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रहस्य

hindi articles, stories and books related to Rahasya


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*मनुष्य का जन्म लेने के बाद मनुष्य को इस संसार के विषय में बताने के लिए एक मार्गदर्शक आवश्यकता होती है , जिसे सद्गुरु के नाम से जाना जाता है | मानव जीवन में मार्गदर्शक (सद्गुरु) की परम आवश्यकता होती है | वैसे तो सभी मनुष्य के जीवन में माता प्रथम गुरु होती है जो कि अपने नवजात शिशु को इस संसार की प्रा

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सनातन काल से भारत देश अपनी आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध *यहाँ समय समय पर लोक कल्याणार्थ अनेक साधन हमारे मनीषियों द्वारा बताये गये हैं | इन्हीं साधनों में एक मुख्य साधन बताया गया है आदिशक्ति के पूजन का पर्व नवरात्र | उन्हीं नवरात्रों के अन्तर्गत आज से गुप्त नवरात्र प्रारम्भ हो चुका है | विचारणीय है क

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*चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद जीव को देव दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त होता है | इस शरीर को पाकर के मनुष्य की प्रथम प्राथमिकता होती है स्वयं को एवं अपने समाज को जानने की , उसके लिए मनुष्य को आवश्यकता होती है ज्ञान की | बिना ज्ञान प्राप्त किये मनुष्य का जीवन व्यर्थ है | ज्ञान प्राप्त कर लेना महत्व

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*सनातन धर्म के संस्कार , संस्कृति एवं वैज्ञानिकता सर्वविदित है | सनातन धर्म के महर्षियों ने जो भी नीति नियम बनाये हैं उनमें गणित से लेकर विज्ञान तक समस्त सूत्र स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं | सनातन धर्म के संस्कार रहे हैं कि मनुष्य जब गुरु के यहां जाता था तब वह सेवक बनकर जाता था | इस पृथ्वी पर एकछत्र शासन

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*सृष्टि का सृजन करने वाली आदिशक्ति भगवती महामाया , जिसकी सत्ता में चराचर जगत पल रहा है ! ऐसी कृपालु / दयालु आदिमाता को मनुष्य अपनी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न नामों से जानता है | स्वयं महामाया ने उद्घोष किया है कि :- मैं ही ब्रह्मा , विष्णु एवं शिव हूँ | वही आदिशक्ति जहां जैसी आवश्यकता पड़ती है वहां

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*हमारे देश के महर्षियों / महापुरुषों ने देवताओं की पूजा का विधान तो बताया ही है साथ ही देवी - देवताओं की पूजा करने का माध्यम बनाया प्रकृति को | अनेकों वृक्ष एवं वनस्पतियाँ अनुष्ठानादि में विशेष महत्त्व रखते हैं | हमारे यहाँ अरण्यों (जंगलों) का उल्लेख खूब हुआ है | पुराण , वेद , महाभारत , रामायण से ले

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*आदिकाल से इस धराधाम पर भगवान की तपस्या करके भगवान से वरदान मांगने की परंपरा रही है | लोग कठिन से कठिन तपस्या करके अपने शरीर को तपा करके ईश्वर को प्रकट करके उनसे मनचाहा वरदान मांगते थे | वरदान पाकर के जहां आसुरी प्रवृति के लोग विध्वंसक हो जाते हैं वहीं दिव्य आत्मायें लोक कल्याणक कार्य करती हैं | भग

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य का परम उद्देश्य होता है भगवत्प्राप्ति , परंतु भगवान की कृपा के साथ साथ मनुष्य को माया भी चारों ओर से घेरे रहती है | मनुष्य के द्वारा आदिकाल से भगवान को प्राप्त करने के लिए अनेकों उद्योग किए जाते रहे हैं | हमारे धर्म ग्रंथों में भ

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *परमपिता परमात्मा की अद्भुत सृष्टि में विनाश एवं सृजनजन अनवरत चलता रहता है | सतयुग से प्रारंभ हुआ सृजन समय-समय पर पुरानी सृजित वस्तुओं , सभ्यताओं एवं राष्ट्रों का विनाश कर के नई वस्तुओं , नई सभ्यता , नए-नए राष्ट्रों का सृजन परमात्मा के द्वारा किया जाता रहा है | कलियु

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सकल सृष्टि में चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को माना गया है | कालांतर में चार वर्ण बन गये | इन चारों वर्णों में हमारे पुराणों ने ब्राम्हण को सर्वश्रेष्ठ कहा है | ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ अपने त्याग एवं तपस्या से हुआ है | त्यागमय जीवन एवं तपस्या के बल पर ब्रह्म

