हार स्वीकार करने वाला ही जीवन में निराश होता है। जो हारने के उपरान्त भी हार नहीं मानते हैं और अपने हार के कारणों को खोजकर उनमें सुधार लाते हुए पुनः प्रयास करते हैं, वे अवश्य जीतते हैं! न हार मानने वाला ही पुनः प्रयास करता है। वस्तुतः यह सत्य है कि हार के बाद ही जीत है!
क्रोध से अपना अहित होता है। क्रोध का कुटम्ब अवगुण सम्पन्न है। आईए क्रोध के कुटुम्ब का परिचय प्राप्त करें। क्रोध का दादा है-द्वेष! क्रोध का पिता है-भय! क्रोध की माता है-उपेक्षा! क्रोध की एक लाडली बहन है-जिद्द! क्रोध का अग्रज है-अंहकार! क्रोध की पत्नी है-हिंसा! क्रोध की पुत्रियां हैं-निंदा और चुगली!
हम निज विचारों से ही निज व्यक्तित्व निर्मित करते हैं। यदि हम अपने विचारों को सृजनात्मक व स्फूर्तिमय बना लें तो इससे हम अपना ही निर्माण करेंगे।हमारी इच्छाएं, आवश्यकताएं, भावनाएं और आर्दश हमारे विचार ही तो हैं।विचारों के संयम से ही व्यक्त्वि का संयम होता है। हमारे विचारों की समृद्धि व प्रखरता ही हमारे
सभी समाचार पत्र और पत्रिकाएं राशिफल छापते हैं। अब तो नैट पर, अपने मोबाईल पर दैनिक राशिफल पढ़ने को मिल जाता है। प्राय: समाचार पत्रों में सूर्य राशि से जोकि अंग्रेजी तारीख के अनुसार अमुक अवधि से अमुक अवधि में उत्पन्न्ा होने पर ज्ञात होती है के अनुसार राशिफल लिखा रहता है। यह सूर्य राशि होती है औ
एक बार की बात है कि सभी ग्रामवासियों ने यह निर्णय लिया कि वर्षा के लिए प्रार्थना करेंगे। प्रार्थना के दिन सभी ग्रामवासी पूजास्थल पर एकत्र हुए। उनमें से एक बालक छाता लेकर उपस्थित हुआ।एक वर्ष के बच्चे की भावना का उदाहरण इससे अच्छा नहीं हो सकता है कि जब उसे गोद मे उठाकर हवा में उछालते हैं तो वह हंसता ह
बस दलपतपुर आकर रुक गई। सवारियों का आवागमन चरम सीमा पर था। बस ठसाठस भरी थी। लेकिन फिर भी कंडक्टर का आवाज दे-देकर यात्रियों को बुलाना वातावरण में कोलाहल पैदा कर रहा था। एक बूढ़ी औरत के बस के पायदान पर पैर रखते ही कंडक्टर ने सीटी दे दी। कंपकंपाते हाथों से बुढि़या की पोटली सड़क पर ही गिर पड़ी। ‘रुकके भ
आप स्कूटर की टंकी फुल कराकर मेरठ से अलीगढ़ की यात्रा करने के लिए निकल पड़े हैं पर आपका पेट्रोल आधे रास्ते में ही समाप्त हो गया और आपकी यात्रा रुक गयी। स्पष्ट है कि जब तक आपके पास क्षमता है तब तक ही आप सफलता की सीढ़ी चढ़ सकेंगे। सफलता उसी अनुपात में मिलती हैजिस अनुपात में आपके पास वांछित वस्तु पाने
पूर्व में सात भाग में सूर्योपनिषद् की चर्चा की गई है। इस चर्चा में सूर्योपनिषद् के अमृत का रसास्वादन कराया गया था। यदि आप सूर्योपनिषद् को पुस्तक रूप में अपने मेल पर मुफ्त में पाना चाहते हैं तो मित्रता का अनुरोध करते हुए उपनिषदों का अमृत वेबपेज का अनुसरण करें और मुझे मेरे अधोलिखित मेल पर उक्त पुस्त
यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते। अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य- भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति। पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति। मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्। सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां स
बात उन दिनों की है जब मैं दसवी कक्षा की छात्रा थी। किसी के नाम के पूर्व डाॅ. की उपाधि देखकर मन असंख्य अभिलाषाओं से भर उठता। मैं सोचती काश, मेरे नाम से पूर्व भी यह उपाधि लगे। साहित्य लेखन में रुचि होने के कारण कविता, कहानी आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी जिससे मैं स्कूल की प्राचार्या से
ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म। घृणिरिति द्वे अक्षरे। सूर्य इत्यक्षरद्वयम्। आदित्य इति त्रीण्यक्षराणि। एतस्यैव सूर्य स्याष्टाक्षरो मनुः।।7।। ॐ यह प्रणव एकाक्षर ब्रह्म है। घृणि और सूर्य यह दो दो अक्षरों के मन्त्र हैं तथा आदित्यः इसमें तीन अक्षर हैं। इन सबके सहयोग से सूर्यदेव का आठ अक्षरों वाला महामन्त्र बनता
शब्दनगरी पर हम निरंतर कुछ नया करने का प्रयास करते रहते हैं, जिससे इस मंच से जुड़े सभी सदस्य लाभान्वित हो सकें।इस क्रम में, अब शब्दनगरी पर आप अपने लेखों मे #हैशटैग का भी प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण - #हिन्दी, #bharat अपने लेख मे हैशटैग का प्रयोग करने पर अन्य लेखों के साथ साथ आपका लेख भी प्रदर्शित होगा।
नमो मित्राय भानवे मृत्योर्मा पाहि। भ्राजिष्णवे विश्वहेतवे नमः। सूर्याद्भवनित भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च। चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः। चक्षुर्धाता दधातु नः। आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि।तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्। सविता पश्चात्तत्सविता