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रहस्य

hindi articles, stories and books related to Rahasya


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*इस संसार में भक्तजन सदैव से निर्गुण निराकार एवं सगुण साका की आराधना करते आये हैं | कोई निराकार ब्रह्म की पूजा करता है तो कोई साकार की | साकार को जाने बिना निराकार को नहीं जाना जा सकता है | जो प्रेम , भाव एवं लीला का अनुभव सगुण साकार में हो सकता है वह निर्गुण निराकार में शायद ही हो पाये | कुछ लोग कह

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🏵️🌟🏵️🌟🏵️🌟🏵️🌟🏵️🌟🏵️🌟 *‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*☘️🌞☘️🌞☘️🌞☘️🌞☘️🌞☘️🌞*भगवत्प्रेमी सज्जनों ,* *तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस अपने आप में अनेक गूढ़ार्थों को समेटे हुए आवश्यकता है इसकी सत्यता को जानने की | मानस ऐसा अथाह सागर है

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*मानव जीवन बड़ा ही विचित्र है यहां समय-समय पर मनुष्य को सुख एवं दुख प्राप्त होते रहते हैं | किसी - किसी को ऐसा प्रतीत होता है कि जब से उसका जन्म हुआ तब से लेकर आज तक उसको दुख ही प्राप्त हुआ है ! ऐसा हो भी सकता है क्योंकि मनुष्य का इस संसार में यदि कोई सच्चा मित्र है तो वह दुख ही है क्योंकि यह दुख स

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*मानव जीवन में प्रकृति का बहुत ही सराहनीय योगदान होता है | बिना प्रकृति के योगदान के इस धरती पर जीवन संभव ही नहीं है | यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति का प्रत्येक कण मनुष्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है | प्रकृति के इन्हीं अंगों में एक महत्वपूर्ण एवं विशेष घटक है वृक्ष | वृक्ष का मानव

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*सृष्टि के आदिकाल से ही इस धराधाम पर सनातन धर्म की नींव पड़ी | तब से लेकर आज तक अनेकों धर्म , पंथ , सम्प्रदाय जो भी स्थापित हुए सबका मूल सनातन ही है | जहाँ अनेकों सम्प्रदाय समय समय बिखरते एवं मिट्टी में मिलते देखे गये हैं वहीं सनातन आज भी सबका मार्गदर्शन करता दिखाई पड़ता है | सनातन धर्म अक्षुण्ण इसल

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*मानव जीवन में मनुष्य एक क्षण भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है क्योंकि यह सृष्टि ही कर्म प्रधान है | मनुष्य को जीवन में सफलता एवं असफलता प्राप्त होती रहती है जहां सफलता में लोग प्रसन्नता व्यक्त करते हैं वही असफलता मिलने पर दुखी हो जाया करते हैं और वह कार्य पुनः करने के लिए जल्दी तैयार नहीं होते | जी

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*सनातन धर्म में कर्मफल के सिद्धांत को शास्त्रों एवं समय समय पर ऋषियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है | कर्म को तीन भागों में विभाजित किया गया गया है जिन्हें क्रियमाण , संचित एवं प्रारब्ध कहा जाता है |इन्हें समझने की आवश्यकता है | क्रियमाण कर्म तत्काल फल प्रदान करते हैं | ये प्राय: शारीरिक होते हैं

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*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के भोग भोगता हुआ पूर्ण आनंद की प्राप्ति करना चाहता है | मनुष्य को पूर्ण आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका तन एवं मन दोनों ही स्वस्थ हों | मनुष्य इस धरा धाम पर आने के बाद अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है तब वह उसकी चिकित्सा किसी चिकित्सक स

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*मानव जीवन में सामाजिकता , भौतिकता एवं वैज्ञानिकता के विषय में अध्ययन करना जितना महत्वपूर्ण है , उससे कहीं महत्वपूर्ण है स्वाध्याय करना | नियमित स्वाध्याय जीवन की दिशा एवं दशा निर्धारित करते हुए मनुष्य को सद्मार्ग पर अग्रसारित करता है | स्वाध्याय का अर्थ है :- स्वयं क

