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वे दिन

23 फरवरी 2022

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नव मेघों को रोता था
जब चातक का बालक मन,
इन आँखों में करुणा के
घिर घिर आते थे सावन!
किरणों को देख चुराते
चित्रित पंखों की माया,
पलकें आकुल होती थीं
तितली पर करने छाया!
जब अपनी निश्वासों से
तारे पिघलातीं रातें,
गिन गिन धरता था यह मन
उनके आँसू की पाँतें।
जो नव लज्जा जाती भर
नभ में कलियों में लाली,
वह मृदु पुलकों से मेरी
छलकाती जीवन-प्याली।
घिर कर अविरल मेघों से
जब नभमण्डल झुक जाता,
अज्ञात वेदनाओं से
मेरा मानस भर आता।
गर्जन के द्रुत तालों पर
चपला का बेसुध नर्तन;
मेरे मनबालशिखी में
संगीत मधुर जाता बन।
किस भांति कहूँ कैसे थे
वे जग से परिचय के दिन!
मिश्री सा घुल जाता था
मन छूते ही आँसू-कन।
अपनेपन की छाया तब
देखी न मुकुरमानस ने;
उसमें प्रतिबिम्बित सबके
सुख दुख लगते थे अपने।
तब सीमाहीनों से था
मेरी लघुता का परिचय;
होता रहता था प्रतिपल
स्मित का आँसू का विनिमय।
परिवर्तन पथ में दोनों
शिशु से करते थे क्रीड़ा;
मन मांग रहा था विस्मय
जग मांग रहा था पीड़ा!
यह दोनों दो ओरें थीं
संसृति की चित्रपटी की;
उस बिन मेरा दुख सूना
मुझ बिन वह सुषमा फीकी।
किसने अनजाने आकर
वह लिया चुरा भोलापन?
उस विस्मृति के सपने से
चौंकाया छूकर जीवन।
जाती नवजीवन बरसा
जो करुणघटा कण कण में,
निस्पन्द पड़ी सोती वह
अब मन के लघु बन्धन में!
स्मित बनकर नाच रहा है
अपना लघु सुख अधरों पर;
अभिनय करता पलकों में
अपना दुख आँसू बनकर।
अपनी लघु निश्वासों में
अपनी साधों की कम्पन;
अपने सीमित मानस में
अपने सपनों का स्पन्दन!
मेरा अपार वैभव ही
मुझसे है आज अपरिचित;
हो गया उदधि जीवन का
सिकता-कण में निर्वासित।
स्मित ले प्रभात आता नित
दीपक दे सन्ध्या जाती;
दिन ढलता सोना बरसा
निशि मोती दे मुस्काती।
अस्फुट मर्मर में, अपनी
गति की कलकल उलझाकर,
मेरे अनन्तपथ में नित-
संगीत बिछाते निर्झर।
यह साँसें गिनते गिनते
नभ की पलकें झप जातीं;
मेरे विरक्तिअंचल में
सौरभ समीर भर जातीं।
मुख जोह रहे हैं मेरा
पथ में कब से चिर सहचर!
मन रोया ही करता क्यों
अपने एकाकीपन पर?
अपनी कण कण में बिखरीं
निधियाँ न कभी पहिचानीं;
मेरा लघु अपनापन है
लघुता की अकथ कहानी।
मैं दिन को ढूँढ रही हूँ
जुगनू की उजियाली में;
मन मांग रहा है मेरा
सिकता हीरक प्याली में! 

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रचनाएँ
रश्मि
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इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। 'रश्मि' काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। मीरा ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीजी ने अपनी भावनाओं में उसकी आराधना निर्गुण रूप में की है। महादेवी का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत् की है, जो उसी के लिए सहज संवेद्य हो सकती है, जिनसे उस अनुभूति-क्षेत्र में प्रवेश किया हो। वैसे महादेवी इस वेदना को उस दु:ख की भी संज्ञा देती हैं, "जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है किन्तु विश्व को एक सूत्र में बाँधने वाला दु:ख सामान्यतया लौकिक दु:ख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परम्परा में करुण रस का स्थायी भाव होता है।
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रश्मि

23 फरवरी 2022
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चुभते ही तेरा अरुण बान! बहते कन कन से फूट फूट, मधु के निर्झर से सजल गान। इन कनक रश्मियों में अथाह, लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग; बुदबुद से बह चलते अपार, उसमें विहगों के मधुर राग; बनती प्रवाल का म

