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भाग 11

27 अगस्त 2022

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उसने सात कौड़ियों के चने खरीदे । उन्हें लेकर वह शहर के बाहर जा वेठी | पहले दिन उसको तीन कोड़ियों का नफा रहा । दूसरे दिन भी इसी तरह चने लेकर गई। पाँच कौड़ियों- का नफा हुआ !

धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ा | अब उसने एक पानी का घढ़ा भी रखना शुरू कर दिया। गरमी की ऋतु थी। रुकड॒द्रे लकड़ियों का गद्दा लेकर जब आते थे तव शहरसे दो माइल दर एक जगह वे विश्राम लेनेके लिये गड्ढे उतारते थे | वहीं विमल वाहन ( सुरसुन्दरीने अपना नाम विमलू वाहन रक्खा था) बैठता था।

लकङी के खरीदारों  कों वह पानी पिलाता और  बदले" में उसके पास एक लकङी  का टुकढ़ा निकालकर डाल देते | इस तरह शाम  तक उसके पास पॉच सात गद्ठों जितनी ढुकदियों जमा हो जातीं। अब उसने लकड़ी का  व्यापार भी शुरू कर दिया। वहीं कम कीमत में लकडी के गठहे खरीद लेता और  गणियों  में भर कर वहाँसे शहरमें अपनी दुकानपर भेज देता । उससे खूब नफा होने लगा | थोढ़े ही दिनोंमे वह एक अच्छा धनिक व्यापारी समझा जाने लगा ।

वह रहते हुए उसको कई वरस हो गये । एक वार कहीं- से एक चोर आया और विद्यावल द्वारा चोरियों करने लगा। सारे शहर में हा हा  कार मच गया, पुलिस सिर मारकर रह गई मगर उसे कोई ने पकढ़ सका | इससे उसका इतना  होसला बढ गया कि वह एक दिन राजकन्या को भी उठाले गया । राजाने दिंढोरा पिटवाया कि, जो कोई चोरकों पकड़ कर लायगा ओर  राजसुताकों उसे राजसुता सहित आधा राज्य ढुँगा। कई लोगोंने चोरकों पकड़नेका प्रयत्न किया, परन्तु कोई भी छृतकाय्य नहीं हुआ |

अन्तमें विमलवाहनने वीड़ा उठाया  रातमें वेठकर परविद्याहरिणी, शत-हस्ती-बलदायिनी आर अदहृश्यकारिणी विद्याका स्मरण किया | विद्याएँ सधी हुई थीं ही | उनका आश्रय लेकर वह चोरकों पकड़ने चला | पिमलवाइन चोरके गुप्त स्थानमें, अद्श्यकारिणी विद्या द्वारा अदृश्य होकर पहुँचा । वहां उसने चोरकों कद किया ओर राजसुताको तथा चोरको राजाके सामने उपस्थित किया। शाजाने घोषणाके अनुसार विमलवाहनके साथ राजसुताका व्याह कर दिया ओर अपना आधा राज्य भी सौंप  दिया। विमलवाहन ने आधा राज्य लेकर सबसे पहले वंदरगाह- का प्रबंध किया |

उसने आज्ञा दे दी कि, किसी भी जहाज- के स्वामीकों हमारे सामने उपस्थित किये बिना शहरमें न आने दिया जाय और कर वसूल करनेमें शिथिलता न हो । काय इसी तरह चलता रहा | एक दिन अनेक स्थानोंकी मुसाफिरी करके अमरकुमारके जहाज वेनाटके किनारे आ छगे। मालका कर चुकाकर जब वह शहरमें जानेकों तैयार ढुआ तब आदमियोन उसे रोका ओर कहा;--/ पहले तुम्हें हमारे राजाके पास चलना होगा । ”

जुटे राजाके पास तो जाना ही है।” कहकर अमरकुमारने चलनेको कदम उठाया | सिपाहीने रोककर कहा/-- हमारे नवीन महाराणकी यही आता हैँ कि शहरमें जानेके पहले जहाजका स्वामी उनके सामने पेश किया जाय | ”विवश उसे सिपाहीके साथ विमल्वाइनके पांस जाना पढ़ा | विमलवाहनने उसे देखा |

