*सनातन धर्म में कर्मफल के सिद्धांत को शास्त्रों एवं समय समय पर ऋषियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है | कर्म को तीन भागों में विभाजित किया गया गया है जिन्हें क्रियमाण , संचित एवं प्रारब्ध कहा जाता है |इन्हें समझने की आवश्यकता है | क्रियमाण कर्म तत्काल फल प्रदान करते हैं | ये प्राय: शारीरिक होते हैं
*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के भोग भोगता हुआ पूर्ण आनंद की प्राप्ति करना चाहता है | मनुष्य को पूर्ण आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका तन एवं मन दोनों ही स्वस्थ हों | मनुष्य इस धरा धाम पर आने के बाद अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है तब वह उसकी चिकित्सा किसी चिकित्सक स
*मानव जीवन में सामाजिकता , भौतिकता एवं वैज्ञानिकता के विषय में अध्ययन करना जितना महत्वपूर्ण है , उससे कहीं महत्वपूर्ण है स्वाध्याय करना | नियमित स्वाध्याय जीवन की दिशा एवं दशा निर्धारित करते हुए मनुष्य को सद्मार्ग पर अग्रसारित करता है | स्वाध्याय का अर्थ है :- स्वयं क
*मानव जीवन अत्यनेत दुर्लभ है , इस सुंदर शरीर तो पाकरके मनुष्य के लिए कुछ भी करना असम्भव नहीं है | किसी भी कार्य में सफलता का सफल सूत्र है निरंतर अभ्यास | प्राय: लोग शिकायत करते हैं कि मन तो बहुत होता है कि सतसंग करें , सदाचरण करें परंतु मन उचट जाता है | ऐसे लोगों को स
*मानव जीवन बड़ा ही रहस्यमय है | इस जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के आ
*ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की , अनेकों प्रकार के जीव उत्पन्न किये | इन्हीं जीवों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को प्रकट किया | सृष्टि के कण-कण में ईश्वर व्याप्त है , मानव जीवन पाकर के मनुष्य में सद्गुण का आरोपण करने के उद्देश्य ईश्वर ने अपना ही एक स्वरूप बनाकर स्वयं के प्रतिनिधि के रूप में इस धरा धाम पर
*ईश्वर द्वारा बनाई हुई यह सृष्टि बहुत ही रहस्यमय है | इस रहस्यमय सृष्टि में अनेकों अनसुलझे प्रश्न मनुष्य को परेशान करते रहते हैं , इन सभी प्रश्नों का उत्तर तो वह किसी न किसी ढंग से ढूंढ लेता है परंतु सबसे जटिल प्रश्न यह है कि "मैं कौन हूँ ?" मनुष्य आज तक यह स्वयं नहीं जान पाया कि "मैं कौन हूँ ?" किस
*इस धरा धाम पर मनुष्य के साथ जुड़ी है मानवता एवं मानवीय गरिमा | साधारण जीवन से उठते हुए मानवीय गरिमा का पालन करके मानवता को अपनाने वाले ही महापुरुष कहे गए है | एक साधारण नागरिक का कर्तव्य मात्र अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने तक होता है | दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण न करना साधारण नागरिक का कर
*सुंदर सृष्टि का निर्माण करके परमात्मा चौरासी लाख योनियों के मध्य मनुष्य को अनगिनत विभूतियों एवं अनन्त संपदाओं से सुसज्जित करके इस धरा धाम पर भेजा है | सही एवं गलत का निर्णय करने के लिए उसमें विवेक नामक शक्ति आरोपित कर दी है | सही समय पर उठाए गए सही कदम जीवन की सही दि
*इस सृष्टि का निर्माण प्रकृति से हुआ है | प्रकृति में मुख्य रूप से पंचतत्व एवं उसके अनेकों अंग विद्यमान है जिसके कारण इस सृष्टि में जीवन संभव हुआ है | इसी सृष्टि में अनेक जीवो के मध्य मनुष्य का जन्म हुआ अन्य सभी प्राणियों के अपेक्षा सुख-दुख की अ
*इस संसार में मनुष्य अपना जीवन यापन करने के लिए अनेकानेक उपाय करता है जिससे कि उसका जीवन सुखमय व्यतीत हो सके | जीवन इतना जटिल है कि इसे समझ पाना सरल नहीं है | मनुष्य का जन्म ईश्वर की अनुकम्पा से हुआ है अत: मनुष्य को सदैव ईश्वर के अनुकूल रहते हुए उनकी शरण प्पाप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए | इसी
