क्या वाकई इश्क होता है जहां में।
प्रेमी युगल क्या दिलोजान से चाहते हैं।।
क्या इश्क में पुष्प आच्छादित होता है।
चांद सितारों संग सूरज इश्क संग मुस्काता है।।
गर इश्क मोहब्बत है इस जहां में अंश
फिर बेवफाई क्यों होता है।
टूटा हुआ दिल तड़प तड़प कर क्यों रोता है।।
हंसता खेलता जहां क्यों विराना लगता है।
इश्क में खिला गुलाब चुभन क्यों बन
तन मन में चुभ जाता है।
विरह वेदना की गहराई से हृदय
भावशून्य हो खुद में सिमट जाता है।।
क्या वाकई इश्क होता है जहां में।
दो दिल एक होता है इश्क में।।
तन मन की मिटती दूरियां है
इश्क में दुनिया आसमां से बड़ी होती है।
धरा पर स्वर्ग उतर आता है।।
जन्नत में इश्क एक जुनून में आबाद होता है।
सब कुछ इश्क में इश्क के नाम होता है।।
फिर क्यों नश्तर दिल के आर-पार होता है।
सच कहूं तो इश्क कब आबाद करता है।।
इश्क बेवफा है इसलिए जान लेता है।
क्या जहां में वाकई इश्क होता है।।
क्या वाकई जहां में इश्क होता है।।