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ए वक्त जरा-- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं ---लौटेगा कल ।
इस कल और पल में अभी, इंतिहान काफी हैं,
कुछ कर्ज हैं जो ---अभी चुकाने बाकी हैं,
अपने हिस्से के भी, कई फर्ज निभाने बाकी हैं।।
ए वक्त जरा--- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल ।
रफ्तार में तेरी चलने पर
कुछ है, जो पीछे छूट गया---
कई अपनों का दिल भी टूट गया।
उन रूठे मुखड़ों पर फिर से--
मुस्कान जगाना बाकी है ।।
ए वक्त जरा---आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।
जो रिश्ते टूट कर बिखर गए,
कुछ बनते-बनते बिगड़ गए ।
उन टूटे, बिगड़े रिश्तो को---
एक सूत्र में पिरोना बाकी है
कई जख्म भरे जज्बातों पर भी,
मरहम लगाना बाकी है ।।
ए वक्त जरा--- आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।
कुछ ख्वाहिशें हैं जो, अभी अधूरी हैं
उनका पूरा होना बहुत जरूरी है।
जीवन की उलझी, इस पहेली----
को अभी-- पूरी सुलझाना बाकी है ।।
ए वक्त जरा---आहिस्ता चल,
यह पल नहीं--- लौटेगा कल।
चलती हुई इन सांसों के, थम जाने का कुछ पता नहीं,
कब, क्यों ? दे जाएं ---- ये दगा यहीं ।
इस चंचल मन के हठी बालक को---
अपना अस्तित्व जताना बाकी है ।।
ए वक्त जरा----- आहिस्ता चल,
यह पल---- नहीं लौटेगा कल ।।🙏