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सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022

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“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे  न है। इन विरोधी गु्णोंके विना नारीक वास्तविक रूप केसे प्रक: हो सकता है?  जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति ओर प्रेम सभी ख्रियों करती हैं । ( यह तो एक साधारण बात है । ख्रीका | वास्तविक रूप तो उसी समय प्रकद होता! [ है जब स्त्री अपने निदेय पतिकी मार खाकर ! उन पैरोंकी पूजा करती है, जो उसके  पीठपर छातीपर या अन्यत्र निर्दयता पू्षेक गिरते हैं । इसीसे उसका वास्तविक नारी! । रूप-पत्नीरूप-देवीरूप-जगजनरक्षिणी रूप-! प्रकट होता है। में भी नारी हूँ-वास्तविक - अथर्मे नारी रहूँगी।”

गरमी की  मौसम दुपहर का समय था | सन सन कर खा चछ रद्दी थी विद्यार्थियों को ठुद्दी मिल्ली थी। कई खेलने कूदमें म मस्त थे और कई मीठी नींद छे रहे थे। एक दस वरसकी सुंदर वालिका फूल चुनती हुईं पैठ गई। बैठी ही बेटी नींद लेने लगी । स्कूल  एक लड़का सबसे वड़ी आयुक्रा था | पढ़ने लिखने मे  भी होसियार था |  भी एक धनिक घरका। इस लिए गुरुती ने उसको सबका प्रुखिया वना रकखा था। इसकी आयु बारह वरस से ज्यादा नहीं थी | 

सबने कुछ सलाह की । वात स्थिर हुईं । तदलुसार उन कोड़ियोंका मिष्ठान्न आया | चने या बेर वरावर, जितना भी हिस्सेमे आया, सबने प्रसन्न होकर खाया | वालिकाका हिस्सा भी एक तरफ रख दिया गया। वालिका जागी। उस मुखिया लड़केने दो ढ़ुकर उसका भाग उसके सामने रख दिया और कहा--“ सुरसुन्द्री, तुम्हरे लिए तुम्हारे भागकी मिठाई अछग रख छोड़ी थी। लो खाओ और पढ़ना शुरू करो | ”सुरसुंदरीने आँखें मलते मलत पूछा आज मिठाई किस- ने वॉटी है ! ” उसने हँसते हुए  उत्तर दिया। तुम्हीने | ! सुरसुन्दरी कोष करके वोढी जाओ, झूठे कहीं के । सच कहो अमर कुमार ! आज मिठाई किसने मेंगवाई ! ! अमरकुमारने उसी तरह हँसते हुए कह सच कहता हूँ, यह तुम्हारी ही कृपा का फल है। ”सभी विद्यार्थी हँस पड़े | सुरसुन्द्री को उनका व्यवहार अच्छा न लगा। सुरसुन्दरी अपना स्वर पहले से जरा तीत्र करके वेली। ये क्या खिल २ लगा रक्खी है ! जाओ, मैं न खाऊँगी । ! अमरकुमार जवदंस्ती हँसी रोककर वोछा।--“ आप नाराज क्यों होती हैं! आपकी साड़ीके परले जो सात कौड़ियों वंधी थीं, उन्हीं की, पल्ले से खोलकर, हमने मिठाई मगवाई है|” 

सुरसुन्दरी के द्लिमें इस वातका वड़ा दुःख हुआ कि, उन लोगोने उसकी असाबधानी में कोड़ियाँ खोलकर, उसको पूछे विना, उनकी मिठाई मैँगवा ली  | उसका मिजाज बहुत गरम हो गया | उसने कहा;--चोर कहीं का | वढ़ा धन्ना सेठ आया है ! दूसरेके पेसॉ पर ताकढभिन्ना। किस गुरुने इस तरह चोरी करना सिखाया ! किसने ओरों की जेबें काटकर मिठाई चॉटना बताया ! किसने ऐसी उदारताका पाठ पढ़ाया! तेरी अकल कहों मारी गई थी? सबका मुखिया वना है ! क्या  ऐसे गिरहकटी ही के लिए माँ बाप  तेरी इस वातको सुनेंगे तो कहेंगे,- अच्छा कपूत जन्मा | 

