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भाग 6

27 अगस्त 2022

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 तब तुम यहां आनन्द हो ? तुम्दें फिरसे मनुष्य-समाज में जानेकी इच्छा नहीं है ” सुरसतुन्दरीके हृदयमें बढ़ा आन्दोलन उठा | वह कुछ क्षण  पृथ्वी की ओर देखती रही |  फिर जरा सिर उठाकर बोली इस भयानक वनमें, खग-मृग-विहीन इस भयंकर जं॑गल में अपने माता पिता से दूर शेकर, छुम्द  फवीले से बिहुडंकर और खासकर अपने प्राणघनके वियोगमें कोन रमणी सुखी रह सकती है ? तो भी विश्वासघातक मानव-समाजमें और खासकर पुरुष-समान के साथ में रहने से तो बड़ी ही घृणा हो गई है | पुरुष-समाज विचारी अवलाओं की इसी तरह प्रतारणा किया करता है। ” 

सेठ ने कहा।--“ पांचों उंगलिया  समान नहीं होतीं। इसी तरह समरत पुरुष समाज भी विश्वासधातक नहीं होता | तुम

मेरे साथ चलो । में तुम्हें तुम्हारे देश पहुँचा दूँगा । ” सुरसुन्दरी थोड़ी देर सोचती रही, जाना उचित है या अनुचित  इसी की मीमांसाम लगी रही | अन्तर्मे उसने जाना ही स्थिर किया | कारण उसे सात कोड़ीमं राज लेने का उद्योग करना था | सेठने उसे विचार-मग्न देखकर पूछा;-“ क्या विचार है” 

सुरसुन्दरीने कहा।--“में तुम्हारे साथ चलूँगी । मुझे  किसी मनुष्ये के टपू्े उतार देना। मेैं अपने देश मे-जवतक मेरे स्वामी न मिलेंगे   तब तक--न जाएँगी ( मनोगत ) ओर उनसे तब भेट करूँगी जब में उनके कथनानुसार साठ कोडियों के

सहारे राज ले ढेँगी । (प्रकट ) अपनी संतान  समझकर मेरे साथ व्यवहर करने की ओर मुझे एकान्त में रहने देने की स्वीकारता दो और धमको साक्षी देकर अपना वचन पालने की प्रतितमा  करो ते में तुम्हारे साथ चल सकती हूँ। ”

सेठ ने सभी कुछ स्वीकार किया । प्रतिज्ञा भी की ओर मन ही मन हँसता हुआ सुरसुन्दरी कों अपने जहाजों पर ले गया |

जवानी भी हो, सौन्दर्य  भी हो और एकान्तवास भी हो, ऐसी दशा में  कौन सा ऐसा पुरुष होगा जिसका मन सुन्दर स्नी को देखकर विचालित न होता होगा !

सेठ के मन में तो पहले ही पाप था । अब उसकी वासना, सुरसुन्दरी को अपने वश में पाकर, ओर भी प्रव्खर  हो उठी | तो  भी वह उस वासना तीन चार दिन दवाये रहा। बह रोज सुरसुन्दरीके पास उसकी कुशलवात्तो पूछने जाता, वासना- पृण ऑँखोंसे एक टक उसकी ओर देखता और उसे पृथ्वीकी ओर ताकती हुई  देखकर वापिस लोट आता। वासना दुदेमनीय हो गई। कामंदेवकी ज्याला से तन बदन जलने लगा। उसने स्थिर किया कि आज उससे अपनी बनने के लिये कहना ओर यदि नहीं माने  तो बलात्कार करना | सेठ सुरसुन्द्री के पास पहुँचा और धीरे धीरे जाकर उसके पास बैठ गया | सुरसुन्दरी को आस्चर्य  एवं भय हुआ। 

उसने उसके चहरेकी ओर देखा । सेठके हार्दिक विकारोंके लक्षण उसके चहरे पर दिखाई दिये। सुरसुन्दरी अपनी जगहसे उठी और सेठको प्रणामकर दूर जा खड़ी हुई ।

सेठने कह;--“ राजसुता बैठों | खड़ी क्‍यों हो गईं! प्रसन्न तो हो न  सुरसन्दरीने पैर के अंगूठे से जमीन कुरेद्ते हुए उत्तर दिया।- प्रभुकी दयासे आनंद है।!

सेठ थोड़ी देर इधर उघर करके बोला।--“राजमुता, मेरी एक भायेना है। क्या स्वीकृत होगी”?

