मोबाइल फ़ोन तो जैसे
कलयुग कि बांसुरी हो
गयी है
जब इसकी धुन न बजती है
तब तक न आये सुख चैन
ये तो सबकी दिल कि धड़कने
है इसके बिना
आये न सबको
नींद और आराम कभी लोंगो
ने सोचा ही नही था कि रिश्ते
बन भी जायँगे और टूट भी
जायँगे हाथों कि अंगुलीयों
से
बिना जानपहचान के भी रिश्ते
अब तो बन जाते हैं
चाहे दिन हो या रात
सुबह हो या शाम और टूट
भी जाते हैं और फिर
जुड़ भी जाते हैं इस छोटी सी
मोबाइल में बहुत सारी जानकारी
भरे पड़े हैं।
कुछ लोग इससे सीखते भी हैं
कुछ बिगरतें भी हैं
जँहा अच्छी बातें हम सीखते हैं
वहीं कुछ बुराई भी हम सीखते हैं
इसके बिना नही आये किसी को
चैन
सबको ऐसी लत लग गयी है
ये जब तक न हो पास तब
तक आये न कोई रास
लोगों को
पास जब मोबाइल के
होंगे तो एक दूसरे से अनजान
भी बन जाते हैं जान पहचान
जैसे लगते हैं उनसे बरसों की
है जान पहचान
मोबाइल का तो ये आलम है की
लोगों ने रात को दिन बना दिया है
अपनों को पराया और पराये को
अपना
मोबाइल के बिना आये न किसी को
चैना
सबकी दिल की धड़कन बन गयी है
लोग बिना सांस के एक पल के लिए
जी लेंगे
लेकिन बिना मोबाइल के एक पल
नही जी पायेंगे
अभी सबका यही आलम है।