दो दिनों के सुरमई बादलों की धूप-छांव के बाद आज खुला आसमान दिखाई दे रहा है। फिलहाल ठंड आज छुट्टी पर है और सूर्यदेव डयूटी पर मुस्तैद हैं। पर ये गुनगुनी धूप बहुत अच्छी लग रही है।
ये खुला आसमान बादलों से बिछड़ने के बाद साफ सुथरा नजर आ रहा है, जैसे अपनी प्रिय से बिछड़ने के बाद उसकी यादों को दिलोदिमाग से धो-पोंछ कर साफ कर दिया हो।
लेकिन सखी खुले आसमान में विचरण करते पंछी नदारद है।पता नहीं वह चिड़ियों का कलरव कभी फिर से हमारे जीवन मे सुनाई देगा या नहीं! मुश्किल ही लगता है क्योंकि 6G की टेस्टिंग भी शुरू होने वाली है। ऐसा न हो की 8G आते -आते मनुष्य प्रजाति ही विलुप्त हो जाये और खुले आसमान तले ऊंची अट्टालिकाओं के खंडहर और 8G के टॉवर खड़े अट्टहास कर रहें हों?
पर फिलहाल तो खुले, साफ सुथरे आसमान तले, गहरी सांस ले और खुल कर हँसे। क्या है ना! कि अभी तक हंसी पर टैक्स नहीं है। बाकि 100 रुपये कमा कर 30 रुपये टैक्स देने का अहसास कैसा होता है, ये आप भी जानते हैं।
वसीम बरेलवी का शेर है-
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है।।
गीता भदौरिया