*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य संसार को अपना मानने लगता है | माता - पिता , भाई - बहन , घर एवं समाज के साथ पति - पत्नी एवं बच्चों को अपना मान कर उन्हीं के हितार्थ कार्य करते हुए मनुष्य का जीवन व्यतीत हो जाता है | परंतु यह विचार करना चाहिए कि मनुष्य का अपना क्या है ? जन्म माता पिता ने दिया ! श
🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥 ‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️ 🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣 *!! तात्त्विक अनुशीलन !!* 🩸 *अठारहवाँ - भाग* 🩸🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️💧🏵️*गतांक से आगे :--*➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖*सत्रहवें भाग* में आपने पढ़ा :*अतुलित बल धामा ! अञ्जनिपुत्र पवनसुत
*सृष्टि में परमात्मा अनेक जीवों की रचना की है , छोटे से छोटे एवं बड़े से बड़े जीवो की रचना करके परमात्मा ने इस सुंदर सृष्टि को सजाया है | परमात्मा की कोई रचना व्यर्थ नहीं की जा सकती है | कभी कभी मनुष्य को यह लगता है कि परमात्मा ने आखिर इतने जीवों की रचना क्यों की | इस सृष्टि में जितने भी जीव हैं अप
*सनातन धर्म में प्रत्येक तिथियों के विशेष देवता बताए गए हैं , अमावस्या तिथि के देवता पितर होते हैं | वर्ष भर की प्रत्येक अमावस्या को पितरों का पूजन श्राद्ध तर्पण आदि किया जाता रहा परंतु आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सोलह
*अाश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों के प्रति श्रद्धास्वरूप मनाया जाने वाला पितृपक्ष अपनी संपूर्णता की ओर अग्रसर है , इसलिए इस के विधान के विषय में प्रत्येक जनमानस को अवश्य जानना चाहिए | प्रायः लोग पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन करा के पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करते है
*संसार में अनेकों धर्म हैं जो अपनी कट्टरता के लिए प्रसिद्ध है परंतु इन सब के बीच में सनातन धर्म इतना दिव्य है जिसमें कट्टरता नाम की चीज नहीं है | यह इतना लचीला है कि लोग इसे अपने अनुसार मोड़ लेते हैं | सनातन धर्म में अनेकों व्रत / उपवास एवं उनके नियम बताए गये हैं जिसका पालन करने से मनुष्य को उसका फ
*सनातन धर्म में आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों के लिए विशेष रूप से पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है | ऐसी मान्यता है कि इन दिनों सभी पितर गण बिना आवाहन किए ही पृथ्वीलोक पर विचरण करने के लिए आते हैं तथा अपने परिवार के लोगों के द्वारा अर्पित श्राद्ध तर्पण आदि से तृप्त होकर पुनः पितृलोक को चले जाते हैं इसी
*इस संसार को कर्म प्रधान कहा गया है | जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है यहां तक कि मृत्यु के बाद कर्म की भूमिका के कारण ही जीव को अनेक गतियां प्राप्त होती है | अपने कर्म के अनुसार मृत्यु के उपरांत कोई देवता , कोई पितर , कोई प्रेत , कोई हाथी / चींटी या वृक्ष आदि बन जाता है | ऐसे म
*आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए समर्पित है | श्रद्धा से अपने पूर्वजों को याद करने एवं उनका तर्पण आदि करने के कारण इसको श्राद्ध पक्ष कहा जाता है | जिस प्रकार सनातन धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए विशेष दिन निश्चित किया गया है उसी प्रकार अपने पितरों के लिए भी अाश्विन कृष्ण पक्ष को विशेष द