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-व्यंग

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मुंबई की मोटर साइकिल सवार गड्डे में फिसल गईदिल्ली के अनिल गुप्ता की जान नाले में निकल गईनगर निगमों की लापरवाही पर जनता बहुत नाराज़ हैखुलकर वो ये कहती है यहाँ होता ना कोई काज हैलेकिन भोली जनता को क्या इतना भी नहीं ज्ञात हैनिगम नेतागिरी के अड्डे हैं जहाँ उसकी नहीं औकात हैनालियां, सीवर और सड़क सफाई के

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बिहार की बोर्ड की परीक्षा के टौपरोंपर मुझे कतई क्रोध नहीं आता । मुझे उनपर तरस आता है और उनसे सुहानुभूति महसूस होतीहै । उन्हें एक ऐसी गलती के लिए जेल तक जाना पड़ा जो लाखों नहीं तो हजारों छात्र पुलिस ,मीडिया प्रशासन की आंखोके सामने करते पाये गये थे ,परीक्षा में नकल और सारे देश ने उसेटी वी पर देखा था

एक बार मेरे कमरे में अचानक 5-6 साँप घुस गए । मैं भयभीत एवं परेशान हो गया, उसकी वजह से मैं कश्मीरी हिंदुओं की तरह अपने ही घर से बेघर होकर (भगवान सब ठीक कर देगा) बाहर निकल गया । घटना की जानकारी होने से, आजू-बाजू एवं अन्य बाकी के कुछ लोग भी जमा हो गए । अनहोनी की आशंका के कारण और डर के मारे मैने पुलिस औ

बेसुरा बिहार का बैजू बन गया आओ बहस करें व्यापम से फर्जी डाक्टर बन गए आओ बहस करें मेघा को दुत्कार मिल रही आओ बहस करें सामाजिक न्याय की जोत जल रही आओ बहस करेंढेर कूडो के कम ना होते आओ बहस करें स्वच्छ भारत मिशन को ढोते आओ बहस करें अफसर अब भी लूट खा रहे आओ बहस करें ईमानदारी को धता बता रहे आओ बहस करें शि

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तब गांधीजी, विरोध में, करते थे अहिंसक आंदोलन और अनशन । आज कांग्रेसी, विरोध में,करते हैं हिंसा और गौमांस भक्षण । कुर्सी के गम में, मारी गयी मत है । कुछ सूझता नहीं ,क्या सही ,क्या गलत है।

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जरा देखो कहीं कोई फसाद,हुआ हो तो वहाँ जाया जाये । नहीं हुआ हो तो जाकर कराया जाये । राजनीति में निठल्लापन ठीक नहीं । कहीं आग लगा के बुझाया जाये ।

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हाल पूंछते हैं ,कि भड़काते हैं ?बाहर ही रहने दो ,जो हालपुर्सी को ,चले आते हैं । कोई मरहम ही इनके पास नहीं ;जख्मों पे नमक छिड़क के ,चले जाते हैं ।

बच्चे से मैं प्रौढ़ हो गया जाना जीवन जंजाल हैइंसानी फितरत में देखा बस एक दाल रोटी का सवाल है कोई भी चैनल खोलो तो बेमतलब के सुर ताल हैंपत्रकारों की भीड़ का भी बस एक दाल रोटी का सवाल है नेता नित देश की सेवा करते देश मगर बदहाल हैइसमें में भी तो आखिर उनकी बस एक दाल रोटी का

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एक सरकारी दफ्तर में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, सौरभ घुसता है। सौरभ अपना झोला लेकर अंदर आता है और अपने विभाग से जुड़े एक बाबू (क्लर्क) के बारे में पूछता है। उसकी डेस्क पर जाकर वो अपना दुखड़ा रखता है।"सर मेरा कई सालों का ट्रेवल अलाउंस, पेट्रोल अलाउंस, नच बलिये अलाउंस कुछ नहीं आया है, अब आप ही कुछ कीजिये

