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भाग 8

27 अगस्त 2022

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भूख  जिससे स्त्रीका जीवन है, जिसके कारण स्त्री सिर ऊँचा करके चल सकती है, जिसके कारण ग्रह सगे है, जिसके कारण स्त्री देवी कहलाती है, जिसके कारण उसे सर्वोपरि स्थान मिला है, मिसके प्रभावलसे सारा संसार स्तीकी महत्तांदो मानता है और उसके सामने सिर झुकाता

है उसी शील की, उसी सतीत्व को, उसी पति की धरोहर को तू चाहता है और उसे तुच्छ वात बताता है ! तुझे अधिकार है !”

यदि तू सीधी तरह से न मानेगी तो मुझे वल-प्रयोग करना पढ़ेगा । !

सुरसुंदरी हंसी और कहने लगी--विश्वास-घातक पुरुषोंको अपने वलका बढ़ा घमंद रहता हे ओर वही घमंड उनका सर्वनाश करता है ।

रावण ने सीतापर बल आजमाया; सतित्व  के बजह से टकरा- कर वह चूर २ हो गया; दुर्योधनने वलात्‌ द्रीपदी की लाज लेनी चाही, उसकी खुदकी लाज जाती रही; कीचकने सेरंध्रीका सत्‌ लूटना चाहा; मगर वह खुद लुट गया--हमेशा के लिए संसार से उठ गया । अभी थोड़े ही दिनकी वात है; इसी अवला के पास से, एक सेठ, इसके पति की धरोहर छीनना चाहता था, वह समुद्र के अंततह  जल में सदा के लिए विल्लीन हो गया। अब तेरी बारी है। तू भी अपना जोर आजमा और देख कि, क्‍या परिणाम होता है ”

संती की ऑखों से भयंकर ज्योति निकल रही यी। उसके प्रभाव को जहाज का स्वामी न सह सका | उसको भय भी लगा। वह थोड़ी देर खड़ा कुछ सोचता रहा | फिर मन ही मन कुछ स्थिरकर उसे यह कहकर चला गया “ अच्छी वात है। ”

उसने सुरसंदरी को वेच उससे घन कमाना स्थिर किया । उस जमाने में सोबन कुल नामका नगर वड़ा दुराचारी समझा जाता था| धन वेभव से परिपूर्ण नगर के छोगों में प्रायः दुराचार विशेष ही होता है। सौ मेंसे नननवे उदाहरणों मे दुराचार भ्रवृत्तिका कारण धन ही होता है। जहान के स्वामीने जहाज के लंगर सोवनकुलके किनारे ढल- वाये । अनेक प्रकार के कोश करके उसने सुरसुंदरी को वहीं एक वेश्या के हाथ वेच दिया। वेश्या ने सुरसुंदरीका रूप देख- कर जहाज के स्वामी को मुँह मॉगे पैसे दिये ।

॥ सुरसुंदरीको वैश्या के घर में आये अभी एक घंटा भी नहीं वीता था कि, सारे शहर में ये समाचार फैल गये | कई मनचढे रस और  साहुकार अपने २ इक्कों, टमटमों, बघियों और रथों पर सवार होकर आने लगे और  सुरसुंदरी की रुप-सुधाका पान कर कर जाने लगे।  सुरसुंद्री सब कुछ  समझ गई थी। उसकी ऑखों से चौधार आशू  बहने लगे। हाय | वेचारी एक दुःख से छूटी ही दुसरे दुःख जा गिरती है। भाग्यका यह विचित्र खेल है।

बेश्याने सुरसुदरी को उदासीनता छोड़कर आनंद से रहनेऔर सुख-भोग करने का उपदेश दिया। हायरे | सुख भोग !

