हमेशा प्रसन्न चित्त रहने वाली महिला जिसको उसके जीवन में एक गलती जो दुनियादारी की चालाकियों
ये देख रहे हो। सब अकेले से है। और उनकी प्रतिबद्धता इतनी दूर है । कि ये समझ पाना मुश्किल सी है। और किसकी नही। बहुत दूर है । सबपर एक परछाई ने सबको एक बना दिया। अंधेरा सा हल्का हल्का सा सब और दिख रहा है। फिर भी परछाई के प्रतिबंध से हर और
Jingi jine Ka tarika
नमन करते हैं उन दिनों को जिसमे गांधी नही। शहीद भगत सिंह जैसे वीर थे ।
मुखड़ा -तू लगाव हम लगायेंम घर घर हरियाली , इनका से मिले जीवन की ख़ुशीहाली -२ अंतरा - कार्बन -डाई- ऑक्साइड अवशोषित करि के रात में छोड़े भाई , दिन में ऑक्सीजन छोड़ी परोप
मै हूँ अनजान मुसाफ़िर एकजहग रुकता नही बस चलना ही ही मेरी मंजिल कब और कहाँ मिले कुछ पता नही में हूँ एक अनजाना सफ़र की खोज में एक अनजान मुसाफ़िर हूँ। कहाँ से आया और कहाँ हैं जाना कुछ पता नहीं। फिर भी एक मंज़िल को है पाना यही उदेश्य हैं
Ye ek insan ki vo duvidha h jo uske kabil hone k baad bhi nakabil h.
अपने जीवन में आए एक बदलाव को उजागर करता हैं मेरा ये छोटा सा लेख...।।