*दीपावली का पावन पर्व आज हमारे देश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में भी यह पर्व मनाया जा रहा है | मान्यता के अनुसार आज दीपमालिकाओं को प्रज्वलित करके धरती से अंधकार भगाने का प्रयास मानव समाज के द्वारा किया जाता है | दीपावली मुख्य रूप से प्रकाश का पर्व है | विचार करना चाहिए कि क्या सिर्फ वाह्य अंधका
*हमारा देश भारत बहुत ही समृद्धशाली रहा है | भारत यदि समृद्धिशाली एवं ऐश्वर्यशाली रहा है तो उसका कारण भारत की संस्कृति एवं संस्कार ही रहा है | समय समय पड़ने वाले पर्व एवं त्यौहार भारत एवं भारतवासियों को समृद्धिशाली बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं | इस समय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है
*हमारे देश भारत में नारी को आरंभ से ही कोमलता , भावकुता , क्षमाशीलता , सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है पर यही नारी आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी बनने से भी परहेज नहीं करती क्योंकि वह जानती है कि यह कोमल भाव मात्र उन्हें सहानुभूति और सम्मान की नजरों से देख सकता है, पर समानांतर खड़ा होने के लिए अपने
*नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है | इन्हीं नौ रूपों में पूरा जीवन समाहित है | प्रथम रूप शैलपुत्री के रूप में जन्म लेकर महामाया का दूसरा स्वरूप "ब्रह्मचारिणी" है | ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तपश्चारिणी अर्थात तपस्या करने वाली | कन्या रूप में ब्रह्मचर्य का पालन करना
*आदिशक्ति पराअम्बा जगदम्बा जगतजननी भगवती दुर्गा जी के पूजन का पर्व नवरात्रि प्रारम्भ होते ही पूरे देश में मातृशक्ति की आराधना घर घर में प्रारम्भ हो गयी है | जिनके बिना सृष्टि की संकल्पना नहीं की जा सकती , जो उत्पत्ति , सृजन एवं संहार की कारक हैं ऐसी महामाया का पूजन करके मनुष्य अद्भुत शक्तियां , सिद्
*सम्पूर्ण सृष्टि को परमात्मा ने जोड़े से उत्पन्न किया है | सृष्टि के मूल में नारी को रखते हुए उसका महिमामण्डन स्वयं परमात्मा ने किया है | नारी के बिना सृष्टि की संकल्पना ही व्यर्थ है | नारी की महिमा को प्रतिपादित करते हुए हमारे शास्त्रों में लिखा है :---- "वद नारी विना को$न्यो , निर्माता मनुसन्तते !
*हमारा देश भारत विभिन्न मान्यताओं और मान्यताओं में श्रद्धा व विश्वास रखने वाला देश है | इन्हीं मान्यताओं में एक है पितृयाग | पितृपक्ष में पितरों को दिया जाने वाला तर्पण पिण्डदान व श्राद्ध इसी श्रद्धा व विश्वास की एक मजबूत कड़ी है | पितृ को तर्पण / पिण्डदान करने वाला हर व्यक्ति दीर्घायु , पुत्र-पौत्र
*हमारे सनातन धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है | ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है | पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों
*सनातन धर्म एक विशाल वृक्ष है जिसकी कई शाखायें हैं | विश्व के जितने भी धर्म या सनातन के जितने भी सम्प्रदाय हैं सबका मूल सनातन ही है | सृष्टि के प्रारम्भ में जब वेदों का प्राकट्य हुआ तो "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति" की भावना के अन्तर्गत एक ही ईश्वर एवं एक ही धर्म था जिसे वैदिक धर्म कहा जाता था | धीरे
*भारतीय संस्कृति में जन जन का यह अटूट विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात जीवन समाप्त नहीं होता | यहां जीवन को एक कड़ी के रूप में माना गया है जिसमें मृत्यु भी एक कड़ी है | प्राय: मृत व्यक्ति के संबंध में यह कामना की जाती है कि अगले जन्म में वह सुसंस्कारवान तथा ज्ञानी बने | इस निमित्त जो कर्मकांड संपन्न