जहों देखो बहीं तू इस देवी के लिए कालरूप होकर आ खड़ा होता है! जो तुझे चाहते हैं उनसे तू भागता है और जो तेरा

त्याग करते हैं उनके पीछे बुरी तरह से लगता है; अगर वे तेरा अनादर करते हैं तो तू उन्हें आमरण कष्ट देता है| यह तेरी

कैसी नीचता है !  सुरसुंदरीने सोचकर स्थिर किया कि, मीठे शब्दोंद्रारा इससे बोलना चाहिए और यहोसे निकल भागनेका कोई मागे तलाश करना चाहिए । वह वोलीः--“ में! मेरी तवीअत बहुत खराव हो रही है; मेरा चित्त ठिकाने नहीं है । मरुक्षे दो चार दिन आराम लेने दो | ”ुदरी एकान्तमं वेठी हुई सोच रही थी कि, अब कैसे यहोँसे छुटकारा हो, उसी समय एक नवयुवती उसके पास

आई और कड़ी दृष्टिसे उसकी ओर ताकती हुई बोली। जान  पड़ता है तू अपना यह अलोकिक सौदन्य लेकर यहाँ हंगे हटने आई है, सुखसभेगसे वंचित करने आई है, मगर

ध्यान रख कि, हम तुझे कभी यहों चैनसे रहने न देंगी, स बुरी तरह से मारेंगी कि तू जनम जनम तक न भूलेगी। ” सुरसुंदरी ने कह-- नहीं में यहाँ रहने नहीं आई हूँ- मैं  जबरदस्ती स्ती इस नरकर में फेक दी गई हूँ, मेरे शरीर में इस घर की वायु तीर सी चुभती है; मुझे जान पढ़ता है  मानों में आग की भद्टी में  भुन  रही हूं । इस भट्ठीसे निकलने का कोई यत्न नहीं है। हाय ! यदि तुम अपनी भलाई के लिए भी मुझे यहोँ सेनिकाल सकतीं, यदि इस नरक से निकालकर किसी शेर के सामने भी डाल सकतीं, तो में तुम्हारा वड़ा उपकार मानती |”

सुरसुदरी कहती कहती रो पड़ी | नवयुवती कों आश्रय हुआ । उसने प्रश्न किया;--“ क्या तुम्र अपने रूप योवन का सुख

उठाना नहीं चाहती ” सुरसुन्दरीने उत्तर दिया;-- यदि हो सके तो सदाके लिए नष्ट कर देना चाहती हूँ। यदि तुम दया करोर्ग

तो तुम्हारा कल्याण होगा । नवयुवती को सुरसुन्द्री की दशा पर कुछ दया आई | साथ ही उसने यह भी सोचा कि, यादि यह यहाँ से निकल जायगी ते यहॉपर मेरा आदर ओर अधिकार क्षुण्ण रहेगा, अन्यथा यह उनपर अधिकार कर लेगी ।

यह नवयुवती वेश्याके घरमे सबसे अधिक रूपवती थी: परन्तु सरसन्दरी के सामने उसका रूप पतंगे का सा था; इसीलिये उसने सुरसुन्दरी को वहा से निकाल देना ही उचित समझा | उसने कहा-“ यदि तुमको यहाँ से निकल ही भागना है तो पिछली रात को तेयार रहना । में प्रबंध करके तुमको  यहाँ  से दूर  पहुचा दूँगी। ” सुरसुन्दरा ने कहा;-- में तुम्हारी यावज्जीवन कृतज्ञ रहेंगी | ” नवयुवती चली गई  |

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रचनाएँ
सुरसुन्दरी
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सुरसुन्दरी नारी होकर तेरे यह भाव सराहनीय है पुरुष धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कामनीयता और कोमलता है तो स्त्री धर्म दया है पुरुष का धर्म उठना है तो स्त्री धर्म सर्वज्ञान है इन विरोधी गुटों के बीच नारी वास्तविक रूप कैसे प्रकट हो सकता है जो पति स्नेह और आदर करता है उससे तो भक्ति और प्रेम सभी स्त्रियां करती हैं यह तो एक साधारण बात है स्त्री वास्तविक रूप तो उस समय प्रकट होता है जब स्त्री अपने निर्णय पति की मार खाकर भी उन पैरों की पूजा करती है जो उसकी पीठ पर छाती पर या अनंत निर्दयता पूर्वक गिरते हैं इसी से उसका वास्तविक नारी रूप पति रूप देवी रूप जगत नारायण रूप प्रकट होता है मैं भी नारी हूं वास्तविक अर्थ में नारी रहूंगी |
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सुरसुंदरी भाग 1