एक दम चॉक पढ़ा। उसके हृदयमें अजब उथल पृथल प्रारंभ हुई | हाय | यही बह मुख है! कैसा मख गया है! गाल पिचक गये हैं; आँखें गढ़ेमें धंस गई हैं। होगेपर मधुर हास्य नहीं है; ऑखोंमें चमक नहीं है; ललाट तेजद्वीन हो गया है | हाय | यही क्या मेरे स्वामीका मुख है! हृदय धीरण रख |

अमरकुमार के अन्त/करण में भी एक आन्दोलन उठ खड़ा हुआ यह घणी  मुख ते, नेत्र भी वे ही हैं; नासिका भी वही है, अपरों की मंद मुस्कान भी वही है। मगर ! मगर ! यह तो पुरुष है | हाय मेरी यह क्‍या दशा हो गई  मुझे सव जगह वही वह क्यों दिखाई देती है! वह मुख तो भुलाए नहीं भूछता। नहीं ! ओह ! कितनी यातना है! मेरे ही कारण,-होँ हों मेरे ही कारण वह झख सदाके लिए राक्षसके पेटमे विलीन हो गया। उह ! भगवान कैसे इस भयानक पापसे मेरा उद्धार होगा: उसकी ऑखोंसे दो चार अखिकी ईढ़ ट्पक पढ़ीं। विमलवाहन ने भी उन्हें देखा | उसका अन्तकरण शाप्र ही यह निश्रय करनेके लिये व्याकुल हो रहा था कि, यह अमर- कुमार ही है या कोई और !

विमलवाहन की आज्ञासे वहां एकान्त हो गया । अमरकुमारसे विमलवाहनने वैठनेका इशारा किया । वह बैठ गया । विमल वाहन ने पृुछा।-- आप कहंकि रहनेवाल़े है ?! आपका मुख ऐसा मलिन क्‍यों हो रहा है ! ”

अपरकुपारके हृदयमें यह प्रश्न तीरसा चुभा । क्या उत्तर देता कि इस दशाका क्या कारण है ! जो उसके जागतेका दशन और निद्राका स्वप्न हो रही थी; जिसके विना उसका सारा जीवन, सारा हृदय भयानक स्मशानवत हो रहा था, अन्त/करणमें भीम स्वरसे हाहाकार उठ रहा था उसीको,-हाय | उसी को,-मैं राक्षतके आहारके लिए छोड़ आया हूँ,-यही दु/ख है, इसी दु/खसे मेरी यह दशा हो गई है।

विमलवाहनके मनकी दशा भी ठीक न थी, तो भी उसने जव देरती उसको रोक रकखा था। उसने फिर पूछा;--सेठ ! बताओ ! तुम्हारी इस दशाका कारण क्या है? यदि हो सका तो मैं तुम्हारे उस कारण को हटाऊँँगा, तुम्हारी सहायता करेंगा !” रकुमार भरी हुई आवाज में बोला ;--असंभव ! महाराज | असंभव ! मेरे दुःखका कारण मिटना असंभव है। जिसको मैंने मूखेतावश राक्षसके उद्रस्थ होनेके लिए छोड़ दिया; वही मेरी छाडली सुरसृंदरी ! वही मेरी जीवनकी ज्योति | रिपुमदेन रपसुता ! वही मेरी आत्माका नूर, सेठ धना  वह की प्यारी वधू ! हाय ! अब कहों है ! नहीं, चढी गई ! वह इमेशा फे लिए मुझे छोड़कर चली गई | नहीं महाराज  असै- यह  है | सर्वदा  असंभव  .......!

