एक पक्षी जो अंनत सागर के ऊपर उड़ता है इसका अभिप्राय मानव मन की विभिन्न उठती इच्छा व अभिलाषाओं
से है मन की इच्छाए भी अन्नंत सागर की तरह कामनाओ से भरी पड़ी है जीवन भी इन्ही इच्छा सागर में कल्पना के पंख लगा कर उड़ता ही रहता है इसलिए विद्धवान कहते है के शक्ति का पिरयोग सोच समझ कर ही करना चाहेये और उन्होंने कहा है की जहा अमृत है वही विष भी होता है पाप और पुण्य समान्तर चलते रहते है और युग के अनुसार उनका गुण भी परिवर्तित होता रहता है