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☘️☘️ कौन वहां पर रहता है, किसे ख़बर है इसकी
अपने हैं कि पराये, कहता कोई नहीं यकीं से।।
अविनाशी तो, हर कण का वासी है, फिर !
कैसे ? हो सकता वह भला एक प्रवासी है।।
मिथ्या जगत में इस, मानव ही भ्रम फैलाता है
अपने बनाये जाल में स्वयं ही फंसता जाता है।।
कथनी और करनी में फर्क बहुत ही होता है
पाते हैं सब वैसा ही, जो जैस-जैसा बोता है।।
धरती , अंबर, नदियां, पर्वत करते यही पुकार हैं
ये चंचल चितवन चित्त ही तेरा स्वर्गसुनार है।।🙏☘️☘️