विमलवाइन अमर कुमार की दशा देख उसकी बातें सुन उसे पहचान दूसरे कमरे  में चला  गया था। नहीं सर्वथा संभव है | ” कहती हुई सुरसंंदरी आकर अमरकुमार से लिपट गई | आह | कहा स्त्री  सुख है। बारह वर्ष के वाद आज  बिछने  हुए हृदय पुनः मिले   हैं। दोनों एक दूसरे से चिमटकर बहुत  देर तक रोते रहे । अन्तर्मे अमरकुमार ने उसके आँसू पोछ कर कहाँ -“  प्रिये | अपराध मेरा अक्षम्य है तो  भी मुझे क्षमा करो | ! सुरसुन्दरी ने रोते रोते कहा।--“ नाथ | फिर कभी ऐसी परीक्षा में मत ढालना | आपकी आज्ञानुसार सात कोड़ियों द्वारा प्राप्त किया हुआ यह राज्य आपके अर्पण  हैं। ”  प्रिये | !!

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रचनाएँ
सुरसुन्दरी
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सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
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सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022
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“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे

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भाग 2

26 अगस्त 2022
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द्वीप  गोलाकार है । इसका घेर तीन ढाख योजनका हैं। इसीमें चम्पा नामकी एक सुन्दर, रम्ये, धनपान्यपृणे नगरी थी । इसके अन्दर रहने वाले सभी सुखी थे, उस नगरीके राजाका नाम रिपुयंदेन था। बह अपने देशवासियां- का

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भाग 3

27 अगस्त 2022
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वहुत सोच विचार के वाद दोनों ने यही स्थिर किया कि, अपरकुमार के साथ सुरसुंदरी का व्याह कर दिया जाय। अमरकुमार के पिता धनावह बुलाये गये | राजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और अपने मनकी वात कही | धनावह सर्

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भाग 4

27 अगस्त 2022
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तब माताने कहाः--“ बेटी, संसार नारी के लिए पति से  बढ़कर  और कोई नहीं है। पतिं के हृदय कों प्रफुलित रखना ही स्त्री का का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पतिकी भूलकों न देख उसके गुणों में लीन होना और उसकी दुर्बलता

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भाग 5

27 अगस्त 2022
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सुरसंंदरी जागी, उठी, अंखें मढीं, आसू  पोछा  और इधर उधर देखने लगी | कोई दिखाई नहीं दिया। बेठी थी खड़ी हो गई और वक्षों में यहाँ वहाँ खोजने लगी; मगर अमरकुमार कई नहीं दीखा। वह घबरा भयसे हृदय धढ़कने लगा,मु

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भाग 6

27 अगस्त 2022
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 तब तुम यहां आनन्द हो ? तुम्दें फिरसे मनुष्य-समाज में जानेकी इच्छा नहीं है ” सुरसतुन्दरीके हृदयमें बढ़ा आन्दोलन उठा | वह कुछ क्षण  पृथ्वी की ओर देखती रही |  फिर जरा सिर उठाकर बोली इस भयानक वनमें, खग-म

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भाग 7

27 अगस्त 2022
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करेगा अगर  फिर आत्महत्या करना भी पातक है । तो किया क्या जाय  आत्महत्या विशेष पातक है या शील-भंग शील-भंगके विचारने उसकी अजब दशा कर दी। वह हृतासे छुरी पकड़, इधर उधर टहलने लगी।  नहीं । समुद्र कृद पहना ह

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भाग 8

27 अगस्त 2022
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भूख  जिससे स्त्रीका जीवन है, जिसके कारण स्त्री सिर ऊँचा करके चल सकती है, जिसके कारण ग्रह सगे है, जिसके कारण स्त्री देवी कहलाती है, जिसके कारण उसे सर्वोपरि स्थान मिला है, मिसके प्रभावलसे सारा संसार स्त

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भाग 9

27 अगस्त 2022
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पिछली रात के सन्नाटे मे किसी ने आकर उस कमरे के किवाड़, जिसमें सुरसुन्दरी आकाश पाताल की बातें सोच रही थी, धीरे से खटखटया  |  सुरसुन्दरी ने दरवाजा खोल दिया | नवयुवती अन्दर आईं। उसके हाथ एक रस्सा था। वह

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भाग 10

27 अगस्त 2022
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 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए

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भाग 11

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