*सनातन धर्म में व्रत व त्यौहारों को मनाने का विशेष एक महत्व व एक विशेष उद्देश्य होता है | कुछ व्रत त्यौहार सामाजिक कल्याण से जुड़े होते हैं तो कुछ व्यक्तिगत व पारिवारिक हितों से | आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जहां पितर शांति के लिये श्राद्ध पक्ष मनाया जाता है तो वहीं शुक्ल पक्ष के आरंभ होते ही आदिशक
*सनातन धर्म इतना बृहद एवं विस्तृत है कि इसके विषय में जितना जानने का प्रयास करो उतनी ही नवीनता प्राप्त होती है | सनातन धर्म के संपूर्ण विधान को जान पाना असंभव सा प्रतीत होता है | जिस प्रकार गहरे समुद्र की थाह पाना एवं उसे तैरकर पार करना असंभव है उसी प्रकार सनातन धर्म की व्यापकता का अनुमान लगा पाना
*सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण करना अनिवार्य बताया गया है | जो व्यक्ति तर्पण / श्राद्ध नहीं कर पाता है उसके पितर उससे अप्रसन्न होकर के अनेकों बाधाएं खड़ी करते हैं | जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए श्राद्ध एवं तर्पण अनिवार्य है उसी प्रकार श्राद्ध पक्ष के कुछ न
*दान की परिभाषा:-----**द्विहेतु षड्धिष्ठानाम षडंगम च द्विपाक्युक् !* *चतुष्प्रकारं त्रिविधिम त्रिनाशम दान्मुच्याते !!**अर्थात :-- “दान के दो हेतु, छः अधिष्ठान, छः अंग, दो प्रकार के परिणाम (फल), चार प्रकार, तीन भेद और तीन विनाश साधन हैं, ऐसा कहा जाता है ।”**👉 दान के दो हेतु हैं :--- दान का थोडा होना
*सनातन धर्म में मनुष्य की अंतिम क्रिया से लेकर की श्राद्ध आदि करने के विषय में विस्तृत दिशा निर्देश दिया गया है | प्रायः यह सुना जाता है पुत्र के ना होने पर पितरों का श्राद्ध तर्पण या फिर अंत्येष्टि क्रिया कौन कर सकता है ? या किसे करना चाहिए ?? इस विषय पर हमारे धर्म ग्रंथों में विस्तृत व्याख्या दी ह
*सनातन धर्म में मानव कल्याण के लिए अनेकों व्रत विधान की एक लंबी श्रृंखला है जो कि जो मानव जीवन के कष्टों को हरण करते हुए मनुष्य को मोक्ष दिलाने का साधन भी है | इसी क्रम में भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को "अनंत चतुर्दशी" का व्रत किया जाता है | भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है यह व्रत | अनन्त अर्
*आदिकाल से ही हमारे ऋषियों ने प्रकृति के महत्व को समझते हुए प्रकृति पूजा का विधान बनाया था | उस विधान को मान करके हमारे पूर्वजों ने प्रकृति पूजा प्रारंभ की | प्रकृति में वैसे तो अनेकों प्रकार की नदियां पहाड़ एवं अन्य प्रतीकों की पूजा होती रही है परंतु इन सब में सबसे विशेष है वृक्ष एवं वनस्पतियों की
*इस सृष्टि के आदिकाल में जहाँ सनातन धर्म के अतिरिक्त कोई अन्य धर्म नहीं था वहीं सनातन धर्म के विद्वान ऋषि वैज्ञानिकों ने ऐसे - ऐसे रहस्यों को संसार के समक्ष रखा जिसको आज के वैज्ञानिक अभी तक नहीं समझ पा रहे हैं | मानव जीवन में समय के महत्त्वपूर्ण स्थान एवं योगदान को समझते हुए हमारे पूर्वज ऋषि वैज्ञान
*इस संसार में कर्म को ही प्रधान माना गया है | कर्म तीन प्रकार के होते हैं-संचित,प्रारब्ध और क्रियमाण | संचित का अर्थ है-संपूर्ण,कुलयोग | अर्थात मात्र इस जीवन के ही नहीं अपितु पूर्वजन्मों के सभी कर्म जो आपने उन जन्मों में किये हैं | आपने इन कर्मों को एकत्र करके अपने खाते में डाल लिया है | ‘प्रारब्ध’
*सनातन धर्म दिव्य एवं स्वयं में वैज्ञानिकता को आत्मसात किये हुए है | सनातन के प्रत्येक व्रत - त्यौहार स्वयं में विशिष्ट हैं | इसी कड़ी में सावन महीने का विशेष महत्व है | सनातन धर्म में वर्ष भर व्रत आते रहते हैं और लोग इनका पालन भी करते हैं , परंतु जिस प्रकार सभी संक्रांतियों में मकर संक्रान्ति , सभी