शून्यता में निद्रा की बन,
उमड़ आते ज्यों स्वप्निल घन;
पूर्णता कलिका की सुकुमार,
छलक मधु में होती साकार;
हुआ त्यों सूनेपन का भान,
प्रथम किसके उर में अम्लान?
और किस शिल्पी ने अनजान,
विश्व प्रतिमा कर दी निर्माण?
काल सीमा के संगम पर,
मोम सी पीड़ा उज्जवल कर।
उसे पहनाई अवगुण्ठन,
हास औ’ रोदन से बुन-बुन!
कनक से दिन मोती सी रात,
सुनहली सांझ गुलाबी प्रात;
मिटाता रंगता बारम्बार,
कौन जग का यह चित्राधार?
शून्य नभ में तम का चुम्बन,
जला देता असंख्य उडुगण;
बुझा क्यों उनको जाती मूक,
भोर ही उजियाले की फूंक?
रजतप्याले में निद्रा ढाल,
बांट देती जो रजनी बाल;
उसे कलियों में आंसू घोल,
चुकाना पड़ता किसको मोल?
पोछती जब हौले से वात,
इधर निशि के आंसू अवदात;
उधर क्यों हंसता दिन का बाल,
अरुणिमा से रंजित कर गाल?
कली पर अलि का पहला गान,
थिरकता जब बन मृदु मुस्कान,
विफल सपनों के हार पिघल,
ढुलकते क्यों रहते प्रतिपल?
गुलालों से रवि का पथ लीप,
जला पश्चिम मे पहला दीप,
विहँसती संध्या भरी सुहाग,
दृगों से झरता स्वर्ण पराग;
उसे तम की बढ़ एक झकोर,
उड़ा कर ले जाती किस ओर?
अथक सुषमा का स्रजन विनाश,
यही क्या जग का श्वासोच्छवास?
किसी की व्यथासिक्त चितवन,
जगाती कण कण में स्पन्दन;
गूँथ उनकी सांसो के गीत,
कौन रचता विराट संगीत?
प्रलय बनकर किसका अनुताप,
डुबा जाता उसको चुपचाप,
आदि में छिप जाता अवसान,
अन्त में बनता नव्य विधान;
सूत्र ही है क्या यह संसार,
गुंथे जिसमें सुखदुख जयहार?
महादेवी वर्मा की अन्य किताबें
महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में सन (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) ईस्वी में एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राचार्य थे. माता विदुषी और धार्मिक स्वभाव की महिला थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग के क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई थी. अत्यधिक परिश्रम के फल स्वरुप इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम.ए. तक की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष 1933 में इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया साथ ही नारी की स्वतंत्रता के लिए ये सदैव संघर्ष करती रही। महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाज सुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे।
महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं, अतः उनके काव्य में आत्मा-परमात्मा के मिलन विरह तथा प्रकृति के व्यापारों की छाया स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। वेदना और पीड़ा महादेवी जी की कविता के प्राण रहे। उनका समस्त काव्य वेदनामय है। ये 'चांद' पत्रिका की संपादिका भी रहीं। इनकी साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें 'सेकसरिया' तथा 'मंगला प्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा इन्हें एक लाख रुपए का भारत-भारती पुरस्कार दिया गया तथा इसी वर्ष काव्य ग्रंथ यामा पर इन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये जीवन पर्यंत प्रयाग में ही रहकर साहित्य साधना करती रहीं। आधुनिक काव्य के साथ साज-श्रंगार में इनका अविस्मरणीय योगदान है। इनके काव्य में उपस्थित विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अमूल्य मानी जाती है। करुणा और भावुकता इनके काव्य की पहचान है। 11 सितंबर, 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गई। महादेवी वर्मा की विभिन्न रचनाएं इसप्रकार है ,दीपशिखा, रश्मि, नीरजा, श्रृंखला की कड़ियां, निहार, यामा, सांध्य गीत, भाव पक्ष आदि D