ओस की बुँदे बहुत कुछ सीखती है।
जिंदगी में,
उसमें कितना जिद होता है जमीं,
पर आने के लिए।
सूरज की किरणे मिटा देती है उसे,
फिर भी वो अपना जिद नही छोड़ती,
है।
उतनी ऊंचाई से हमें वो जमीं पर,
आती है।
यही सीखने के लिए की एक तुम सब,
हो ज़ो जमीं को छोड़ कर ऊंचाई,
पर जाते हो और जमीं को ही भूल,
जाते हो।
कुछ तो हमसे सीख लो हम,
ऊंचाई से जमीं पर आते हैं।
तुम्हारे लिए तुम्हें ख़ुशी देने,
के लिए तुम्हें कुछ सिखाने,
के लिए।
हमारा रोज आना जमीं पर,
किसी मकसद से होता है।
ओस की बुँदे कहती है मेरा,
क्या हम तो मिट ही जायँगे।
जब सूरज की किरणे आएगा,
जमीं पर,
पर हम अपना जिद नही छोड़ते हैं।
वैसे ही तुम भी कभी जिंदगी में,
कुछ पाने के लिए अपना जिद,
कभी मत छोड़ना।
जब तक जिद नही होती है।
तब तक हमें अपनी जिंदगी में,
मंजिल नही मिलती है।
चाहे तुम्हें हमारी तरह मिटना पड़े,
लेकिन अपनी जिद नही छोड़ना।
क्योंकि इसी इंतजार में जैसे हमें,
इंतजार रहता है फिर तो रात आएगी।
और हम जमीं से मिलने जायँगे ही,
हम क्यों डरे सूरज की किरणों से,
तुम भी मत हारना अपनी हार से,
बस अपनी जिद पर अड़े रहना।
एक दिन तो मंजिल मिलेगी न,
यही तो सिखाती है हमें ओस,
की बुँदे जमीं पर रोज आ कर हमें।