shabd-logo

हालपुर्सी

29 मई 2017

186 बार देखा गया 186
featured image

हाल पूंछते हैं ,

कि भड़काते हैं ?

बाहर ही रहने दो ,

जो हालपुर्सी को ,

चले आते हैं ।

कोई मरहम ही

इनके पास नहीं ;

जख्मों पे नमक

छिड़क के ,

चले जाते हैं ।

Kokilaben Hospital India

Kokilaben Hospital India

We are urgently in need of kidney donors in Kokilaben Hospital India for the sum of $450,000,00,For more info Email: kokilabendhirubhaihospital@gmail.com WhatsApp +91 779-583-3215 अधिक जानकारी के लिए हमें कोकिलाबेन अस्पताल के भारत में गुर्दे के दाताओं की तत्काल आवश्यकता $ 450,000,00 की राशि के लिए है ईमेल: कोकिलाबेन धीरूभाई अस्पताल @ gmail.com व्हाट्सएप +91 779-583-3215

8 मार्च 2018

रेणु

रेणु

बहुत सुंदरऔर सार्थक अभिव्यक्ति ----

29 मई 2017

1

आरक्षण

28 मई 2016
0
1
0

आरक्षण का प्रश्न एक टेढ़ा प्रश्न है और बड़ा संवेदन शील भी । आरक्षण पर मुख्यतह दो ही विचार धारा वाले लोग हैं । जो आरक्षित वर्ग के लोग हैं वे चाहते हैं आरक्षण होना चाहिये ,हमेशा होना चाहिये और हर क्षेत्र में होना चाहिये । जो आरक्षित वर्ग में नहीं हैं अधिकतर मानते हैं आरक्षण नहीं होना चाहिये । वे इसे अन्

2

वाह

24 जून 2016
0
1
1

शायर मुशायरे से लौटा ही था कि बीबी ने पूंछा क्या कमाकर लाये हो शायर बोला 'वाह'बीबी ने माथा ठोका और बोली अब मैंने कौन सा शेर पढ़ दिया ?.....

3

बॉस या सास (व्यंग)

26 जून 2016
0
6
1

हर एम्प्लॉई का एक बॉस होता है और हर बहू की सास । कभी एक सेअधिक बॉस और एक से अधिक सासों से भी एक साथ पाला पड़ता हैं जैसे एडमिनिस्ट्रेटिव बॉस , ऑपरेशनल बॉस / चचिया सास ,ममिया सास आदि । बॉस और सास दो तरह के होते हैं । एक वो जो अपने बॉस  /सास से प्रताड़ित होते हैं उसका बदला वो अपने अधीनस्थ कर्मचारी /बहू क

4

टीवी- बहस (व्यंग)

28 जून 2016
0
1
1

किसीने कहा है मनुष्य आदतों वाला प्राणी है । मनुष्य को बड़ी जल्दी कोई आदत लगती है और कोईन कोई आदत लगती जरूर है । आजकलमुझे एक नयी आदत लगी है ,टीवी पर राजनैतिक बहस देखना । बल्कि मैं  समझता हूँ लत लग गयी है । आदत और लत में शायद फर्कनहीं है लेकिन लत शब्द मुझे गहरी और मजबूर कर देने वाली आदत का बोध कराता है

5

फ़ास्ट ड्राइविंग

8 जुलाई 2016
0
2
1

तेज वाहन चलाने के शौकीनों से मेरी प्रार्थना है कि वे फार्मूला 1, 2, 3 आदि में भाग लें लेकिन शहर की उपेक्षित किन्तु अति दमित, पिटी हुई  और नाराज सड़कों पर वाहन अंधाधुन्ध तेज चलाकर खुद की और औरों की जान जोखिम में न डालें । मैं कई बार देखता हूँ कि दायें बायें कहीं से भी निकल कर भागने वाले लोग और वे लोग 

6

सुवचनों की समस्या

14 जुलाई 2016
0
1
0

कहा गया है अति सर्वत्र वर्जयेत । आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सारी बुरी बातें लिखी जाती हैं तो बहुत सारी अच्छी बातें भी लिखी जाती हैं । बहुत से लोग फेसबुक आदि पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिये यहाँ वहाँ से सुवचन  और महापुरुषों के कथन कट पेस्ट शेयर करते रहते हैं । कुछ लोग तो पूरे समय इसी में जुटे रहते ह

7

क्या सिर्फ डॉक्टर , इंजीनियर और वैज्ञानिक ही चाहिये ?

