स्त्री हूं मैं।
स्त्री की कोख से ही
सृजन होता मेरा।।
स्त्री हूं मैं।
जहां में मैं अकेली
सृजन का पर्याय हूं।।
स्त्री हूं मैं।
घर परिवार की ढाल हूं और
समाज में व्याप्त मेरा अस्तित्व है।।
स्त्री हूं मैं।
इक बेटी,बहन,बहू और पत्नी में
भिन्न-भिन्न स्वरूप है मेरा।।
स्त्री हूं मैं।
ममत्व, त्याग, समर्पण भाव से
परिपूर्ण मातृत्व सुख है मेरा।।
स्त्री हूं मैं।
पुरुषों की तुलना में अधिक
जिम्मेदारी ओढ़ती हूं।।
स्त्री हूं मैं।
दुख सुख दोनों में हमेशा
रहती हूं जीवन में और जीवन मुझमें।।
स्त्री हूं मैं।
मर्द की नजरों में चढ़ भोग्या बन जाती हूं।
प्यार मुहब्बत से मैं खिल जाती हूं।।
स्त्री हूं मैं।
लक्ष्मी, सरस्वती दुर्गा और काली रुप में
जग में छा जाती हूं।।
स्त्री हूं मैं।
सिर्फ एक नजर प्यार की कहानी है मेरी।
मैं पुरुष की अर्द्धांगिनी बन अधिकार पा
मुस्कराती उठती हूं मैं, क्योंकि
थोड़े से प्रेम से संवर जाती हूं मैं।।
क्यों कि मैं इक हाड़ मांस की सबला स्त्री हूं।
मैं एक संवेदनशील जीवन की स्त्री हूं।।