सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
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