20 जुलाई 2016
0
3
0

 विज्ञानऔर तकनीकि  विकास के लिये उपयोगी एवं आवश्यकहैं लेकिन असली विकास तभी संभव है जब इनका संयमित और समुचित सदुपयोग हो । विज्ञान औरतकनीकी भौतिक सुखसाधन और संपन्नता तो बढ़ा सकतीं  है लेकिन मानसिक शांति ,आत्मिक विकास, सामाजिक समरसता लाने में उतनी कामगारनहीं हैं । विज्ञान के समक्ष साहित्य एवं अन्य ऐसे व

8

भ्रामक टीवी न्यूज चैनल्स

22 जुलाई 2016
0
1
0

 मुझे आजकल के टीवी न्यूज़ चेनलों से शिकायत है कि वो समाचार कमदेते हैं और मनोरंजन और रोमांच ज्यादा परोसते हैं । साथ ही उनका ज़ोर राजनीति और  नकारात्मक और आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग पर अधिकरहता है । उन्हें देख कर लगता है कि देश में न तो कुछ अच्छा हो रहा है न ही कोई उम्मीदबची है ।एक और बड़ी शिकायत ये है

9

इजहार

29 जुलाई 2016
0
1
0

तू ही मेरी महबूब हैजब बतलाया तोवो शर्म से गुलाब हो गयी । बोली ,’झूठ ‘पर जरा और पास हो गयी ।

10

शर्मनाक बुलंद शहर

1 अगस्त 2016
0
4
1

बुलंद शहर ,उत्तर प्रदेश में घटी लूट और माँ बेटी के साथ बलात्कार की घटना शर्मनाक ,अमानवीय और भयानक है । इस तरह की बढ़ती हुई घटनाये भय और चिंता पैदा करतीं हैं । हम शायद शत प्रतिशत अपराध मुक्त प्रदेश और समाज की अपेक्षा नहीं कर सकते लेकिन अपराधों पर काबू अवश्य पाया जा सकता है । इसके लिये समाज और सरकारों

11

आज़ादी

10 अगस्त 2016
0
0
0

हमारे देश की आज़ादी को 70 साल हो गये। लेकिन आज़ादी क्या है इसके बारे में लोगों ने अपनी अपनी परिभाषाएँ व धारणाएं  बना रखी है । आज़ादी आज़ादी चिल्लाते हुए कुछ लोग आजकल भी यहाँ वहाँ दिख जाते हैं । कुछ लोग कहते हैं हम अभी भी पूर्ण आज़ाद नहीं हुए हैं । आलंकारिक या दार्शनिक रूप से आज़ादी शब्द का प्रयोग या राजन

12

प्रभावी सत्य

16 अगस्त 2016
0
2
0

यूँ तो आदर्श रूप में सत्य सिर्फ सत्य होता है इसके आगे किसी विशेषण की आवश्यकता नहीं।  फिर भी इस बात से फर्क पड़ता है सत्य कहाँ बोला जा रहा है ,किस उद्देश्य से बोला जा रहा है और किसके द्वारा बोला जा रहा है । कानून की प्रक्रिया में सत्य का अलग महत्व है और समाज और देश काल में अलग। समाज और परिवार में यदि

13

मालूम नहीं

27 अगस्त 2016
0
1
0

जब दर्द न था,जिंदगी का पता न था । अब लंबी उम्र की दुआ ,ख़ौफ़ज़दा करती है । अपनी मर्ज़ी से मैं, न आया, न जाऊँगा । होगी विदाई बिना मर्जी । पुकारता हूँ तो वो नहीं सुनता ,क्यों आवाज़ दूं उसे ,ए जिंदगी । दिखलाके आइना ,चेहरा उसे दिखाए कोई । सुनते है बड़ा मोम है । मैं बेतजुर्बा हूँ । मुझे मालूम नहीं ।

14

अरमानो पर झाड़ू

1 सितम्बर 2016
0
0
0

मैं किसी राजनीति क पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं हूँ फिर भी राजनैतिकऔर राजअनैतिक गतिविधियों से प्रभावित तो होता ही हूँ । जब श्री अरविंद केजरीवाल राजनीति में आये और ए ए पी बनायी मुझे लगा देश में वाकई क्रांति आने वाली है । इसका शुरुआती अच्छा असर ये हुआ था कि सारे राजनीतिक दल

