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बात इक रात की~

18 सितम्बर 2022

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नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर रही होती थी किसी के लफ़्ज़ों में सने गुदगुदाते से एहसासों को । .
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इबारती बातों की गूंज जैसे मोम की तरह पिघल पिघल कर दिल की थकन पर मालिश कर रहे होते थे । और यादों का एक ताजा सा संगमरमरी टीला निर्मित हो रहा होता था । कानो में पड़ रही ध्वनि की ये आवृत्तियाँ वैसे तो भौतिकी के विषयवस्तु थे फिर जाने कैसे उसके कोशिका तंतु में कुछ जादुई  रासायनिक संचरण उसकी त्वचा में जैसे अद्भुत परिवर्तन करने लगते । . उसका निखरा हुआ सौंदर्य मानो और सजीव हो उठता । 

बेबस अपनी हंसी को रोकती हुई उसकी आज़माइश उसकी गोरी रंगत को लालिमा से सरावोर कर देती । 
और उसका मुस्कुराना मानो पृथ्वी की उन चंद अद्भुत घटनाओं में से होता जिसे वर्गाकार बड़ी खिड़की से गुजरता चाँद भी देखकर ठिठक पड़ता । लड़खड़ाते हुए चाँद को काले घनेरे बादल छिपाकर रास्तों पर वापस चलायमान कर देते , अन्यथा पृथ्वी की इस अप्रतिम सौंदर्य घटना के भुलावे में अपने परिक्रमा पथ से बिसरा चाँद एक कलंकित दाग का भागी बन उठता । 

उधर नींद जब उस चिर यौवना को अपने आगोश में समेट रही होती थी । तो दूसरी तरफ अल्फाज़ो का वो करिश्माई शिल्पकार अपने शब्दों के झोले को समेट रहा होता था ।.

 वो उस अमूर्त सीढ़ियों को समेट रहा होता था जिसपर चढ़कर वो सातवे आसमान पर ले गया था हर रोज की तरह उसे अभी कुछ चंद लम्हे पहले । उसने अल्फाजों के पाक चादर पर ही ही बिठाकर रखा था उसे , कुछ असरार कहे थे उससे ,बदले में चंद नग़मे सुने थे उससे , ये उन दोनों की तथाकथित दवाई थी जो उन्हें हर दर्दों गम से कही दूर सुकून के पनाह में ले जाती थी । .
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उसे यकीं हो चला था कि जन्नत का रास्ता यहां उसके इस आशियाने से भी खुलता है, बशर्ते की वो नाज़नीन वो महजबीन , बेनज़ीर अपने दिलकश एहसासों के साथ उससे वाबस्ता रहे । बशर्ते कि उसके मखमली हाथों और अंगुलियों की छुअन का एहसास उसके एहसासों को यूँ ही जिंदगी देता रहे , जन्नत यही होगी इसी जमीं पे बशर्ते कि वो परी उसे ये इत्तला करती रहे कि उसके कान चाहते है उसके अनगढ़े से नग्मों को सुनना । .


उसके कंठ से निःसृत देववाड़ी से स्वरों से वो आप्लावित रहेगा बासफर ए जिन्दगानी में । उसके रूप का यौवन चाँद की चांदनी के मानिंद यूँ ही बरसता रहेगा । इन एहसासों की बारिश में चार दिन की ये जिंदगी अगर यूँ ही सराबोर होती रहे तो वाक़ई जन्नत यही हैं , इन्ही  रुबाइयों में ,इन्ही वादियों में । और वो देख सकता था चाँद में अपनी चाँद सरीखी परी के नींद में सोये हुए सुंदर से अक्स को। वो मुतमइन हो चुका था , और चंद लम्हो के लिए ही सही अब वो भी सुकून से ख्वाब की ख्वाइश लिए सो सकेगा , फिर से एक मुलाकात के लिए बस वो और उसकी वो  मेहरबान दोस्त~
Sanju Nishad

Sanju Nishad

Very nice 👍😊💐💐

20 सितम्बर 2022

Vijay

Vijay

It's a gem of writing, beyond of any award you urself as a reward , hats off 👏👏👏👏❤️

18 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

18 सितम्बर 2022

Thanks a ton 💐💐

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut bahuttt hi accha likha superb👌👌👌💐💐👏👏 amazing

18 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

18 सितम्बर 2022

Thanks alot Kavya ji 😊💐

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

वाह निशब्द कर दिया आपके लेखन ने बहुत ही उम्दा लेखन प्रशंसनीय शैली सर 🙏🙏

18 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

18 सितम्बर 2022

शुक्रिया प्रभा जी 🙏💐

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रचनाएँ
दैनिक
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किताब में दैनंदिन लेखन का समावेश है ।
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युवा भारत~

25 अगस्त 2022
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युवा भारत !क्रांति और रोमांस यानी प्रेम दोनों एक ही स्त्रोत से निकलते हैं । और ये दोनों ही बातें किसी व्यक्ति, परिवार ,समाज और देश के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व को बदलने का सामर्थ्य रखते हैं । युवा होना क