सुरसुन्दराने मन ही मन कह--“यह दुए प्रहति प्रकाशका श्रीगणेश है, ( पत्यक्षमें चोली ) में किस योग्य हूँ जो आपकी वात पूरी कर सके ”  

सेठ--आप सव कुछ फरनेका सामथ्य रखती हैं। 

सुरसुन्दरी--( मन में ) क्या कहना चाहते हैं सुनें तो ( प्रकट ) कहिये।

सेठ--क्या तुम यह नहीं समझ सकतीं कि में तुम्हें अपने जहाज में  क्यो लाया हूँ

सुरसुन्दरी--दया करके सुरक्षित स्थानमें पहुंचानेके लिये । एक विदूप व्यंजक हँसी हँसकर सेठ बोला  “वाह ! ऐसी भोली बातें करती हो, मानों तुम दुधमुंही बच्ची हो। अच्छा सुनो; मै तुम्हें अपनी--हमेशा के छिए अपनी-बनाने के लिए लाया हूँ । ! 

सुरसुन्दरी--में तो हमेशा आपकी पुत्री रहूगी।

सेठके हृदय  में मानों किसी ने छुरी मार दी। वह झुँक्षला कर

बोला;--“ पुत्री नहीं अपनी स्त्री  बनाने के लिए।” सुरसुन्दरी ने घृणा से कहा -“छिः | कैसी अधर्म  की बातें करते हो ! क्या इसी लिए आश्वासन देकर, प्रतिज्ञा करमुझे लाये हो !! 

ही ही करके सेठ हँसा और वोला।--“मछुआ मछली को क्या किसी मधुर जलके स्रोत में  छोड़ देने के लिए पकड़ता है! पारधी क्या चिढ़िया को एक जंगलसे ले जाकर, दूसरे जंगल  में छोड़नेके लिए, जाल विछाता है?  सुंदर उद्यान में से आम और अनार क्या फेंक देनेके लिए चुने जाते हैं? उस सम्रय की प्रतिज्ञा एक जाल था । उस जाल को विछाये (बिना क्या यह चिड़िया उसमें फँसती और क्‍या में इस रूप-सुधाको अपने काम में  आने के लिए  न लाकर जंगल में सूखने के लिए छोड़ आता ! 

सुरस॒न्दरी क्रोध से तमतमा उठी और गरजकर  बोली   चुप!” अपनी वाणी का सुलभ वाकू पटूता दिखाते हुए सेठ बोला ।- सब कार्य चुपचाप है तो होगा ।” सुरसुन्दरीका सारा शरीर क्रोधसे कांप  रहा था | उसकी जवान से पूरे शब्द नहीं निकल पाते थे | उसका क्षत्रीत्य फुंकार उठा था। उसकी ऑखों से भीषण  दीप्ति निकल रही थी। वह वोली/--/ चाण्डाल ! जवान बंद  कर | अगर एक शब्द भी आगे वोलता  तो“ !” आगे शब्द न निकले | 

सउल्टे ाहुकार भी क्रुद्ध  हो उठा | बैठा था खड़ा  हो गया और अपनी राक्षस -कायको लेकर सुरसुंदरीके सामने जा खड़ा हुआ और  कहने लगा “ नादान औरत ! जानती नहीं हो कि, इस समय तुम मेरे कब्जे में हो | तुम्हें चाहिए कि, तुम मेरा हुक्म मानो | अहसान मानना और मेरी इच्छाओं के सामने तुम्हें सिर झुकाना चाहिए सो तो एक तरफ रहा। उल्टे  अपनी जान वचाने वाले पर गुर्राती  हो । ऐसी कृधता  ! देखो !  

तुम्हारी  भलाई इसी में है  कि तुम चुप चाप मेरी इच्छाके अनुसार चलो  और मेरे साथ जीवनका सुख उठाओ | अन्यथा ध्यान रखो  कि, मुझे जबदरती अपनी इच्छा पूर्ण करनी होगी । ”

सुरसन्दरीने कहा।--/नालायक सोती सिहनी को न जगा;  नहीं तो वह तुझे कुचल  देगी; तेरा सिर विदारण कर देगी; तेरी इस भंसेकीसी देहकी मिट्टी में  मिला देगी । एक पतित्र व्रता स्त्री  के सामने ऐसी वातें करना अपनी मोत कों पुकारना हैं। 

सावधान ! ” सेठ--बाह ! ये नाजुक हाथ मुझे मिट्टीमें मिलाने के लिए आंवें; यह सुकोमर शरीर मुझे कुचलने की कोशिश करे; यही तो में भी चाहता हूँ । सुरस॒न्दरी ! ये सब वातें व्यर्थ हैं। सुख मनाओ और जीवन की सफल करो | तुम्हारी चिलाहट यहाँ कुछ काम न देगी । भीम-वलधारी मेरे बाहो से तुम्हें वचाने- का सामथ्य किसी में भी नहीं है| ” सुरसुन्दरीने अपने ऑचल में से हुपी हुईं एक छुरी खींच ली और गरज कर कहा-“ दुष्टात्मा! देख ! क्षत्राणीकी रक्षिका, सतीकी मर्यादाकी ढाल, स्लीधमं का कवच और दुष् दलनी दानवी यह मेरी हुरी तेरे भीमवर हाथोंसे मेरी रक्षा करेगी | सावधान | यदि एक कदम भी आगे वढ़ायगा तो अपने को प्ृथ्वीमें धूल चाटते पायगा | सावधान ! ”