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*हमारा देश भारत सामाजिक के साथ - साथ धार्मिक देश भी है | प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को धार्मिक दिखाना भी चाहता है | परंतु एक धार्मिक को किस तरह होना चाहिए इस पर विचार नहीं करना चाहता है | हमारे महापुरुषों ने बताया है कि धार्मिक ग्रंथों की शिक्षाओं और उसके चरित्रों को केवल उसके शाब्दिक अर्थों में नहीं ले

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हम सभी जानते हैं कि पैसा खुशी नहीं खरीद सकता है ... लेकिन कई बार हम ऐसा कार्य करते हैं जैसे कि हम थोड़े अधिक पैसे के साथ खुश हैं। हम अमीर बनने के लिए इच्छुक हैं (जब हम जानते हैं कि अमीर खुश नहीं हैं या तो); हमें उस नवीनतम गैजेट या शैली को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। हम अधिक पैसा कमा

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*इस धरा धाम पर मनुष्य के अतिरिक्त अनेक जीव हैं , और सब में जीवन है | मक्खी , मच्छर , कीड़े - मकोड़े , मेंढक , मछली आदि में भी जीवन है | एक कछुआ एवं चिड़िया भी अपना जीवन जीते हैं , परंतु उनको हम सभी निम्न स्तर का मानते हैं | क्योंकि उनमें एक ही कमी है कि उनमें ज्ञान नहीं है | इन सभी प्राणियों में सर्

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*इस धरा धाम पर जन्म लेकर के मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक आने को क्रियाकलाप संपादित करता रहता है एवं अपने क्रियाकलापों के द्वारा समाज में स्थापित होता है | कभी-कभी ऐसा होता है कि मनुष्य जन्म लेने के तुरंत बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और कभी कभी युवावस्था में उसकी मृत्यु हो जाती है | ऐसी स्

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*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य जीवन भर सहज जिज्ञासु बनकर जीवन व्यतीत करता है | मनुष्य समय-समय पर यह जानना चाहता है कि वह कौन है ? कहां से आया है ? और उसको इस सृष्टि में भेजने वाला वह परमात्मा कैसा होगा ? कोई उसे ब्रह्म कहता है कोई परब्रह्म कहता है ! अनेक नामों से उस अदृश्य शक्ति को लोग पूजते

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*सनातन धर्म में तपस्या का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है | किसी भी अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए उसका लक्ष्य करके तपस्या करने का वर्णन पुराणों में जगह जगह पर प्राप्त होता है | तपस्या करके हमारे पूर्वजों ने मनचाहे वरदान प्राप्त किए हैं | तपस्या का वह महत्व है , तपस्या के बल पर ब्रह्माजी सृजन , विष्णु ज

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*सनातन काल से हमारा देश भारत ज्ञान का भंडार एवं ज्ञानियों की उदयस्थली रहा है | संपूर्ण विश्व में कुछ ना कुछ शिक्षा हमारे देश भारत से अवश्य ग्रहण की , क्योंकि संपूर्ण विश्व सबसे प्राचीन सभ्यता हमारी ही रही है | दुर्लभ से दुर्लभ ज्ञान सनातन परंपरा में ही देखने को मिलते हैं , इन्हीं का अनुसरण करके विश्

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*जीवन एक यात्रा है | इस संसार में मानव - पशु यहाँ तक कि सभी जड़ चेतन इस जीवन यात्रा के यात्री भर हैं | जिसने अपने कर्मों के अनुसार जितनी पूंजी इकट्ठा की है उसको उसी पूंजी के अनुरूप ही दूरी तय करने भर को टिकट प्राप्त होता है | इस जीवन यात्रा में हम खूब आनंद लेते हैं | हमें इस यात्रा में कहीं नदियां घ

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*मानव जीवन में तप या तपस्या का बहुत महत्व है | प्राचीनकाल में ऋषियों-महर्षियों-राजाओं आदि ने कठिन से कठिनतम तपस्या करके लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो तपस्या के महत्व को दर्शाते हुए कहा है कि :- तप के ही बल पर ब्रह्मा जी सृष्टि, विष्णु जी पालन एवं शंकर जी संहार करते

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*संसार के सभी धर्मों का मूल सनातन धर्म को कहा जाता है | सनातन धर्म को मूल कहने का कारण यह है कि सकल सृष्टि में जितनी भी सभ्यतायें विकसित हुईं सब इसी सनातन धर्म की मान्यताओं को मानते हुए पुष्पित एवं पल्लवित हुईं | सनातनधर्म की दिव्यता का कारण यह है कि इस विशाल एवं महान धर्म समस्त मान्यतायें एवं पूजा

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