समर्पण और त्याग एक व्रक्ष के सामान है जो केवल समर्पण का भाव है त्याग के बिना मवव को श्रेस्थता प्राप्त नहीं हो सकती समर्पण के भावना ही एक पिरकार का यज्ञ है कहने का तातपर्य यह है की समर्पण भावना ही यज्ञ का उद्देश्य है क्योकी यज्ञ से ही हमे सिद्धि प्राप्त होती है एक पक्षी स्वर्ग से सोमरस लेने पहुँचा उस पक्षी की गर्जना सुनकर स्वर्ग के पहरेदार सावधान और चौकन्ने हो गए और वो पहरेदार सोमरस को उस पक्षी से छुपाने में लग गए तभी एक दुष्ट राक्षस कृषण ने अपने धनुस बाण से उसे मरने को दौड़ा परन्तु समर्पण त्याग और हिम्मत के कारन वह पक्षी सोमरस लेकर धरती की तरफ उड़ चला परन्तु तब तक वो राक्षस उसे तीर मार चूका था और तभी उस पक्षी का एक पंख कट कर नीचे गिर् गया था जहा उस पक्षी का पंख गिरा था उस जगह प्लास नामक पेड़ ऊगा था और ये ही सोमरस इंदर भगवान् का प्यारा पीने वाला पदार्थ बना