एक औरत हमेशा ही आत्मनिर्भर है
बस लिखने वाले गलत लिख देते
बोलने वाले भी गलत बोलते हैं
और ज़ो सुनते हैं वो भी गलत
सुनते हैं
हैं अगर औरत आत्मनिर्भर
नही रहती तो न एक परिवार
बनेगा
न ही समाज बन सकता है
क्या नौकरी अगर वो नही
करेगी तो
औरत को आत्मनिर्भर नही
कहा जायेगा
क्या नौकरी करना ही आत्मनिर्भरता
कहलाता है
औरत हमेशा से आत्मनिर्भर है
और हमेशा रहेगी
बस सोच की बात है ज़ो
औरत घर में रहती है उससे
आत्मनिर्भर शायद नही कहा
जाता है न
लिखने वाले नही लिख पाते होंगे
न ही सोच पाते होंगे
हद हो जाती है जब औरत
को ही आत्मनिर्भर नही कहा
जाता है
जिसकी वजह से आत्मनिर्भर
हैं सभी लोग
एक औरत की सोच से ही
आत्मनिर्भर सब बनते हैं
फिर उन्हें ही लाचार कहा
जाता है
जिसके दम पर ही आत्मनिर्भरता
जिंदा है उसे ही सब आत्मनिर्भर
बनाने में लगे हैं
ज़ो खुद आत्मनिर्भर है उसे
क्या सब की सोच उसे आत्मनिर्भर
बनायेगी
एक माँ से कभी मिले हैं
उनसे पूछियेगा वो खुद
भी आत्मनिर्भर होती है और
अपने बच्चों को भी उड़ना
सीखती है वरना
ऐसा कोई भी नही है ज़ो इनके
बिना खुद आत्मनिर्भर
बन जाय
फिर कोई कैसे कह सकता है
औरत को आत्मनिर्भर
ज़ो सबको आत्मनिर्भर बनाती
उसे ही आत्मनिर्भर बनने
बोला जाता है