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साहब -- खुशियों का भी क्या?
कोई ठिकाना होता है।
जीवन में इनका आना तो,
केवल एक बहाना होता है ।।
है प्रश्न की ये कब, क्यों, कैसे, कहां से आती हैं ?
अज्ञात पक्षी की भांति ये डाल-डाल मंडराती है ।।
ये चार दिन की चांदनी दिखाकर
सबके मन को हर्षाती हैं।
पलक झपकते ही फिर न,
जाने कैसे ? ये-- छूमंतर हो जाती हैं ।।
दस्तक देती हमको ये, अनजाने में सौ-सौ बार हैं।
हम अड़ियल ट्टू बनकर ना, समझे कई बार में ।।
जब-जब घर में आए,
ये -- अपने लंबे पैर पसार कर।
घर, आंगन, गलियारा,
चौबारा -- सारा भर जाएं तार कर ।।
यह तो होती मनमौजी, मस्त मौला हैं
नहीं होता इनका कोई ठोर-ठिकाना है ।।
इसका ना होता कोई भी,
रूप, रंग और आकार है ।
खोजने वाला खोज ही लेता,
इसका मन मोहक विचित्र सा प्रकार है ।।
वश में कर लें अपने कोई, इसको
इतनी, तो किसी की ---- औकात नहीं होती ।
यह खुशियां हैं ---- जनाब
यह किसी के हुक्म की मोहताज नहीं होती ।।🙏