2

जल संरक्षण

26 अगस्त 2022
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जल संरक्षण ।क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच महाभूत । ये वो पांच तत्व है जिनसे न केवल मानव शरीर निर्मित होता है बल्कि किरदार के खत्म होने पर इन्हीं पंच तत्वों में हम सुपुर्द भी हो जाते हैं । &

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धार्मिक उन्माद~

27 अगस्त 2022
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धार्मिक उन्माद~धारयते इति धर्म: , अर्थात जो धारण किया जाता है वो धर्म है । धर्म की परिभाषा उसका होना और अनुपालन इतना ही शालीन और सुस्पष्ट है । हमारी चिंतन परम्परा में भी चार पुरुषार्थों धर्म,अर्थ,काम

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अवैध निर्माण~

29 अगस्त 2022
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अवैध निर्माण ~निर्माण एक रचनात्मक प्रक्रिया है । घर का निर्माण , भवन का निर्माण , सृष्टि का निर्माण हो या व्यक्तित्व का निर्माण । नींव से लेकर अपनी परिणति प्राप्त करने तक यह एक वृहद कर्मयज्ञ का

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हिंदी दिवस पर~

14 सितम्बर 2022
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हम हिन्दी भाषियों के लिए हिंदी की एक सामान्य परिभाषा यही है कि यह हमारी अपनी भाषा है । भाषा , जो वास्तव में संस्कृति का एक अंग हैं । और संस्कृति की मजबूती और प्रसार आजकल अर्थ के पहियों पर गतिमान रहती

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इंतेज़ार और सही~

14 सितम्बर 2022
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इंतेज़ार एक ऐसा लफ्ज़जिसमें समूचा जीवनअंगड़ाई ले सकता है ।कायनात की हर शय मानोकिसी के इंतेज़ार में ही है ।बच्चा जवान होने के इंतेज़ार मेंतो कोई फिर सेबच्चा होने की चाह रखता है ●●●●

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बारिशें~

15 सितम्बर 2022
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बारिश एक भीगन ही नही ये एक प्रतीक है संयोग और वियोग का , जहां नीरद से निकला नीर सदानीरा में परिवर्तित हो रहा होता है । इस यात्रा में अनंत पड़ाव है । तीव्रता है तो मादकता भी , पर्वतों पर कलकल करती मीठी

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मानव एक पूंजी ~

15 सितम्बर 2022
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मानव एक संसाधन है । एक ऐसी पूंजी जिसके हाथों ने सदियों से इस सृष्टि को अथक रूप से निरंतर गढ़ा है । सृजन से लेकर विनाश तक अनेकों बार सृष्टि के खेल को देखते ,समझते और सहेजते मानव ने आज वो मुकाम हास

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पितृ पक्ष~

16 सितम्बर 2022
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श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।पितृ पक्ष यानी पित

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नारीवाद~

17 सितम्बर 2022
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नारीवाद~एक इंसान के तौर पर जब हम इस धरती पर आते है तो सबसे पहला सानिध्य जिससे होता है वो एक नारी है, एक बुभुक्षु के तौर पर हमें कराई गयी पहली क्षुधा पूर्ति का माध्यम एक नारी होती है , और तो और हमारे स

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मिमी कहानी एक माँ की ~

17 सितम्बर 2022
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रिश्ता ! क्या होता है ये रिश्ता और इनके मायने क्या होते हैं ? कौन देता है इन्हें मां बाप ,भाई बहन और ऐसे अनेकों नाम, साथ ही इनमे जन्म लेती और पल्लवित होती भावनाएं और एक अपनत्व को जतलाता हुआ अख्त

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अंधविश्वास~

18 सितम्बर 2022
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अंधविश्वास~आंख मूंद कर किया जाने वाला विश्वास ही अंधविश्वास है । तर्क से परे होकर किसी भी व्यवस्था और विचार को स्वीकारना और उसका अनुकरण करना ही अंधविश्वास है । यहां व्यवस्था और वो विचार किसी भी

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बात इक रात की~

18 सितम्बर 2022
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नींद की आगोश में जाने से पहले वो दोनों एक दूसरे की नींदे चुराते थे । दिन भर की सारी थकन को निचोड़ कर जब वो बिस्तर के सिरहाने से अपने नर्म गालों को छिपाती थी , तो कानों में इयरफोन के मार्फत वो महसूस कर

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कभी कभी अक्सर~

19 सितम्बर 2022
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इक शब गुजर गई फिर से उसकी प्यास से हारकर , गुम गए कुछ सितारे जो यूँ ही उग आए थे रेगिस्तानी आकाश पर गैर मापे पूरे दिन को , इक उम्मीद बुझ गयी फिर से संभावनाओं की गोद में मुँह छिपाकर । .इक गम फिर से अधूर

