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जीवन

23 फरवरी 2022

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तुहिन के पुलिनों पर छबिमान,
किसी मधुदिन की लहर समान;
स्वप्न की प्रतिमा पर अनजान,
वेदना का ज्यों छाया-दान;
विश्व में यह भोला जीवन—
स्वप्न जागृति का मूक मिलन,
बांध अंचल में विस्मृतिधन,
कर रहा किसका अन्वेषण?
धूलि के कण में नभ सी चाह,
बिन्दु में दुख का जलधि अथाह,
एक स्पन्दन में स्वप्न अपार,
एक पल असफलता का भार;
सांस में अनुतापों का दाह,
कल्पना का अविराम प्रवाह;
यही तो है इसके लघु प्राण,
शाप वरदानों के सन्धान!
भरे उर में छबि का मधुमास,
दृगों में अश्रु अधर में हास,
ले रहा किसका पावसप्यार,
विपुल लघु प्राणों में अवतार?
नील नभ का असीम विस्तार,
अनल के धूमिल कण दो चार,
सलिल से निर्भर वीचि-विलास
मन्द मलयानिल से उच्छ्वास,
धरा से ले परमाणु उधार,
किया किसने मानव साकार?
दृगों में सोते हैं अज्ञात
निदाघों के दिन पावस-रात;
सुधा का मधु हाला का राग,
व्यथा के घन अतृप्ति की आग।
छिपे मानस में पवि नवनीत,
निमिष की गति निर्झर के गीत,
अश्रु की उर्म्मि हास का वात,
कुहू का तम माधव का प्रात।
हो गये क्या उर में वपुमान,
क्षुद्रता रज की नभ का मान,
स्वर्ग की छबि रौरव की छाँह,
शीत हिम की बाड़व का दाह?
और—यह विस्मय का संसार,
अखिल वैभव का राजकुमार,
धूलि में क्यों खिलकर नादान,
उसी में होता अन्तर्धान?
काल के प्याले में अभिनव,
ढाल जीवन का मधु आसव,
नाश के हिम अधरों से, मौन,
लगा देता है आकर कौन?
बिखर कर कन कन के लघुप्राण,
गुनगुनाते रहते यह तान,
“अमरता है जीवन का ह्रास,
मृत्यु जीवन का परम विकास”।
दूर है अपना लक्ष्य महान,
एक जीवन पग एक समान;
अलक्षित परिवर्तन की डोर,
खींचती हमें इष्ट की ओर।
छिपा कर उर में निकट प्रभात,
गहनतम होती पिछली रात;
सघन वारिद अम्बर से छूट,
सफल होते जल-कण में फूट।
स्निग्ध अपना जीवन कर क्षार,
दीप करता आलोक-प्रसार;
गला कर मृतपिण्डों में प्राण,
बीज करता असंख्य निर्माण।
सृष्टि का है यह अमिट विधान,
एक मिटने में सौ वरदान,
नष्ट कब अणु का हुआ प्रयास,
विफलता में है पूर्ति-विकास। 

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रचनाएँ
रश्मि
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इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। 'रश्मि' काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। मीरा ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीजी ने अपनी भावनाओं में उसकी आराधना निर्गुण रूप में की है। महादेवी का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत् की है, जो उसी के लिए सहज संवेद्य हो सकती है, जिनसे उस अनुभूति-क्षेत्र में प्रवेश किया हो। वैसे महादेवी इस वेदना को उस दु:ख की भी संज्ञा देती हैं, "जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है किन्तु विश्व को एक सूत्र में बाँधने वाला दु:ख सामान्यतया लौकिक दु:ख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परम्परा में करुण रस का स्थायी भाव होता है।
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रश्मि

23 फरवरी 2022
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चुभते ही तेरा अरुण बान! बहते कन कन से फूट फूट, मधु के निर्झर से सजल गान। इन कनक रश्मियों में अथाह, लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग; बुदबुद से बह चलते अपार, उसमें विहगों के मधुर राग; बनती प्रवाल का म