गुरुजी सुनेंगे तो कहेंगे-  सब परिश्रम पानी मे गया सुरसुन्द्रीकी बातें सुनकर अमरकुमारकी भाहें भी चढ़ गई । वह बोला।--“ बढ़ी राजा जी की लड़की हुई है । सात कफोडियों क्या चीज हैं ! इन्ही के लिए ऐसी घबरा रही है पानों छाखोंकी दौरूत छुट गई है। ” सुरसुन्दरी कड़ककर वोछी--“ये लाखोंसे भी ज्यादा थीं, उनसे तो में राजाका राज खेती।” अप्ररकुमार कुछ उत्तर देना चाहता था; परन्तु इतनेदीमें गुरुजी आगये। अमरकुपारको विवश अपनी जीभ रोकनी पढ़ी। सुरसुन्दरीको जवर्दस्ती अपने मुँह पर लगाम लगानी पड़ी | थोड़ी देर सुरसुन्दरी सारी बातें भूल गई) परन्तु उपर- कुमार के हृदयसे स॒रसुन्दरीके शब्द नहीं  है कौटी में रान लेती | उसने स्थिर किया कि, अवकाश  मिलते ही  मै अपने अपपान का बदला लूगा |

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रचनाएँ
सुरसुन्दरी
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सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
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सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022
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“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे

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भाग 2

26 अगस्त 2022
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द्वीप  गोलाकार है । इसका घेर तीन ढाख योजनका हैं। इसीमें चम्पा नामकी एक सुन्दर, रम्ये, धनपान्यपृणे नगरी थी । इसके अन्दर रहने वाले सभी सुखी थे, उस नगरीके राजाका नाम रिपुयंदेन था। बह अपने देशवासियां- का

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भाग 3

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वहुत सोच विचार के वाद दोनों ने यही स्थिर किया कि, अपरकुमार के साथ सुरसुंदरी का व्याह कर दिया जाय। अमरकुमार के पिता धनावह बुलाये गये | राजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और अपने मनकी वात कही | धनावह सर्

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भाग 4

27 अगस्त 2022
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तब माताने कहाः--“ बेटी, संसार नारी के लिए पति से  बढ़कर  और कोई नहीं है। पतिं के हृदय कों प्रफुलित रखना ही स्त्री का का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पतिकी भूलकों न देख उसके गुणों में लीन होना और उसकी दुर्बलता

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भाग 5

27 अगस्त 2022
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सुरसंंदरी जागी, उठी, अंखें मढीं, आसू  पोछा  और इधर उधर देखने लगी | कोई दिखाई नहीं दिया। बेठी थी खड़ी हो गई और वक्षों में यहाँ वहाँ खोजने लगी; मगर अमरकुमार कई नहीं दीखा। वह घबरा भयसे हृदय धढ़कने लगा,मु

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भाग 6

27 अगस्त 2022
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 तब तुम यहां आनन्द हो ? तुम्दें फिरसे मनुष्य-समाज में जानेकी इच्छा नहीं है ” सुरसतुन्दरीके हृदयमें बढ़ा आन्दोलन उठा | वह कुछ क्षण  पृथ्वी की ओर देखती रही |  फिर जरा सिर उठाकर बोली इस भयानक वनमें, खग-म

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भाग 7

27 अगस्त 2022
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करेगा अगर  फिर आत्महत्या करना भी पातक है । तो किया क्या जाय  आत्महत्या विशेष पातक है या शील-भंग शील-भंगके विचारने उसकी अजब दशा कर दी। वह हृतासे छुरी पकड़, इधर उधर टहलने लगी।  नहीं । समुद्र कृद पहना ह

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भाग 8

27 अगस्त 2022
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भूख  जिससे स्त्रीका जीवन है, जिसके कारण स्त्री सिर ऊँचा करके चल सकती है, जिसके कारण ग्रह सगे है, जिसके कारण स्त्री देवी कहलाती है, जिसके कारण उसे सर्वोपरि स्थान मिला है, मिसके प्रभावलसे सारा संसार स्त

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भाग 9

27 अगस्त 2022
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पिछली रात के सन्नाटे मे किसी ने आकर उस कमरे के किवाड़, जिसमें सुरसुन्दरी आकाश पाताल की बातें सोच रही थी, धीरे से खटखटया  |  सुरसुन्दरी ने दरवाजा खोल दिया | नवयुवती अन्दर आईं। उसके हाथ एक रस्सा था। वह

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भाग 10

27 अगस्त 2022
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 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए

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भाग 11

27 अगस्त 2022
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उसने सात कौड़ियों के चने खरीदे । उन्हें लेकर वह शहर के बाहर जा वेठी | पहले दिन उसको तीन कोड़ियों का नफा रहा । दूसरे दिन भी इसी तरह चने लेकर गई। पाँच कौड़ियों- का नफा हुआ ! धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ा

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