*इस धरा धाम पर जन्म लेकर के मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक आने को क्रियाकलाप संपादित करता रहता है एवं अपने क्रियाकलापों के द्वारा समाज में स्थापित होता है | कभी-कभी ऐसा होता है कि मनुष्य जन्म लेने के तुरंत बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और कभी कभी युवावस्था में उसकी मृत्यु हो जाती है | ऐसी स्थिति में या किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर लोग इसे अकाल मृत्यु की संज्ञा दे देते हैं | जबकि सत्य यह है कि इस पृथ्वी पर जन्म लेने के पहले ही मनुष्य की मृत्युतिथि निश्चित हो जाती है | हमारे शास्त्रों में लिखा कि :-- आयु: वित्तम् च धर्मम् च , विद्या निधनमेव च ! पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थ्यैव हि देहिन: !! अर्थात :- जीव के गर्भ में आने पर पर ही उसकी आयु , धन ,
धर्म , विद्या एवं मृत्यु तिथि का सृजन हो जाता है | मनुष्य जन्म लेने के बाद पल प्रतिपल अपनी मृत्यु की ओर अग्रसर होता रहता है , परंतु माया में भूलकर मनुष्य यह विचार करता है कि हम युवा हो गए हैं | वह यह नहीं जानता है कि वह जितनी आयु का हुआ है उसकी कुल आयु में से इतने वर्ष कम हो गये हैं | मनुष्य अपने परिवार / समाज में इतना व्यस्त हो जाता है कि वह अपनी मृत्यु को भूला रहता है | मनुष्य की आयु का निर्धारण उसके पूर्व जन्मों के प्रारब्ध के अनुसार होता हैं | इस जन्म में सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है परंतु आगे होने वाले जन्म को सुधारने के लिए मनुष्य को सकारात्मक कार्य करते रहना चाहिए , जिससे कि उसका आने वाला जन्म और भी दिव्य बनकर उसे प्राप्त हो | पूर्ण आयु के पहले मृत्यु हो जाने पर उससे दुर्मरण या अकाल मृत्यु कहा जाता है | मनुष्य की मृत्यु भले ही पूर्व निर्धारित होती है परंतु लोक
भाषा में उसे अकाल मृत्यु ही कहा जाता है |* *आज समाज में इस प्रकार के अनेक मनुष्य मिल जाएंगे जो न तो अपने कर्मों को देखते हैं और न हीं अपने कर्तव्य का पालन करते हैं | किसी भी विपरीत परिणाम के लिए ऐसे लोग ईश्वर को दोषी मानते हैं जबकि दोषी ईश्वर नहीं होता है बल्कि दोषी आपके कर्म व आप स्वयं होते हैं | कुछ लोग अधिक से अधिक धन कमाने के लिए नैतिक अनैतिक सभी प्रकार के कार्य करने को भी तत्पर हो जाते हैं , जबकि उनके भाग्य में जितना धन आना होता है वह पहले ही लिखा जा चुका होता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहता हूं कि यदि मनुष्य किसी भी कारणवश अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है तो यह मान लेना चाहिए उसकी आयु पहले से इतनी ही निर्धारित की गई थी , उसके पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार उसको इतने ही दिन की आयु प्राप्त हुई थी एवं उसकी मृत्यु का कारण भी पहले से निश्चित होता है | मनुष्य ऐसे अवसरों पर विह्वल होकर के अपना विवेक को खो देता है और ईश्वर को दोषी मानने लगता है | जबकि हम जहां निवास कर रहे हैं इसका नाम ही मृत्युलोक है जिसका अर्थ होता है मौत का घर | जब हमारा जन्म ही मौत के घर में हुआ है तो पूर्णकालिक मृत्यु हो या अकाल मृत्यु यह दोनों ही स्वाभाविक है |* *मनुष्य को अपने एक एक पल का सकारात्मकता से सदुपयोग करते रहना चाहिए क्योंकि इस संसार को छोड़कर कब जाना पड़ जाए यह कोई नहीं जानता |*