मेरे नानी के आँगन में
चारपाई बिछी रहती थी
मानो ऐसा लगता था की
हमसब का सिहासन लगा
हो हरकोई अपनी चारपाई
लुट लेता था
हरकोई कहता ये मेरी चारपाई
ये मेरी चारपाई
इसपे बस हमें सोना है
फिर क्या शुरू हो जाता था
बच्चों की लड़ाई
कोई रूठ जाता था
कोई रोने लगता था
जो बचा उसकी कुटाई
हो जाती थी
उसके बाद फिर से शुरुआत
होती थी दोस्ती की
फिर सब आपस में हिलमिल
जाते थे
कितना प्यारा वो पल होता है
बचपन कि
जँहा रूठ के मान जाना
लड़ाई के बाद दोस्ती
हो जाना
चारपाई के साथ साथ
सोने और बैठने कि कितनी
सारी बातें अब खो सी गई है
अब न वो बचपन रहा न
हम भाई बहन का
मिलना जुलना रहा
अब तो बस लिखना रह गया
और याद करना रह गया
अब भी चारपाई देखती हूँ
तो अपना बचपना याद आ
जाता है और मीठी मीठी
लड़ाई और कुटाई याद
आ जाती है
सच में चारपाई के साथ
रजाई भी होता था
उसके साथ सोने की
बात ही कुछ और होता
था
वो सुकून की नींद तो बचपन
में थी
अब तो बस नींद आ जाती है
और सो जातें हैं
कितनी सारी यादों के साथ
बड़े ही प्यारे वो दिन थे
चारपाई बिछे रहते थे
नानी के आँगन में
हम सब की बचपन की यादें