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*मानव जीवन अत्यनेत दुर्लभ है , इस सुंदर शरीर तो पाकरके मनुष्य के लिए कुछ भी करना असम्भव नहीं है | किसी भी कार्य में सफलता का सफल सूत्र है निरंतर अभ्यास | प्राय: लोग शिकायत करते हैं कि मन तो बहुत होता है कि सतसंग करें , सदाचरण करें परंतु मन उचट जाता है | ऐसे लोगों को स

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*मानव जीवन बड़ा ही रहस्यमय है | इस जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के आ

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*ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की , अनेकों प्रकार के जीव उत्पन्न किये | इन्हीं जीवों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को प्रकट किया | सृष्टि के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है , मानव जीवन पाकर के मनुष्य में सद्गुण का आरोपण करने के उद्देश्य ईश्वर ने अपना ही एक स्वरूप बनाकर स्वयं के प्रतिनिधि के रूप में इस धरा धाम पर

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*ईश्वर द्वारा बनाई हुई यह सृष्टि बहुत ही रहस्यमय है | इस रहस्यमय सृष्टि में अनेकों अनसुलझे प्रश्न मनुष्य को परेशान करते रहते हैं , इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो वह किसी न किसी ढंग से ढूंढ लेता है परंतु सबसे जटिल प्रश्न यह है कि "मैं कौन हूँ ?" मनुष्य आज तक यह स्वयं नहीं जान पाया कि "मैं कौन हूँ ?" किस

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*इस धरा धाम पर मनुष्य के साथ जुड़ी है मानवता एवं मानवीय गरिमा | साधारण जीवन से उठते हुए मानवीय गरिमा का पालन करके मानवता को अपनाने वाले ही महापुरुष कहे गए है | एक साधारण नागरिक का कर्तव्य मात्र अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने तक होता है | दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करना साधारण नागरिक का कर

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*सुंदर सृष्टि का निर्माण करके परमात्मा चौरासी लाख योनियों के मध्य मनुष्य को अनगिनत विभूतियों एवं अनन्त संपदाओं से सुसज्जित करके इस धरा धाम पर भेजा है | सही एवं गलत का निर्णय करने के लिए उसमें विवेक नामक शक्ति आरोपित कर दी है | सही समय पर उठाए गए सही कदम जीवन की सही दि

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*इस सृष्टि का निर्माण प्रकृति से हुआ है | प्रकृति में मुख्य रूप से पंचतत्व एवं उसके अनेकों अंग विद्यमान है जिसके कारण इस सृष्टि में जीवन संभव हुआ है | इसी सृष्टि में अनेक जीवो के मध्य मनुष्य का जन्म हुआ अन्य सभी प्राणियों के अपेक्षा सुख-दुख की अ

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*इस संसार में मनुष्य अपना जीवन यापन करने के लिए अनेकानेक उपाय करता है जिससे कि उसका जीवन सुखमय व्यतीत हो सके | जीवन इतना जटिल है कि इसे समझ पाना सरल नहीं है | मनुष्य का जन्म ईश्वर की अनुकम्पा से हुआ है अत: मनुष्य को सदैव ईश्वर के अनुकूल रहते हुए उनकी शरण प्पाप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए | इसी

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य संसार को अपना मानने लगता है | माता - पिता , भाई - बहन , घर एवं समाज के साथ पति - पत्नी एवं बच्चों को अपना मान कर उन्हीं के हितार्थ कार्य करते हुए मनुष्य का जीवन व्यतीत हो जाता है | परंतु यह विचार करना चाहिए कि मनुष्य का अपना क्या है ? जन्म माता पिता ने दिया ! श

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🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥 ‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️ 🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣 *!! तात्त्विक अनुशीलन !!* 🩸 *अठारहवाँ - भाग* 🩸🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️*गतांक से आगे :--*➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖*सत्रहवें भाग* में आपने पढ़ा :*अतुलित बल धामा ! अञ्जनिपुत्र पवनसुत

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*सृष्टि में परमात्मा अनेक जीवों की रचना की है , छोटे से छोटे एवं बड़े से बड़े जीवो की रचना करके परमात्मा ने इस सुंदर सृष्टि को सजाया है | परमात्मा की कोई रचना व्यर्थ नहीं की जा सकती है | कभी कभी मनुष्य को यह लगता है कि परमात्मा ने आखिर इतने जीवों की रचना क्यों की | इस सृष्टि में जितने भी जीव हैं अप

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