22 अगस्त 2015
अल्फाज बयां कर सकते क्या मासूम भरे जज्बातों को तलवारों के तारापों को, और खामोश हुई आवाजों को कर सकते हो तो बयां कर दो दबी हुई बेचैनी दिल की इक बार पढ़ा दो लफ्ज वही जो दिया तूने किताबों को वाह आदरणीया जी वाह, अति सुन्दर भाव है, कुछ इस तरह हो तो कैसा रहेगा, सादर
18 अप्रैल 2016
बहुत गहराई है वर्तिका आपकी रचना मैं …… बहुत सुन्दर
2 नवम्बर 2015
पर जो बयां कर सकते हो, इस दिल में दबी बैचेनी को, ऐ दिल ये बता वो लफ्ज़ कहाँ पर मिलते हैं....बहुत खूबसूरत जज़्बात !
9 सितम्बर 2015
अल्फ़ाज़ बयां कर सकते है, मासूम उन जज़्बातों को, तलवारों के आलापों को, और ख़ामोशी की आवाज़ो को,--------बहुत ही उम्दा ,बेहतरीन !! इन अल्फाजों को सैलाब में बदल दो
4 सितम्बर 2015