बच्चे से मैं प्रौढ़ हो गया जाना जीवन जंजाल है
इंसानी फितरत में देखा बस एक दाल रोटी का सवाल है
कोई भी चैनल खोलो तो बेमतलब के सुर ताल हैं
पत्रकारों की भीड़ का भी बस एक दाल रोटी का सवाल है
नेता नित देश की सेवा करते देश मगर बदहाल है
इसमें में भी तो आखिर उनकी बस एक दाल रोटी का सवाल है
अरबों के इस देश में केवल आराध्या बच्चन नौनिहाल है
फोटोग्राफरों का भी आखिर बस एक दाल रोटी का सवाल है
काले धन को सफ़ेद करने को क्रिकेट का मायाजाल है
इतने सारे खिलाड़ियों की भी बस एक दाल रोटी का सवाल है
न्याय देश में मिलता सबको बस लगते कुछ ज्यादा साल हैं
निरीह वकीलों का भी आखिर बस एक दाल रोटी का सवाल है
ढेरों नकली गांधी हैं बस आंदोलन जिनके ख़याल है
इन्हीं धंधो में छुपा हुआ उनकी बस एक दाल रोटी का सवाल है
शिशिर मधुकर