✍️उम्मीद - हमारी दहलीज़ पर खडी वो मुस्कान है जो हमारे कानों में धीरे से कहती है चिंता मत करो सब अच्छा होगा आज नहीं तो कल होगा।
प्रत्येक व्यक्ति छोटी बड़ी अनेक समस्याओं से ताउम्र ग्रसित रहता है। इस भागती दौड़ती तेज रफ्तार जिंदगी में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के समक्ष अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। इनमें से एक समस्या मुख्य रूप से पानी की है।
कुछ लोगों की दिनचर्या प्रातः काल की झाड़ बुहार, वंदना, भजन, आरती तथा योग, प्राणायाम भ्रमण आदि क्रियाओं से प्रारंभ होती है, तो कुछ लोगों की ये सोचकर शुरू होती है कि ना जाने आज नल में कितनी देर पानी आएगा, आएगा भी कि नहीं। दोस्तों अपने दैनिक कार्यों की आवश्यकताओं के लिए पानी की आवश्यकता किसे नहीं होती ? इसके बिना तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। क्योंकि - जल है तो जीवन है अर्थात तभी तो सब कार्य संभव है।
मैं आपके समक्ष ऐसी ही एक जीवन शैली का उदाहरण प्रस्तुत कर रही हूं। देश की राजधानी दिल्ली मैं जल आपूर्ति की समस्या वैसे तो आम बात है परंतु दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र के पुराना रोशनपुरा के एक छोटे से हिस्से ५-७ घरों में पानी की समस्या पिछले कई सालों से बनी हुई है। परंतु पिछले ६ महीने से स्थिति इतनी गंभीर है कि पानी कितना आएगा, कब तक आएगा,कैसा आएगा? आदि प्रश्नों में से कुछ भी निश्चित नहीं होता। प्रातः 4:00 बजे से रात्रि 12:00 बजे तक पानी की प्रतीक्षा में पूरी दिनचर्या अस्त - व्यस्त व्यतीत होती है। कभी पानी 5-7 बाल्टी आ जाता है तो कभी आधी बाल्टी पानी के लिए भी मोहताज होना पड़ता है। कभी गलती से आधा घंटा पानी आ भी जाए तो इस बीच पानी ऐसे रंग बदलता है जैसे की गिरगिट।
तात्पर्य यह है कि नल में चलते-चलते पानी कभी हल्का पीला, तो कभी गदला तो कभी गंदा बदबूदार नाले का आने लगता है। ऐसी स्थिति में जो स्वच्छ पानी होता है उसे उबालकर पीने योग्य, गदले पानी में फिटकरी डालकर उसे नहाने-धोने वा शौच के प्रयोग में लाया जाता है। वही गंदे बदबूदार काले पानी को पेड़ पौधों तथा फ्लश में प्रयोग किया जाता है। इस विषय में जल विभाग सहित सभी उच्च अधिकारियों को लिखित व ऑनलाइन शिकायतें लगातार दर्ज कराई जा रही हैं परंतु समस्या जस की तस है। आश्वासन तो सभी देते हैं परंतु समस्या से निजात कोई नहीं दिलाता। पूरे क्षेत्र की होती तो शायद जल विभाग के आगे धरना प्रदर्शन, अधिकारियों का घेराव तथा मीडिया में इसकी चर्चा होती परंतु समस्या यहां मात्र 5 से 7 घरों की है इसलिए शायद अधिकारीगण इसे तवज्जो नहीं देते।
हद तो तब होती है जब मात्र 100 फीट की दूरी पर पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो रहा है जिसका दुरुपयोग लोग सीना तानकर करते हैं(वाहन,खिड़की-दरवाजे,चबूतरे गलियां धोते हैं।) इन लोगों को समझाना भी भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है। सभी प्रकार के सरकारी कर,तथा जल विभाग द्वारा जारी पानी का बिल जो कभी आता नहीं भी समय-समय पर जमा कराते हैं। फिर हमारे साथ यह नाइंसाफी क्यों? आस-पड़ोस में हेड पंप द्वारा प्रयोग में लिया जाने वाला पानी यदि कभी मदद के रूप में १०-१२ बाल्टी ले भी लिया जाए तो वह एक बार,दो बार तो दे देंगे परंतु तीसरी बार तो वह ऐसे नखरे करते हैं जैसे उनकी जायदाद में से हिस्सा मांग लिया हो।
खैर! भारत के कई राज्यों के क्षेत्रों, उपक्षेत्रों में भी यही स्थिति है।इस स्थिति को लोग अपना दुर्भाग्य अथवा नियति समझ संतोष कर लेते हैं। एक पुरानी किवद्वंती है एक कौवा प्यासा था घड़े में पानी थोड़ा था इस किवद्वंती में कौवे ने जिस प्रकार दो घूंट पानी के लिए संघर्ष किया उसी प्रकार हम भी संघर्षरत हैं। कहते हैं समय से पूर्व और नियति से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। हम भी सुबह सवेरे इसी उम्मीद के साथ नींद और बिस्तर को छोड़कर उठते हैं कि शायद नल में पानी कल की अपेक्षा अधिक स्वच्छ,अधिक मात्रा में तथा अधिक समय तक आएगा।🙏