15

ज्वलनशील पानी और राजनीति

13 सितम्बर 2016
0
1
0

लगता है, अब पानी पेट्रोल से अधिक ज्वलनशील हो गयाहै । कावेरी नदी के पानी को लेकर तो ऐसा कह ही सकते हैं । 12 सितंबर को कावेरी जलबंटबारे को लेकर कर्नाटक में हुई हिंसा और आगजनी और तमिलनाडु में घटी घटनाएँ बेहद शर्मनाक एवं चिंतित करने वाली हैं।हद ये भी है कि यह सब उच्चतम न्यायालयके आदेश पारित करने के बाद

16

अब भुगतो (पाक को संदेश )

30 सितम्बर 2016
0
0
1

कहा था हमसे मत उलझो ।अब भुगतो ।सब्र का प्याला छलक गया ।अब भुगतो ।प्याला छलका है,बांध नहीं टूटा है अभी ।अब भी सुधर आओ वर्ना ,फिर भुगतो ।बांध टूटा तोभुगत भी न पाओगे ।कहाँ बह जाओगेकुछ खबर भी न पाओगे ।

17

सर्जिकल स्ट्राइक

8 अक्टूबर 2016
0
0
0

दलालों को दलाली दिखीझूठों ने मांगा सबूत ।उनकी माँ शर्मिंदा होगी ,कैसे जने कपूत ।इस युग के जयचंद बनेये दुश्मन की चालों के मोहरे ।जख्म दे गए जनमानस को गहरे ।

18

पी एम् को गालियां

16 अक्टूबर 2016
0
2
0

आज ट्विटर पर ट्रेंड देखा पिकपोकेटमोदी । बड़ा अफसोस हुआ । मैं स्पष्ट कर दूँ मैं किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़ा हुआ नहींहूँ । अफसोस इस बात का है कि सार्वजनिक राजनैतिक विमर्श का स्तर इतना गिर गया है किलोग किसी शिष्टाचार और मर्यादा की आवश्यकता ही अनुभव नहीं करते । कुछ लोगों को श्रीनरेंद्र मोदी नापसंद हो सक

19

मोदी एक समस्या

19 नवम्बर 2016
0
1
1

क्या ऐसा नहीं लगता कि जबसे नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने है पहले दिन से ही देश भारी समस्याओं से घिर गया और उन सबकी जड़ में नरेंद्र मोदी जी हैं । कम से कम मीडिया का एक बड़ा हिस्सा और विरोधी नेता ऐसा ही दर्शाते हैं । ये सब शायद इसलिए कि सत्ता और सत्ता के निकट के लोग सालों से एक दूसरे का सही गलत तरीकों

20

खामोश तस्वीर

17 दिसम्बर 2016
0
0
0

कहीं बरसे नयन । बारिश से धुले मौसम । आसुओं से धुले मन । जाते हुए पल कितने खामोश हैं ! वो चुप सी तस्वीर यादों में बसी है । उस खामोश तस्वीर से, मैं बातें करता हूँ । लगता है उसके होंठ क्या कहा ? सुन नहीं पाता हूँ । -रवि रंजन गोस्वामी

21

नोट बंदी से आशा

23 दिसम्बर 2016
0
0
0

८ नवंबर २०१६ के बाद से देश में एक ही समस्या है –‘नोट बंदी’। समाचार माध्यमों की सुर्खियां । टीवी समाचार और बहसें ऐसा ही बता रहे हैं । और किसी हद तक है भी क्योंकि सारा देश इससे प्रभावित है । साधारण जन की रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कठनाइयाँ बढ़ गयीं किन्तु वे बहुतायत में इस निर्णय का समर्थन कर रहे हैं । विभ

22

पत्थरबाज़

18 फरवरी 2017
0
2
2

वे मासूम हैं और उनके पत्थर अहिंसक । भले दहशतगर्दों की आड़ बन जायें । वे पत्थर मारें और हम फूल बरसायेँ ये भी देखें कि उनमें खार न हों । ऐसे मशवरे जो लोग देते हैं । उन्हें वे पत्थर क्यों न खिलाये जायें ? र र

23

विचार धाराओं का संघर्ष या देश द्रोह ?

