ये दीपावली भी कितना अच्छा,
लगता है न,
दिल में उमंग छा जाती है।
अमीर हो या गरीब सब खुशियाँ,
मानना चाहता है।
पर हर किसी की किस्मत इतनी,
अच्छी कहाँ होती है की,
सब मिल के खुशियाँ मना सके,
दीपावली की,
कितनों ने अपनी दौलत,
लुटा के खुश होंगे।
कितने उनको देख कर,
खुश होंगे।
ये तो सबकी अपनी अपनी,
किस्मत होती है न,
कितनों के घरों में छप्पन,
भोग बने होंगे।
कोई रुखा सूखा से पेट भर लेगा,
कितनों को वो भी रुखा सूखा,
नसीब नही होगा।
कोई खुशियाँ को देख कर,
खुश हो रहा होगा।
कोई दुआऐं भी मांग रहा,
होगा जिन्हें ये खुशियाँ,
नसीब से मिली होगी।
वो बड़े ही किस्मत वाले होंगे।
जिन्हे ये खुशियाँ नसीब में,
मिली होगी।