किस सुधिवसन्त का सुमनतीर,
कर गया मुग्ध मानस अधीर?
वेदना गगन से रजतओस,
चू चू भरती मन-कंज-कोष,
अलि सी मंडराती विरह-पीर!
मंजरित नवल मृदु देहडाल,
खिल खिल उठता नव पुलकजाल,
मधु-कन सा छलका नयन-नीर!
अधरों से झरता स्मितपराग,
प्राणों में गूँजा नेह-राग,
सुख का बहता मलयज समीर!
घुल घुल जाता यह हिमदुराव,
गा गा उठते चिर मूक भाव,
अलि सिहर सिहर उठता शरीर!