25 मार्च 2017
0
1
0

किसी स्थान पर एक लेख पढ़ा था ‘गुलमहर और विचार धाराओं के संघर्ष में छात्रों के इस्तेमाल के बारे में । उस लेखक ने जे एन यू और डी यू में पिछले कुछ अंतराल में घटी घटनाओं को वाम पंथ और दक्षिण पंथ की विचार धाराओं के बीच संघर्ष के रूप मे समझाने की कोशिश की । उन्होने स्वीकार किया ये दोनों शिक्षण सं

24

हालपुर्सी

29 मई 2017
0
1
2

हाल पूंछते हैं ,कि भड़काते हैं ?बाहर ही रहने दो ,जो हालपुर्सी को ,चले आते हैं । कोई मरहम ही इनके पास नहीं ;जख्मों पे नमक छिड़क के ,चले जाते हैं ।

25

फसाद

29 मई 2017
0
1
2

जरा देखो कहीं कोई फसाद,हुआ हो तो वहाँ जाया जाये । नहीं हुआ हो तो जाकर कराया जाये । राजनीति में निठल्लापन ठीक नहीं । कहीं आग लगा के बुझाया जाये ।

26

अफसोस

30 मई 2017
0
3
3

तब गांधीजी, विरोध में, करते थे अहिंसक आंदोलन और अनशन । आज कांग्रेसी, विरोध में,करते हैं हिंसा और गौमांस भक्षण । कुर्सी के गम में, मारी गयी मत है । कुछ सूझता नहीं ,क्या सही ,क्या गलत है।

27

आंदोलन की आग

9 जून 2017
0
0
1

कुर्सी गयी धंधा गया ,हो गये जो बेकार ,आग लगाते फिर रहे ,नेता हैं दो चार । इनके घर भी फुकेंगे ,दिन ठहरो दो चार इनको इतनी समझ नहीं, आग न किसी की यार ।

28

बिहार के टॉपर

10 जून 2017
0
1
0

बिहार की बोर्ड की परीक्षा के टौपरोंपर मुझे कतई क्रोध नहीं आता । मुझे उनपर तरस आता है और उनसे सुहानुभूति महसूस होतीहै । उन्हें एक ऐसी गलती के लिए जेल तक जाना पड़ा जो लाखों नहीं तो हजारों छात्र पुलिस ,मीडिया प्रशासन की आंखोके सामने करते पाये गये थे ,परीक्षा में नकल और सारे देश ने उसेटी वी पर देखा था

29

माना जाएगा

18 जून 2017
0
1
3

न भागना ,न कोई बहाना काम आयेगा । मुश्किलों से सिर्फ टकराना काम आयेगा । लोग जहनी हैं, बहुत इल्म है जमाने में । होगा जो सही इस्तेमाल ,माना जायेगा । फुर्सत किसी को वक्त की मोहलत होगी । दिल को करार आयेगा तो, माना जायेगा ।

30

जी एस टी

1 जुलाई 2017
0
0
0

संदेह है तो परखो । आशंका है ,तो तैयारी रखो । हर बात में शंका ,हर बात में आशंका ,मत करो । आँखें मूँद कर विरोध ,मत करो ।

31

कुछ पत्रकारों से

18 अगस्त 2017
0
2
0

<!--[if gte mso 9]><xml> <o:OfficeDocumentSettings> <o:RelyOnVML></o:RelyOnVML> <o:AllowPNG></o:AllowPNG> </o:OfficeDocumentSettings></xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>

32

रामरहीम दास

25 अगस्त 2017
0
1
0

गुस्सा तो समझे ,था किसबात पे ?नाराज तो समझे ,थे किनसे ?ये आगजनी और हिंसा,किन लोगों पर ?कुछ नहीं सूझ रहा था। तो अपने सर फोड़ लेते। गुलाम, मालिक के वास्ते ,इतना तो कर सकते थे । -र र

33

सियासत में

8 सितम्बर 2017
0
0
1

दुश्मन बहुत बढ़ गये हैं सियासत में ,रंजिशें बहुत हो गयीं हैं सियासतमें । सत्ता की भूख तो थी सियासतमें । खूनी प्यास बढ़ गयी है सियासतमें। नफ़रतें कुछ इस कदर बढ़ गयीं हैं सियासत में, इंसानियत कुछ कमतर हो गयी है सियासत में ।

34

गरीब और त्यौहार

20 अक्टूबर 2017
0
0
0

गरीबों के लिये टसुए न टपकाइये ,कुछ कर सकते हैं तो करिये ,बेचारगी न फैलाइये . गरीबी पर राजनीति होती रही है और होती रहेगी .गरीबों पर तरस न फैशन बनाइये .साल भर में क्या किया जरा वो गिनाइये .एन त्यौहार पर आत्मग्लानि न पसराइये पर्व

35

जिंदगी और मौत

25 दिसम्बर 2017
0
0
0

ये तो मालूम है आओगी एक दिन ,कोई नहीं जानता वो होगा किस दिन। रोज जीते हैं रोज मरते हैं लोग ,किश्तों में जीते हैं यहाँ कुछ लोग। बुजदिल मौत से क्या !जिंदगी से भी डरते हैं बहादुर दोनों से दो दो हाथ करते हैं I

