उस रोज टेलीविजन पर मैं एक राजनेता का जन्म दिन उत्सव देख रहा था। लगा मानो किसी अवतारी पुरुष का जन्म दिन हो। नेताजी के बगल में उनका पूरा कुनबा मौजूद था। थोड़ी देर में मुख्यमंॊी से लेकर तमाम राजनेता उनके यहां पहुंचने लगे। दिखाया गया कि नेताजी ने अपने किसी शुभचिंतक को निराश नहीं किया। सभी के हाथों से फूलों का गुलदस्ता लिया। हालांकि कनखियों से यह भी दिखाई पड़ रहा था कि नेताजी इस सब से उकताए हुए से लग रहे थे। वे एहसान की मुद्रा में कथित शुभचिंतकों से फूल ले जरूर रहे थे, लेकिन लगे हाथ उनसे बगल हटने का इशाऱा भी करते जा रहे थे। केक काटने से लेकर मिठाई खाने खिलाने और नेताजी के महिमामंडन के बाद कैमरे का फोकस बाहर की तरफ हुआ तो देखता हूं कि बाहर उल्लासित समथॆत नाच -गा रहे हैं। कुछेक तो पटाखे फोड़ते हुए भांगड़ा भी कर रहे हैं। यह सब देख मैं सोच में पड़ गया कि आखिर ये कौन लोग हैं जिन्हें नामचीनों का का जन्म दिन बकायदा याद रहता है। जन्म दिन के बहाने जो कुछ भी नजर आया उसे देख कर यह समझना मुश्किल नहीं था कि इसके लिए पूवॆ तैयारियां की गई होगी। । अन्यथा इतना बड़ा आयोजन आनन -फानन नहीं हो सकता। राजनेताओं के जन्म दिन के मामले में उत्तर -दॐिण का भेद मिटता जा रहा है। छाॊ जीवन में दॐण के कुछ राजनेताओं के भव्य जन्म दिन के किस्से बहुत सुने -देखे थे। लेकिन हिंदी पट्टी में भी इसका चलन शायद १९९० के दशक से शुरू हुआ। जब राजनीति में आयाराम -गयाराम संस्कृति जोर पकड़ने लगी। ेराजा -महाराजाओं की तरह चरण वंदना करने वालों को उपकृत करने का सिलसिला शुरू हुआ। वैसे भव्य तरीके से जन्म दिन या पारिवारिक समारोह मनाने वाले वे अकेले राजनेता नहीं हैं जिन्हें टेलीविजन पर दिखाया जा रहा है। हिंदी पट्टी के ही एक और दिग्ग्ज के गांव का महोत्सव अब राष्टऒीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्टऒीय स्तर पर चॆचित होता जा रहा है। क्योंकि इसमें एक से बढ़ एक चमकते -दमकते चेहरे शामिल होते हैं। इस आयोजन की जितनी अलोचना होती है इसकी भव्यता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। ताकतवर तबके के जन्म दिन या व्यक्तिगत समारोहों की भव्यता और इसमें नजर आने वाले कथित शुभचिंतकों का समपॆण मुझे वास्तविक नहीं लगता। क्योंकि आज के दौर में लोग अपनों का जन्म दिन या अन्य खास अवसर ही याद नहीं रखते। यदि ताकतवर तबके को याद रखा जाता है तो निश्चय ही इसके पीछे उनका स्वाथॆ या अति भक्ति दिखाने का मानसिकता काम करती है। वैसे हर किसी के मामले में यह नहीं जा सकता। लेकिन इसमेंं अस्वाभाविकता तो दिखाई पड़ती ही है। मैने सुना है कि एक बड़े फिल्म स्टार के सितारे जब बुलंद थे तब उसके जन्म दिन पर ट्रकों में भर -भर कर फूल भेजे जाते थे। लेकिन सितारे ग ॆदिश में जाते ही सभी ने उनसे मुंह मोड़ लिया और प्रतिकूल परिस्थितियों में उनके जन्म दिन पर एक फूल देने वाला कोई नहीं बचा। देश के एक और बड़े कारोबारी के निजी और पारिवारिक कायॆक्रम की भव्यता पेज थ्री में छाई रहती थी। लेकिन जव आॆथिक अपराध में वे जेल गए तो सभी ने उनसे मुंह मोड़ लिया। इसलिए देश के जनजीवन से जन्म दिन जैसी चाटुकारिता संस्कृति की जितनी जल्दी विदाई हो जाए उतना ही अच्छा।