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वक़्त

3 अक्टूबर 2021

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✍️
ए वक्त जरा-- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं ---लौटेगा कल ।
इस कल और पल में अभी,  इंतिहान काफी हैं,
कुछ कर्ज हैं जो ---अभी चुकाने बाकी हैं,
अपने हिस्से के भी, कई फर्ज निभाने बाकी हैं।।

ए वक्त जरा--- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल ।

रफ्तार में तेरी चलने पर
कुछ है, जो पीछे छूट गया---
कई अपनों का दिल भी टूट गया।
उन रूठे मुखड़ों पर फिर से--
मुस्कान जगाना बाकी है ।।

ए वक्त जरा---आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।

जो रिश्ते टूट कर बिखर गए,
कुछ बनते-बनते बिगड़ गए ।
उन टूटे, बिगड़े रिश्तो को---
एक सूत्र में पिरोना बाकी है
कई जख्म भरे जज्बातों पर भी,
मरहम  लगाना बाकी है ।।

ए वक्त जरा--- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।

कुछ ख्वाहिशें हैं जो, अभी अधूरी हैं
उनका पूरा होना बहुत जरूरी है।
जीवन की उलझी, इस पहेली----
को अभी-- पूरी सुलझाना बाकी है ।।

ए वक्त जरा---आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।

चलती हुई इन सांसों के, थम जाने का कुछ पता नहीं,
कब, क्यों ?  दे जाएं ---- ये  दगा यहीं ।
इस चंचल मन के हठी बालक को---
अपना अस्तित्व जताना बाकी है ।।

ए वक्त जरा----- आहिस्ता चल,
यह पल---- नहीं लौटेगा कल  ।।🙏


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रचनाएँ
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🍀🍀दिल से निकली, खुले विचारों से लिखी। ज़िंदगी की हकीकत से रूबरू कराती है। संक्षेप में बहुत कुछ कह जाती है। अनजाने में ही सही अपने अस्तित्व का अहसास कराती।🌻🌻
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