shabd-logo

भाग 10

27 अगस्त 2022

13 बार देखा गया 13

 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए्ट हुआ; प्रतापी पाण्डवोंको वनवन भटकना पढ़ा; मर्यादा  पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र को अनेक कष्ट झेलने पढ़े; महासती  सीताको लंकामें असह्य कष्ठ उठाने पढ़े और अन्तर्मं छोगोंने उनपर कलंक लगाया। ये सब भाग्य  के खेल थे । आज सुरसुन्दरी भी उसी कर्म- की मारी ऐसी विर्पत्ति उठाती हुई चली जा रही है । 

वह चलते चलते थककर गिर पढ़ी | भूख प्यास आर थकानके मारे वह इतनी कातर हो गई कि, उसे अपने तन वदनकी भी सुध न रही । उस समय कोई विद्याधर विमानमें वैठकर उधरसे जाता था | उसने सुरसुंदरीको इस दशामे पड़े देखा । 

उसने तत्काल ही विमान ठहराकर सुरसुंदरौको अपने विमानमें विठ लिया, ओर फिर वह अपने घरकी तरफ चला | शीतछ पवनके लगनेसे तथा थोड़ी देरके आराम से सुरसुंदरी को  होश आया । उसने विमानमें अपने व एक पुरुप के सिवा ओर किसी को न देखा । वह समझी यह फिर नई आपत्ति है। बह नीचे कूद पढ़नेकी इच्छा से उठनेका प्रयत्न करने लगी; परन्तु उससे उठा न गया । विद्याधर ने उसे चेत में देखकर कहाः--बहन ! अभी उठनेका प्रयत्न न करो । तुम्हारा शरीर वहुत शिथिल  हो रहा है ।  

सुरसुन्दरीने कहा;-- में किसी पुरुष के साथ जाना नहीं चाहती । मुझे उतार दो; नहीं तो में यहाँसे कूद पहेँगी।” विद्याधर  बोला वहिन में नहीं समझ सकता कि, तुम्हे पुरषों  से ऐसी घृणा क्यों है ” सुरसुन्दरी उत्तेमित हो उठी और कहने लगी ॥-“विश्वास- घातक, दुराचारी, धमाधर्म विचार-द्वीन, प्रतिज्ञा का भंग करने- वाले, आर वकरीके समान स्री कों शेरनी  तरह अपना भक्तण समझने वाले पुरुषों से जितना दूर  रहा जाय उतना ही अच्छा है |”

विद्याधर वोला।--“ बहिन में प्रशुको साक्षी रख पतिज्ञा करता हूँ कि,  मैं तुम्हें अपनी सगी वहन के सिवा और कुछ नहीं समझँगा | तुम विश्वास करो और अपनी सारी कथा  सुनाओं। ” सुरसुन्दरीने उसे धर्मात्मा समझकर अपनी सारी कथा सुनाई | सुनकर विद्याधर की आँखों में आ गये। उसने कहा ।-- कोई भय नहीं है वहन ! अब तुमको कोई दुख नहीं होगा । ”

विद्याधर और सुरसुन्दरीने नंदीखर द्वीपकी यात्रा की। लौटते समय वे मुनि महाराज के दशेनाथ एक जगह उतरे।धर्मोपदेश श्रवण करनेके वाद सुरसुन्दरीने पूछा--“में कब अपने पतिकी आज्ञाका पाछन कर सकूँगी ओर कब मुझे 'उनके दशन होंगे ! कहाँ होंगे  मुनिने संक्षेप में  उत्तर दिया;--“ वेनाट द्वीपम तुझे तेरा स्वामी मिलेगा | ” सुरसुन्दरी ओर विद्याधर मुनिकों नमस्कारकर विद्याधर के राजमें गये ।

विद्याधर  और  उसकी पत्नियों सुरसुन्द्री का वा आदर भक्ति करते थे । सुरसुन्दरी आनंद से अपना समय विताती थी। उसने बहा रहकर तीन चार विद्याएं भी विद्याधर के पास- से सीख ली  | जव॒ उसकी साधना पूरी हुई, विद्याधर पूणे अधिकार हो गया तव उसने विद्याधरसे कह/--“ वंधु ! यहाँ रहते मुझे वहुत दिन हो गये | अब मुझे अपना कार्य  साधन करने के लिये वेनाट द्वीपमें जाना है। वहाँ पहुँचा देने की कृपा और  कीजिये | ” विद्याधर वोला।-- वहिन ! यह राज तुम्हारा ही है। यहीं रहो । मैं  तुम्हरे स्वामी को भी खोज लाऊँगा। तुम्हारे जाने- से हमारा घर शून्य  हो जायगा । ”

