नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर रही होती थी किसी के लफ़्ज़ों में सने गुदगुदाते से एहसासों को । .
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इबारती बातों की गूंज जैसे मोम की तरह पिघल पिघल कर दिल की थकन पर मालिश कर रहे होते थे । और यादों का एक ताजा सा संगमरमरी टीला निर्मित हो रहा होता था । कानो में पड़ रही ध्वनि की ये आवृत्तियाँ वैसे तो भौतिकी के विषयवस्तु थे फिर जाने कैसे उसके कोशिका तंतु में कुछ जादुई रासायनिक संचरण उसकी त्वचा में जैसे अद्भुत परिवर्तन करने लगते । . उसका निखरा हुआ सौंदर्य मानो और सजीव हो उठता ।
बेबस अपनी हंसी को रोकती हुई उसकी आज़माइश उसकी गोरी रंगत को लालिमा से सरावोर कर देती ।
और उसका मुस्कुराना मानो पृथ्वी की उन चंद अद्भुत घटनाओं में से होता जिसे वर्गाकार बड़ी खिड़की से गुजरता चाँद भी देखकर ठिठक पड़ता । लड़खड़ाते हुए चाँद को काले घनेरे बादल छिपाकर रास्तों पर वापस चलायमान कर देते , अन्यथा पृथ्वी की इस अप्रतिम सौंदर्य घटना के भुलावे में अपने परिक्रमा पथ से बिसरा चाँद एक कलंकित दाग का भागी बन उठता ।
उधर नींद जब उस चिर यौवना को अपने आगोश में समेट रही होती थी । तो दूसरी तरफ अल्फाज़ो का वो करिश्माई शिल्पकार अपने शब्दों के झोले को समेट रहा होता था ।.
वो उस अमूर्त सीढ़ियों को समेट रहा होता था जिसपर चढ़कर वो सातवे आसमान पर ले गया था हर रोज की तरह उसे अभी कुछ चंद लम्हे पहले । उसने अल्फाजों के पाक चादर पर ही ही बिठाकर रखा था उसे , कुछ असरार कहे थे उससे ,बदले में चंद नग़मे सुने थे उससे , ये उन दोनों की तथाकथित दवाई थी जो उन्हें हर दर्दों गम से कही दूर सुकून के पनाह में ले जाती थी । .
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उसे यकीं हो चला था कि जन्नत का रास्ता यहां उसके इस आशियाने से भी खुलता है, बशर्ते की वो नाज़नीन वो महजबीन , बेनज़ीर अपने दिलकश एहसासों के साथ उससे वाबस्ता रहे । बशर्ते कि उसके मखमली हाथों और अंगुलियों की छुअन का एहसास उसके एहसासों को यूँ ही जिंदगी देता रहे , जन्नत यही होगी इसी जमीं पे बशर्ते कि वो परी उसे ये इत्तला करती रहे कि उसके कान चाहते है उसके अनगढ़े से नग्मों को सुनना । .
उसके कंठ से निःसृत देववाड़ी से स्वरों से वो आप्लावित रहेगा बासफर ए जिन्दगानी में । उसके रूप का यौवन चाँद की चांदनी के मानिंद यूँ ही बरसता रहेगा । इन एहसासों की बारिश में चार दिन की ये जिंदगी अगर यूँ ही सराबोर होती रहे तो वाक़ई जन्नत यही हैं , इन्ही रुबाइयों में ,इन्ही वादियों में । और वो देख सकता था चाँद में अपनी चाँद सरीखी परी के नींद में सोये हुए सुंदर से अक्स को। वो मुतमइन हो चुका था , और चंद लम्हो के लिए ही सही अब वो भी सुकून से ख्वाब की ख्वाइश लिए सो सकेगा , फिर से एक मुलाकात के लिए बस वो और उसकी वो मेहरबान दोस्त~