वनिया छुरी देखकर ढर गया। वह दो कदम पीछे हृट गया। धीरे धीरे पीछे हटता हुआ कमरे केदरवाजे  के पास 'जा पहुँचा । झटसे बाहर निकल गया। बाहरसे दवोजा वंद कर वोढा;--“ देखूँ  केसे मेरी आज्ञा का अनादर करोगी ” 

वह बाहर से सॉकल लगाकर चला गया। सुरसुन्दरी अकेली रह गई। उसे अपनी वास्तविक स्थितिका भान हुआ | वह सोचने लगी,--अब क्या करना चाहिए ? असहाय अबला | नाथ ! रक्षा करो ! अशरणशरण, शरण दो ! हाय ! अब केसे में अपने सतीत्व-रत्नको इस छुटेरेसे बचाऊँ ! आह! दुनियामें पुरुष कितने नीच ओर विश्वासघातक होते हैं ? माता बहिन वेदीका जिन्हें

खयाल नहीं। अपनी प्रतिज्ञाका जिन्हें विचार नहीं; अपने  धर्म का जिन्हें ध्यान नहीं; वे क्‍या पुरुष हैं ! छि; ! इनसे तो सॉप ही अच्छा है। वह कभी विश्वासघात तो नहीं करता। इसी से तो लोग कहते हैं कि-- सॉंपा सॉप भी  नहीं खाता ! हों तो एक उपाय है--आत्महत्या । आत्महत्या के विचार- से उसका कलेजा कॉप गया। 

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रचनाएँ
सुरसुन्दरी
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सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
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सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022
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“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे

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भाग 2

26 अगस्त 2022
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द्वीप  गोलाकार है । इसका घेर तीन ढाख योजनका हैं। इसीमें चम्पा नामकी एक सुन्दर, रम्ये, धनपान्यपृणे नगरी थी । इसके अन्दर रहने वाले सभी सुखी थे, उस नगरीके राजाका नाम रिपुयंदेन था। बह अपने देशवासियां- का

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भाग 3

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वहुत सोच विचार के वाद दोनों ने यही स्थिर किया कि, अपरकुमार के साथ सुरसुंदरी का व्याह कर दिया जाय। अमरकुमार के पिता धनावह बुलाये गये | राजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और अपने मनकी वात कही | धनावह सर्

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भाग 4

27 अगस्त 2022
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तब माताने कहाः--“ बेटी, संसार नारी के लिए पति से  बढ़कर  और कोई नहीं है। पतिं के हृदय कों प्रफुलित रखना ही स्त्री का का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पतिकी भूलकों न देख उसके गुणों में लीन होना और उसकी दुर्बलता

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भाग 5

27 अगस्त 2022
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सुरसंंदरी जागी, उठी, अंखें मढीं, आसू  पोछा  और इधर उधर देखने लगी | कोई दिखाई नहीं दिया। बेठी थी खड़ी हो गई और वक्षों में यहाँ वहाँ खोजने लगी; मगर अमरकुमार कई नहीं दीखा। वह घबरा भयसे हृदय धढ़कने लगा,मु

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भाग 6

27 अगस्त 2022
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करेगा अगर  फिर आत्महत्या करना भी पातक है । तो किया क्या जाय  आत्महत्या विशेष पातक है या शील-भंग शील-भंगके विचारने उसकी अजब दशा कर दी। वह हृतासे छुरी पकड़, इधर उधर टहलने लगी।  नहीं । समुद्र कृद पहना ह

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भाग 8

27 अगस्त 2022
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भूख  जिससे स्त्रीका जीवन है, जिसके कारण स्त्री सिर ऊँचा करके चल सकती है, जिसके कारण ग्रह सगे है, जिसके कारण स्त्री देवी कहलाती है, जिसके कारण उसे सर्वोपरि स्थान मिला है, मिसके प्रभावलसे सारा संसार स्त

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भाग 9

27 अगस्त 2022
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पिछली रात के सन्नाटे मे किसी ने आकर उस कमरे के किवाड़, जिसमें सुरसुन्दरी आकाश पाताल की बातें सोच रही थी, धीरे से खटखटया  |  सुरसुन्दरी ने दरवाजा खोल दिया | नवयुवती अन्दर आईं। उसके हाथ एक रस्सा था। वह

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भाग 10

27 अगस्त 2022
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 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए

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भाग 11

27 अगस्त 2022
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उसने सात कौड़ियों के चने खरीदे । उन्हें लेकर वह शहर के बाहर जा वेठी | पहले दिन उसको तीन कोड़ियों का नफा रहा । दूसरे दिन भी इसी तरह चने लेकर गई। पाँच कौड़ियों- का नफा हुआ ! धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ा

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