सुरसुन्दरीने कहा  वन्धु ! मुझे  भी इस घरको छोड़- कर जाते दुःख होता है, परन्तु स्वामी के विना यहाँ रहना इससे भी ज्यादा दु/खदायी है। अतः कृपांकर मुझे वेनाट द्वीप पहुँचा दीजिये | ” सखुरसन्दरी वेनाट द्वीपमें आई और रूप परिवर्तिनी  विद्या के  पुरुष बनकर रहने लगी। 


11
रचनाएँ
सुरसुन्दरी
0.0
सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
1

सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022
4
0
0

“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे

2

भाग 2

26 अगस्त 2022
2
0
0

द्वीप  गोलाकार है । इसका घेर तीन ढाख योजनका हैं। इसीमें चम्पा नामकी एक सुन्दर, रम्ये, धनपान्यपृणे नगरी थी । इसके अन्दर रहने वाले सभी सुखी थे, उस नगरीके राजाका नाम रिपुयंदेन था। बह अपने देशवासियां- का

3

भाग 3

27 अगस्त 2022
1
0
0

वहुत सोच विचार के वाद दोनों ने यही स्थिर किया कि, अपरकुमार के साथ सुरसुंदरी का व्याह कर दिया जाय। अमरकुमार के पिता धनावह बुलाये गये | राजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और अपने मनकी वात कही | धनावह सर्

4

भाग 4

27 अगस्त 2022
1
0
0

तब माताने कहाः--“ बेटी, संसार नारी के लिए पति से  बढ़कर  और कोई नहीं है। पतिं के हृदय कों प्रफुलित रखना ही स्त्री का का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पतिकी भूलकों न देख उसके गुणों में लीन होना और उसकी दुर्बलता

5

भाग 5

27 अगस्त 2022
1
0
0

सुरसंंदरी जागी, उठी, अंखें मढीं, आसू  पोछा  और इधर उधर देखने लगी | कोई दिखाई नहीं दिया। बेठी थी खड़ी हो गई और वक्षों में यहाँ वहाँ खोजने लगी; मगर अमरकुमार कई नहीं दीखा। वह घबरा भयसे हृदय धढ़कने लगा,मु

6

भाग 6

27 अगस्त 2022
1
0
0

 तब तुम यहां आनन्द हो ? तुम्दें फिरसे मनुष्य-समाज में जानेकी इच्छा नहीं है ” सुरसतुन्दरीके हृदयमें बढ़ा आन्दोलन उठा | वह कुछ क्षण  पृथ्वी की ओर देखती रही |  फिर जरा सिर उठाकर बोली इस भयानक वनमें, खग-म

7

भाग 7

27 अगस्त 2022
1
0
0

करेगा अगर  फिर आत्महत्या करना भी पातक है । तो किया क्या जाय  आत्महत्या विशेष पातक है या शील-भंग शील-भंगके विचारने उसकी अजब दशा कर दी। वह हृतासे छुरी पकड़, इधर उधर टहलने लगी।  नहीं । समुद्र कृद पहना ह

8

भाग 8

27 अगस्त 2022
1
0
0

भूख  जिससे स्त्रीका जीवन है, जिसके कारण स्त्री सिर ऊँचा करके चल सकती है, जिसके कारण ग्रह सगे है, जिसके कारण स्त्री देवी कहलाती है, जिसके कारण उसे सर्वोपरि स्थान मिला है, मिसके प्रभावलसे सारा संसार स्त

9

भाग 9

27 अगस्त 2022
1
0
0

पिछली रात के सन्नाटे मे किसी ने आकर उस कमरे के किवाड़, जिसमें सुरसुन्दरी आकाश पाताल की बातें सोच रही थी, धीरे से खटखटया  |  सुरसुन्दरी ने दरवाजा खोल दिया | नवयुवती अन्दर आईं। उसके हाथ एक रस्सा था। वह

10

भाग 10

27 अगस्त 2022
1
0
0

 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए

11

भाग 11

27 अगस्त 2022
1
0
0

उसने सात कौड़ियों के चने खरीदे । उन्हें लेकर वह शहर के बाहर जा वेठी | पहले दिन उसको तीन कोड़ियों का नफा रहा । दूसरे दिन भी इसी तरह चने लेकर गई। पाँच कौड़ियों- का नफा हुआ ! धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ा

---

किताब पढ़िए