मंटू बाबू अपनी कक्षा में पढ़ाते हुए बोल गए कि शिक्षक समाज का निर्माता होता है। एक लड़की शिवानी ने सलीनता के साथ उनसे प्रश्न किया - सर क्या शिक्षक ही समाज का निर्माण करते है, शिक्षिका नहीं? मंटू बाबू ने बात सम्हालते हुए कहा - यहां शिक्षक से अभिप्राय शिक्षक और शिक्षिका दोनो से है।हमारे देश में कई विदुषी हुईं हैं जैसे सावित्रीबाई फुले, आशिमा चटर्जी, विमला कौल जिनका समाज निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने फिर मुस्कराकर कहा - मेरे ख्याल से शिक्षक शब्द भी जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए - जैसे 'राष्ट्रपति' है। महिला हो या पुरुष राष्ट्रपति ही कहते है। शिवानी ने पूछा - सर हमारी पहली टीचर तो हमारी मां होती है।स्कूल जाने से पहले बहुत कुछ सिखा चुकी होती है।फिर क्या हमारी मां शिक्षक की श्रेणी में आएगी। मंटू बाबू ने कहा - आप उन्हें अपना शिक्षक मान सकते हैं। शिक्षा तो जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक निरन्तर चलती है। इस दौरान बहुत से लोगो से आप काफीकुछ सीखते हैं। अब ये आप पर है कि आप किस - किस को अपना शिक्षक माने। सामान्यत: जब हम शिक्षक शब्द का प्रयोग करते हैं तो अभिप्राय शैक्षिक संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों से होता है। शिवानी ने अगला प्रश्न दागा - जो टीचर पढ़ाते नहीं, मार्क्स देने में भेदभाव करते हैं तो क्या आप उन्हें भी समाज का निर्माता कहेंगे? मंटू बाबू बोले - बिलकुल कहेंगे क्योंकि यदि आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ है तो आप दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे इस बात की संभावना कम हो जाती है। ऐसे में निश्चित रूप से अच्छे समाज का निर्माण नहीं होगा। जैसे ही शिवनी अगला प्रश्न करने के लिए खड़ी हुई, मंटू बाबू बोले- अब विषय से न भटकाव सिलेबस पूरा नही हो पाएगा।