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एक तुम्हारा होना~

19 सितम्बर 2022
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एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द

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क्या लिखूँ का सवाल ~

20 सितम्बर 2022
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अक्सर ऐसा होता है कि इंसान प्यार को भूलने की क़वायद में उसे लिखने लगता है । प्यार को लिखना उसको भूलने की भरसक कोशिश होती है । प्रेम की लेखनीय अभिव्यक्ति उस पीर से निज़ात पाने की कोशिश है । यकीन ना हो तो

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कोरोना काल और डायरी के पन्ने~

20 सितम्बर 2022
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ये कहते हुए अरस्तू को कोरोना जैसे "अति सामाजिक " प्राणी का ख्याल शायद रहा हो ना रहा हो लेकिन मनुष्य के सहअस्तित्व को चुनौती देता ये सूक्ष्म दानव आज एक बार फिर से भागती दौड़त

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जैविक खेती~

21 सितम्बर 2022
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जैविक खेती।।मानव सभ्यता के विकास में सर्वप्रथम क्रांति खेती की खोज थी । तकरीबन दस हज़ार वर्ष पूर्व इसे नवपाषाण क्रांति के रूप में भी जाना जाता है । खेती यानी मनुष्य के मनुष्यता की गाथा । खेती यानी जानव

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पुस्तकों की दुनिया~

22 सितम्बर 2022
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किताबें बहुत ही पढ़ी होंगी तुमने~पुस्तक एक संग्रह है ज्ञान का, एक संग्रह अनुभव का ,यह एक समेकन होती है अनुभूतियों की । एक विचार ,एक सोच , अर्जित एक सम्पूर्ण जीवन कैद होता है एक उत्तम पुस्तक में । पुस्त

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क्या लिखूँ ~

24 सितम्बर 2022
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मैं चाहता था कुछ ऐसा लिखूं जो कुछ अद्भुत बन जाये, कुछ ऐसा जो लेखन की मापनी में ना समाया जा सके , मैंने बहुत सोचा , मन के पतंगे की करनी साधी , उसे कल्पना के नवनीत नभपटल में ले जाकर छोड़ा , हर बार उसके ब

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क्षमा करना हिंदी मां !

24 सितम्बर 2022
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साहित्य एक पवित्र नदी की तरह है । एक ऐसी नदी जिसमे स्नान करके मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है । ये वो गंगा है जिसके पवित्र जल से सभ्यताएं तक पुनीत होती आयी है ।... साहित्य रूपी गंगा क

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ग्राम गमन~

4 अक्टूबर 2022
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गांव जाता हूँ तो टुकड़ा टुकड़ा हो जाता हूँ , गाँव यानि जड़ें , जहां जीवन बसता है , जहां से प्राण तत्व निकलता है मानो , हालांकि जड़ों की शुष्क कठोरता भी एक अदद सच्चाई है , जड़ों तक पहुचने की बेचैनी अक्सर पत

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जब मिलना समंदर से~~

4 अक्टूबर 2022
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पत्थरों के किनारे ओढ़ रखे है दरिया ने , राहगीर देखते है , अक्सर समझते है , कौन स्पर्श करे इन्हें , अगर ये फूट गए , तो कौन रोकेगा उमड़ते हुए नीर को, कौन संभालेगा इसकी पीर को

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शायद हो~

7 अक्टूबर 2022
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शायद हो...इस जहां के पार एक दूसरा जहां ,जहां ना हो कोई नफ़रतें ना शिकवे ना गिले,, जहां लोग एक दूसरे से हंस के मिले तो बस हँस के ही मिले ,, ऐसा एक जहाँ , जिसकी जमीं पर तानों के कांटे ना चुभते हो , ,हां

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दीपावली~

23 अक्टूबर 2022
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त्योहार दीवाली का है तो मन वीणा के तार झंकृत ना हो जाये ऐसा संभव कैसे हो सकता है ।त्योहार की संकल्पना वास्तव में भारतीय परंपरा का एक अद्भुत पहलू है , जिसमे अंतरिक्ष की ज्यामिति , भूगोल की तारतम्यता ,

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5जी तकनीक ~

3 नवम्बर 2022
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बचपन की यादों में अक्सर आसमानी रंग के वो दो पन्ने याद हो आते है ,जिसे अंतरदेशी कहा जाता था , जो आपस मे जुड़े होकर अपने ऊपर लिखी इबारतों से न जाने कितनी दूर बैठे दो लोगों को जोड़ने का काम करते थे ।

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वैश्विक जलवायु परिवर्तन~

5 नवम्बर 2022
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जब भी जलवायु परिवर्तन की बात होती है । ना जाने कहाँ से उस विशाल अजगर की कहानी ज़ेहन में तैरने लगती है ,जो इतना विशाल था जितना स्वयं में एक टापू हो। जिसकी सुषुप्त अवस्था में उसके तन पर हरे भरे मैदान को

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