याद आता है
कब तू थी मेरे साथ
ना किसी ग़म में , ना किसी ख़ुशी में ,
तू तो थी अपनी दुनिया में, ओर में खोजता रहा अपने आशियाने में ....
जमाने से लड़कर शादी करके अपनी दुनिया बसाई ,बेटी को सगों से बड़कर प्यार किया, वाइफ़ क़ो वापस उसकी मुस्कान दिया कितनीहसीन थी वो दुनिया ।
सब साथ में कितना खुश थे कितनी हसीन दुनिया थी ।
पर जब लगने लगता है की अपना बोझ हट गया है तब लोग वापस प्यार जताने लगते है ।
कहने लगे के अगर बच्चा किया तो वो बेटी का ध्यान देना छोड़ देगा .
क्या सच में इंसान इतना गिरा हुआ हो सकता है क्या में इतना गिरा हुआ था.
कभी समाज को सोचकर ज़ालिम के सुधारने के लिए उसने बेटी किया था आज उसी समाज की बातें क्यू सुनना?
जो आदमी पहले सबसे लड़कर जीवन बनाया आज उसने उसके जीवन से ख़ुशियाँ क्यू कम हो रही है
क्या ख़ुशियाँ देने वाला ख़ुशी का हक़दार नही होता तुमने तो हर ग़म हर दर्द में साथ दिया।
क्यूँ कम कर दिया प्यार ?