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सुधि

23 फरवरी 2022
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किस सुधिवसन्त का सुमनतीर, कर गया मुग्ध मानस अधीर? वेदना गगन से रजतओस, चू चू भरती मन-कंज-कोष, अलि सी मंडराती विरह-पीर! मंजरित नवल मृदु देहडाल, खिल खिल उठता नव पुलकजाल, मधु-कन सा छलका नयन-नीर

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शून्यता

23 फरवरी 2022
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शून्यता में निद्रा की बन, उमड़ आते ज्यों स्वप्निल घन; पूर्णता कलिका की सुकुमार, छलक मधु में होती साकार; हुआ त्यों सूनेपन का भान, प्रथम किसके उर में अम्लान? और किस शिल्पी ने अनजान, विश्व प्रतिमा

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गीत

23 फरवरी 2022
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क्यों इन तारों को उलझाते? अनजाने ही प्राणों में क्यों आ आ कर फिर जाते? पल में रागों को झंकृत कर, फिर विराग का अस्फुट स्वर भर, मेरी लघु जीवन-वीणा पर क्या यह अस्फुट गाते? लय में मेरा चिरकरुणा

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दुःख

23 फरवरी 2022
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रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता; इस निदाघ के मानस में करुणा के स्रोत बहा जाता। उसमें मर्म छिपा जीवन का, एक तार अगणित कम्पन का, एक सूत्र सबके बन्धन का, संसृति के सूने पृष्ठों में करुण

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अतृप्ति

23 फरवरी 2022
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चिर तृप्ति कामनाओं का कर जाती निष्फल जीवन, बुझते ही प्यास हमारी पल में विरक्ति जाती बन। पूर्णता यही भरने की ढुल, कर देना सूने घन; सुख की चिर पूर्ति यही है उस मधु से फिर जावे मन। चिर ध्येय यही

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जीवनदीप

23 फरवरी 2022
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किन उपकरणों का दीपक, किसका जलता है तल? किसकी वर्ति, कौन करता इसका ज्वाला से मेल? शून्य काल के पुलिनों पर— आकर चुपके से मौन, इसे बहा जाता लहरों में वह रहस्यमय कौन? कुहरे सा धुंधला भविष्य है, ह

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कौन है?

23 फरवरी 2022
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कुमुद-दल से वेदना के दाग़ को, पोंछती जब आंसुवों से रश्मियां; चौंक उठतीं अनिल के निश्वास छू, तारिकायें चकित सी अनजान सी; तब बुला जाता मुझे उस पार जो, दूर के संगीत सा वह कौन है? शून्य नभ पर उमड़ ज

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जीवन

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तुहिन के पुलिनों पर छबिमान, किसी मधुदिन की लहर समान; स्वप्न की प्रतिमा पर अनजान, वेदना का ज्यों छाया-दान; विश्व में यह भोला जीवन— स्वप्न जागृति का मूक मिलन, बांध अंचल में विस्मृतिधन, कर रहा किस

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आह्वान

23 फरवरी 2022
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फूलों का गीला सौरभ पी बेसुध सा हो मन्द समीर, भेद रहे हों नैश तिमिर को मेघों के बूँदों के तीर। नीलम-मन्दिर की हीरक— प्रतिमा सी हो चपला निस्पन्द, सजल इन्दुमणि से जुगनू बरसाते हों छबि का मकरन्द।

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वे दिन

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नव मेघों को रोता था जब चातक का बालक मन, इन आँखों में करुणा के घिर घिर आते थे सावन! किरणों को देख चुराते चित्रित पंखों की माया, पलकें आकुल होती थीं तितली पर करने छाया! जब अपनी निश्वासों से तार

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आशा

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वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के घन में। झंझा की पहली नीरवता— सी नीरव मेरी साधें, भर देंगी उन्माद प्रलय का मानस की लघु कम्पन में।

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मेरा पता

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स्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान, जान कब पाई हुआ उसका कहां निर्माण! अचल पलकों में जड़ी सी तारकायें दीन, ढूँढती अपना पता विस्मित निमेषविहीन। गगन जो तेरे विशद अवसाद का आभास, पूछ्ता ’क

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गीत

23 फरवरी 2022
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अलि अब सपने की बात-- हो गया है वह मधु का प्रात! जब मुरली का मृदु पंचम स्वर, कर जाता मन पुलकित अस्थिर, कम्पित हो उठता सुख से भर, नव लतिका सा गात! जब उनकी चितवन का निर्झर, भर देता मधु से मानससर,

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