26 अगस्त 2022
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“ छिः ! सुरसुंदरी ! नारी होकर तेरे भाव ! पुरुषका धर्म कठोरता है तो नारी का धर्म कमनीयता और  कोमलता है । पुरुषका  कार्य  निर्दयता है तो ख्रीका धर्म दया है । | पुरुषका धर्म छूटना है तो ख्लीका धर्म सर्वे

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भाग 2

26 अगस्त 2022
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द्वीप  गोलाकार है । इसका घेर तीन ढाख योजनका हैं। इसीमें चम्पा नामकी एक सुन्दर, रम्ये, धनपान्यपृणे नगरी थी । इसके अन्दर रहने वाले सभी सुखी थे, उस नगरीके राजाका नाम रिपुयंदेन था। बह अपने देशवासियां- का

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भाग 3

27 अगस्त 2022
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वहुत सोच विचार के वाद दोनों ने यही स्थिर किया कि, अपरकुमार के साथ सुरसुंदरी का व्याह कर दिया जाय। अमरकुमार के पिता धनावह बुलाये गये | राजा ने उनका बड़ा आदर सत्कार किया और अपने मनकी वात कही | धनावह सर्

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भाग 4

27 अगस्त 2022
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तब माताने कहाः--“ बेटी, संसार नारी के लिए पति से  बढ़कर  और कोई नहीं है। पतिं के हृदय कों प्रफुलित रखना ही स्त्री का का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पतिकी भूलकों न देख उसके गुणों में लीन होना और उसकी दुर्बलता

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भाग 5

27 अगस्त 2022
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सुरसंंदरी जागी, उठी, अंखें मढीं, आसू  पोछा  और इधर उधर देखने लगी | कोई दिखाई नहीं दिया। बेठी थी खड़ी हो गई और वक्षों में यहाँ वहाँ खोजने लगी; मगर अमरकुमार कई नहीं दीखा। वह घबरा भयसे हृदय धढ़कने लगा,मु

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भाग 6

27 अगस्त 2022
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 तब तुम यहां आनन्द हो ? तुम्दें फिरसे मनुष्य-समाज में जानेकी इच्छा नहीं है ” सुरसतुन्दरीके हृदयमें बढ़ा आन्दोलन उठा | वह कुछ क्षण  पृथ्वी की ओर देखती रही |  फिर जरा सिर उठाकर बोली इस भयानक वनमें, खग-म

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भाग 7

27 अगस्त 2022
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करेगा अगर  फिर आत्महत्या करना भी पातक है । तो किया क्या जाय  आत्महत्या विशेष पातक है या शील-भंग शील-भंगके विचारने उसकी अजब दशा कर दी। वह हृतासे छुरी पकड़, इधर उधर टहलने लगी।  नहीं । समुद्र कृद पहना ह

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भाग 9

27 अगस्त 2022
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पिछली रात के सन्नाटे मे किसी ने आकर उस कमरे के किवाड़, जिसमें सुरसुन्दरी आकाश पाताल की बातें सोच रही थी, धीरे से खटखटया  |  सुरसुन्दरी ने दरवाजा खोल दिया | नवयुवती अन्दर आईं। उसके हाथ एक रस्सा था। वह

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भाग 10

27 अगस्त 2022
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 पैरो में काटे और कंकर चुभते हैं | उनसे रक्त निक्रलता हैं | पैर लह लहूलुहान हो गये हैं | कर्म की गति विचित्र हैं। भगवान ऋषभदेवको एक वरस तक अहार न मिला; महावीर स्वामीके कानों में कीलियों ठुकीं--आमरण कए

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भाग 11

27 अगस्त 2022
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उसने सात कौड़ियों के चने खरीदे । उन्हें लेकर वह शहर के बाहर जा वेठी | पहले दिन उसको तीन कोड़ियों का नफा रहा । दूसरे दिन भी इसी तरह चने लेकर गई। पाँच कौड़ियों- का नफा हुआ ! धीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ा

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