मीत तो मिला मन का लेकिन मैं बन न सकी,
उसके मन का मीत मैं तो रह गई बिना मीत के।
वो था मेरे मन का मीत ये तो बस मुझे था पता,
उसको खबर ही नही था की वो है मेरा मनमीत।
दिल ने बहुत रोया की काश बन पाती मैं,
तेरे मन की मनमीत पर ऐसा हो न सका।
ये आराजू दिल में ही रह गई और वो बन,
गई किसी और की मनमीत मैं देखता रहा।
किस से करुँ शिकबा शिकयत किस से करूँ गिला,
बस अपनी किस्मत पे हर रोज रोता रहा।
कितना दिल को समझया चुपके चुपके,
तेरे सिवा किसी और का बन न सका मनमीत।
ये प्रीत तो बस मनमीत के साथ ही होता है।
जब मनमीत न हो तो प्रीत किस सँग करता।
यही आराजू है मेरी मैं अगले जन्म में तेरा,
मीत बनूँ और तू मेरा मनमीत बन जाना।