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सुधि

23 फरवरी 2022
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किस सुधिवसन्त का सुमनतीर, कर गया मुग्ध मानस अधीर? वेदना गगन से रजतओस, चू चू भरती मन-कंज-कोष, अलि सी मंडराती विरह-पीर! मंजरित नवल मृदु देहडाल, खिल खिल उठता नव पुलकजाल, मधु-कन सा छलका नयन-नीर

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शून्यता

23 फरवरी 2022
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शून्यता में निद्रा की बन, उमड़ आते ज्यों स्वप्निल घन; पूर्णता कलिका की सुकुमार, छलक मधु में होती साकार; हुआ त्यों सूनेपन का भान, प्रथम किसके उर में अम्लान? और किस शिल्पी ने अनजान, विश्व प्रतिमा

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गीत

23 फरवरी 2022
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क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन-वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते? लय में मेरा चिरकरुणा

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दुःख

23 फरवरी 2022
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रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता; इस निदाघ के मानस में करुणा के स्रोत बहा जाता। उसमें मर्म छिपा जीवन का, एक तार अगणित कम्पन का, एक सूत्र सबके बन्धन का, संसृति के सूने पृष्ठों में करुण

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अतृप्ति

23 फरवरी 2022
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चिर तृप्ति कामनाओं का कर जाती निष्फल जीवन, बुझते ही प्यास हमारी पल में विरक्ति जाती बन। पूर्णता यही भरने की ढुल, कर देना सूने घन; सुख की चिर पूर्ति यही है उस मधु से फिर जावे मन। चिर ध्येय यही

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जीवनदीप

23 फरवरी 2022
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किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तल? किसकी वर्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल? शून्य काल के पुलिनों पर— आकर चुपके से मौन, इसे बहा जाता लहरों में वह रहस्यमय कौन? कुहरे सा धुंधला भविष्य है, ह

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कौन है?

23 फरवरी 2022
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कुमुद-दल से वेदना के दाग़ को, पोंछती जब आंसुवों से रश्मियां; चौंक उठतीं अनिल के निश्वास छू, तारिकायें चकित सी अनजान सी; तब बुला जाता मुझे उस पार जो, दूर के संगीत सा वह कौन है? शून्य नभ पर उमड़ ज

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जीवन

23 फरवरी 2022
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तुहिन के पुलिनों पर छबिमान, किसी मधुदिन की लहर समान; स्वप्न की प्रतिमा पर अनजान, वेदना का ज्यों छाया-दान; विश्व में यह भोला जीवन— स्वप्न जागृति का मूक मिलन, बांध अंचल में विस्मृतिधन, कर रहा किस

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आह्वान

23 फरवरी 2022
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फूलों का गीला सौरभ पी बेसुध सा हो मन्द समीर, भेद रहे हों नैश तिमिर को मेघों के बूँदों के तीर। नीलम-मन्दिर की हीरक— प्रतिमा सी हो चपला निस्पन्द, सजल इन्दुमणि से जुगनू बरसाते हों छबि का मकरन्द।

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वे दिन

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नव मेघों को रोता था जब चातक का बालक मन, इन आँखों में करुणा के घिर घिर आते थे सावन! किरणों को देख चुराते चित्रित पंखों की माया, पलकें आकुल होती थीं तितली पर करने छाया! जब अपनी निश्वासों से तार

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आशा

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वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में। झंझा की पहली नीरवता— सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में।

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मेरा पता

23 फरवरी 2022
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स्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान, जान कब पाई हुआ उसका कहां निर्माण! अचल पलकों में जड़ी सी तारकायें दीन, ढूँढती अपना पता विस्मित निमेषविहीन। गगन जो तेरे विशद अवसाद का आभास, पूछ्ता ’क

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गीत

23 फरवरी 2022
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अलि अब सपने की बात-- हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर, कम्पित हो उठता सुख से भर, नव लतिका सा गात! जब उनकी चितवन का निर्झर, भर देता मधु से मानससर,

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