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मैं तो अँधेरे में जी रहा थाटिमटिमाती ढिबरी के सहारेउसने मेरी झोपड़ी मेंआग लगाकर रोशनी कर दीअब मैं बेसहारा बन करइस रोशनी में जल रहा हूँनमक की हाड़ी की तरहजाड़े में गल रहा हूँजौ तो साबुत बचे हुए हैंजो घुन है पिस रहे है यह जो डिजिटल चक्की हैकोई साज़िश पक्की हैदिवंगत होती

देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।जनता के घर डाका डाला मिलकर नमक हरामों ने ।खादी टोपी बर्बादी की बनी आज परिचायक है ।चोर उचक्के आज बन गए जनता के जन नायक हैं ।गाली – गोली किस्मत अपनी जीवन फँसा सवालों में ।देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।सरकारी जोंकें चिपकी हैं लोकतन्त्र के सीने में ।

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एक देश में कई देश देखालाइन में खड़ा दरवेश देखाजड़ खोदकर फल इतरा रहा हैकिसकी ज़मीन खा रहा हैभस्मासुर गा रहा हैगंगाजल बेचकरनमामि गंगे गा रहा हैलक्ष्मी के दरबार मेंश्रीहीनता का दौर हैदिवंगत धन के बोझ सेनिजात पा कर पेट खाली हैदुरभिसंधि की जुगा

लाल बुझक्कड़ की सरकार मेंसनसनी ही सनसनी हो रही हैजनता में जनता का ही हिस्सा हैऔर उस हिस्से का कोई किस्सा हैबासी अख़बारों की तरह योजनाएँरोज काले चश्मों से पढ़ी जाती हैंसमाधान भी विचित्र गढ़ी जाती हैपेट की आग पर पूंजी पक रही हैबटलोई में कोई राज ढक रही हैजो तिजोरी में बंद है वह सफ़ेद हैजेब से जो बच गया वह

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वह यही था सच जोयुगों के ज्ञान के इलाके मेंबुद्धि के उबड़ -खाबड़ पगडंडियो परचलता हुआ अँधेरे से उजाले की ओरऔर वह उजाला भी युगान्त के बादबने मठों के अँधेरे में ढलता गयाजैसे तेज आँखों में मोतियाबिन्द हो गया होखुद के परदे में समूचा दृश्य ख

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वो तो देश के लिए जान देते हैऔर देश के लिए जान लेते है ये तो देश के जांबाज बेटे हैं देश के कोने से कोई पूछता है लिए गए और दिए गए जानों की गिनती तो गज़ब का देशद्रोह है देश के भीतर कोई खोह है जिससे देश वालों को खतरा है कितना अविश्वास पसरा है ?घोसले में से निकलकर परिंदा ठूँठ पर बैठा है किसी विरासत पर ऐंठ

जब भी मेरा भारत महान होता हैमेरा दिल सारे जहाँ से अच्छाहिन्दोस्तां होने को बेताब होता हैघूसखोर हाथों से जब तिरंगा फहरता हैमेरा दिल क्यों इतना कहरता हैबापू तुम तो भ्रष्ट ऑफिसों में टंगे होघुस के लिफाफे में लाखों करोङो में बंधे होतुम्हारे आज़ाद बन्दर न बुरा देखते हैंन बुरा सुनते है न ही बुरा कहते हैसि

आज तो सब कुछ हिन्दीमय लग रहा हैयह कातिलाना अंदाज़ किसको ठग रहा हैलगता है कोई अधूरा स्वप्न जग रहा हैक्या सूखे फूल पर तितली मँड़राती है ?किस अँधेरे में यह कोयल गाती हैअब तो दिया अलग है अलग बाती हैयह जो जुगाड़ू हिंदीवालों की थाती हैअंग्रेजी पीती है और अंग्रेजी खाती हैदेशी

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लड़की ब्यूटीफुल कर गयी चुल्ल.......इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करों जिससे इसकी अस्लियत पुरे देश को पता लगे कि ये कितनी बड़ी वाली ...........हैं

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