21 सितम्बर 2015
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लेखन ही हॉबी तथा पेशा है!D
धन्यवाद दिलीप जी!
18 नवम्बर 2015
बहुत सुन्दर रचना है.
17 नवम्बर 2015
वाह! क्या खूब कहा है, अर्चना जी! धन्यवाद!
5 अक्टूबर 2015
कभी तुम खुदा , कभी हम खुदा सोचो तो सब खुदा ।...............जो जिसके काम आ जाये वही उसका खुदा ।.........धुप में छाया खुदा ।..प्यासे को पानी खुदा
3 अक्टूबर 2015
उत्साहवर्धन के लिए बहुत धन्यवाद ओम प्रकाश जी!
22 सितम्बर 2015
बहुत खूब !
अल्फ़ाज़ बयां कर सकते है, मासूम उन जज़्बातों को,तलवारों के आलापों को, और ख़ामोशी की आवाज़ो को,पर जो बयां कर सकते हो, इस दिल में दबी बैचेनी को,ए दिल बता, वो लफ्ज़ कहाँ पर मिलते हैं !
कुछ गुनगुनाते पल, कुछ मुस्कराते पल,ख़ुशी का अहसास कराते है,बारिश की पहली बूँद जैसे मनभावन, ये पल बार-बार क्यों नहीं आते है,सोचती हूँ कभी तो उत्तर यही मिलता है,गर्मी के बिना बारिश का क्या है महत्व,दुःख के बिना सुख में क्या है तत्व,बस ऐसे पलों को संजोह लो तुम,जो गर्मी में भी शीतलता का एहसास दिलाते है,औ
टेक्नोलोजी की महिमा अपरम्पार, आज के यूथ की दुनिया इसके बिना है बेकार,इस कदर हावी है इसका नशा, सब समझें सिर्फ़ चैटिंग की भाषा!टेक्नोलोजी ने दिए बहुत वरदान, करो समझदारी से उपयोग वर्ना पछताना पड़ेगा मेहरबान,टेक्नोलोजी को जानो और समझो भाई, पर न बनो इसकी अनुयायी!बच्चो का बचपन इसने छीना, अब न भाए खेल-कूद
काले मेघा! काले मेघा ! इतना क्यूँ तरसाए,बहुत हुई अब देर सही, पर अब क्यूँ न बरसे हाय,गरमी से परेशां जनता सब बोले हाय! हाय!काले मेघ बोले, "तब तू( जनता) क्यूँ न पेड़ लगायें"?जब बारिश की इतनी आस तो क्यूँ प्रदुषण फैलायें ?जहाँ देखो वहां, तू पेड़ ही पेड़ कटवाए!फिर हमसे पूछे, हम क्यूँ न बरसे हाय!इसे बात पर
हर-क्षण, हर-पल देश के पैरों को जकड़ती ये आरक्षण की आग,देश का युवा, इसमें जलकर न हो जाये राख,मेहनत और काबिलियत कि कद्र करो तुम, आरक्षण कर देगा सबको खाक, हर दिन एक सुअवसर हैं, इसका मूल्य समझो जनाब,न करो युवाओं को गुमराह तुम,देश के सिपाहियों में भरो उत्साह तुम,ले जाए देश को ये प्रगति पथ पर, ऐसे गीत गुनग
माखन-मटकी और राधा का प्यार, ले के आया जन्माष्टमी का त्योहार,कंस को देकर ललकार , वध किया भर के हुंकार,माता- पिता का किया सपना साकार,विष्णु के थे आठवें अवतार,कृष्ण की लीला है अपरम्पार,खुशियों की लेकर बहार, आ गया जन्माष्टमी का त्योहार,बुराईयों को त्याग, अच्छाईओं को अपनाओ,यही है जन्माष्टमी त्योहार का सा
भारत माँ की रक्षा में तत्पर, ऐ वीर तुम्हे सलाम, दुश्मन से ना डरे ना झुके तुम, भारत माँ को हँसते- हँसते दे दी अपनी जान,जितना भी करूँ नमन तुम्हारा, जितना भी करूँ सम्मान,ऐ देश के वीर सिपाही, तुम पे सब कुर्बान,ऐसी है हस्ती तुम्हारी, बर्फ को भी पिघला देते हो तुम,शोलों पे जल-जल कर, दुश्मनों के छक्के छूड़ा
यूँ तो ज़िन्दगी चल रही हैं, अपनी गति से, पर हंसी की खुराक भी होनी चाहिए,परेशानियों से, ज़िन्दगी की आपाधापी से लड़ने के लिए,इक दवा तो होनी चाहिए । पैसों जुटाने की जदोजहद में लगे है सभी,लब्ज़ों को मुस्कराने की वजह तो होनी चाहिए,ज़िन्दगी में आंसू कम नहीं हैं,खिलखिलाने की खता तो होनी चाहिए।
यहाँ हर इंसान ढूंढता हैं अपना खुदा,बीच-बाजार खोजता हैं अपना खुदा,मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघरों में देता है अर्जियां,रे इंसान! क्यों अपने अंदर नहीं ढूंढता हैं अपना खुदा!
माँ! तुम्हे याद हैं ना,मेरा भागते-भागते स्कूल जाना,और नाश्ते की मेज़ पर, तुम्हारा मेरे मुंह में कौर डालना, माँ! तुम्हे याद हैं ना,मेरा टेस्ट के दिन भड़भड़ाना,भीतर की घबराहट समझकर,तुम्हारा मुझे तस्सली दे जाना, माँ! तुम्हे याद हैं ना,कॉलेज के दिनों में,मेरी सहेली बनकर मुझे चिढ़ाना,अपने अुनभव से मुझे समझान
वो किरण थी,सुन्दर, भोली, निर्मल, पावन,मासूम सी कली थी,हर तरफ ऊर्जा बिखेरती, अपनी मुस्कान से खुशियां फैलाती,पत्रकार बनकर चली थी करने अपने सपने साकार,अपनी शख्सियत को देकर नया आकार,फिर ज़िन्दगी ने लिया मोड़,शादी पर हुआ गठजोड़,फिर अचानक क्या हुआ, उसका सुन्दर सपना टूट गया,अब वो कभी नहीं हँसेगी!वो किरण थी,कि
काली अंधियारी रात के बाद, हर रोज़ आती हैं एक नयी सुबह,चाहे कितना भी हो जीवन में अन्धकार,एक छोटी सी आस भी जगा देती हैं एक नयी सुबह, चाहे प्रलय हो चारो ओर,प्रलय के बीच भी ज़िन्दगी दिखाती है नयी सुबह,चाहे नकारत्मकता के छाये हो घनघोर बादल,एक छोटा सा सकारात्मक विचार जगा देती है नयी सुबह!चाहे कितनी भी हो व
कुछ अधूरे से ख्वाब,कुछ अनकही बातें,कुछ मुश्किल हालत, न हो तो #ज़िन्दगी बेज़ार हो जाएँ ,ज़िन्दगी जीने का लुत्फ़ तभी हैं जनाब,जब ज़िन्दगी में हो चुनौतियां हज़ार, फिर भी, होठों पर हो ऐसी मुस्कानकी शरमा जायें आफताब।