मेरे जज़्बातों की भाषा हो।
ऐतबार की कहानी हों।।
उद्गारों को जो समझ सकें।
बिन जुबां सब समझती हों।।
उल्टे- पल्टे भावों को सुबह-शाम
मैं अनगढ़ पेश करतीं हूं।
तोड़-मरोड़ के शब्दों को
कलम की धार से लिखती हूं।।
आंखों आंखों में मुझे प्यार से
शाबाशी तुम देती हों।
कोई मुझे समझें ना समझे
तुम हर बात समझनी हों।।
मेरी प्यारी डायरी मनमीत,बच्ची 💖
सखी,बहन, मित्र और सारे रिश्तों की
अनबूझ सुलझी हुई सहेली हो।।
तुमसे अलग हो कर जी ना पाऊंगी
मेरी डायरी, तुम लेखन की आधारशिला हो।
फुरसत के पलों में तुम याद आती हों
तुम मेरी जान और जिंदगानी हों।।