36

आजकल

23 जुलाई 2018
0
0
0

ठहरे पानी में पत्थर उछाल दिया है । उसने यह बड़ा कमाल किया है ।वह तपाक से गले मिलता है आजकल । शायद कोई नया पाठ पढ़ रहा है आजकल । आँखों की भाषा भी कमाल है । एक गलती और सब बंटाधार है ।

37

अफसोस

25 अगस्त 2018
0
1
1

सुबह टी वी पर न्यूज़ में दिखारहे थे किसी स्कूल के कुछ छात्र एक अध्यापक को पीट रहे थे । अध्यापक से वे छात्रइस बात से खफा हो गये थे कि उसने उनके नकल करने पर आपत्ति जतायी थी और उसमेंव्यवधान डाला था। मन खिन्न हो गया । किन्तु अगले ही पलों में खुलासा हुआ मामलामात्र नकल का नह

38

महिलाओं के प्रति अपराध

19 सितम्बर 2018
0
1
0

आजकल न्यूज़ पढ़ने और देखने में डर लगता है। न्यूज चैनलस खोलते ही बुरी खबरों की बारिश होने लगती हैं । नियमित आपराधिक खबरोंमें भीड़ द्वारा किसी की हत्या, सीमा पर आतंक वादियों का उत्पात, देश में कहीं न कहीं कोई गैंग रेप । और हर बात पर सरकार और विपक्ष का एकदूसरे पर हमला । और ये सब इतनी नियमितता से हो रहा है

39

लिबरल और हिन्दू संवेदना .

2 नवम्बर 2018
0
0
0

टी वी पर आज पीके पिक्चर आ रही थी । पहले एकबार पूरी पिक्चर देखी थी। आज जब टी वी खोला तो शंकर भगवान के वेश में एक नाटक के कलाकारकी हीरो आमिर खान द्वारा छीछालेदार हो रही थी। हमने बहुत लिबरल होने की कोशिश की लेकिन इस पिक्चर को पूरी पचा नहीं पाया। हर धर्ममें बहुत सी अच्छी बातें बताई जातीं कई । कुछ रूढ़िया

40

लोकतन्त्र

27 फरवरी 2019
0
0
0

लोकतन्त्रलोकतन्त्र,आज़ादी, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता,संप्रदायवाद,सेकुलर ये बड़े बड़े शब्द राजनेता और राजनीतिक पार्टियों द्वारा हर दिन अनेकों बारप्रयोग किये जाते हैं। संसद में आये दिन होने वाला हँगामा और पूरे पूरे सत्र संसदन चलने देना भी लोकतन्त्र है। इसमेंबदलाव आना चाहिये। यूं तो सड़क पर भी आप को सभ्य

41

चुनावी मौसम में

12 मार्च 2019
0
0
0

चुनावी मौसम में झूठ पर झूठ बोली जाएगी,खाई जाएगी,परोसी जाएगी,झूठ चासनी में डुबायी जाएगी। बड़े प्यार से खिलायी जाएगी। उसकी बन्दिशें हटायी जाएंगी। चुनाव की होली है। कई हफ्तों खेली जायेगी। कीचड़ उछाल खेली जायेगी। झूठ को मौका है अभी जी भर के इतराएगी । आखिर में उसकी असली जगह जनमत द्वारा दिखा दी जायेगी।

42

गली गली में शोर है ...

16 मार्च 2019
0
0
0

बचपनमें हमने भी नगर पालिका वार्ड्स इत्यादि चुनाव में बिना किसी भेद भाव या राजनीति केआयाराम के जुलूस में शामिल होकर नारे लगाए थे “गली गली में शोर है गयाराम चोर है” औरगयाराम के जुलूस में शामिल होकर नारे लगाए थे “ गली गली में शोर है आयाराम

43

चुनावी नारे

20 मार्च 2019
0
0
0

विकिपेडिया के अनुसार “नारा, राजनीतिक, आर्थिक र्और अन्य संदर्भों में, किसी विचार याउद्देश्य को बारंबार अभिव्यक्त करने के लिए प्रयुक्त एक आदर्श वाक्य या सूक्ति है।”भारत के स्वतत्रता सग्राम में नारों ने जनमानस मेंजान फूकने का काम किया था। उस समय के कुछ नारे थे –इंकलाब जि

44

चुनाव, मेनिफ़ेस्टो और कुछ भी ।

3 अप्रैल 2019
0
0
0

चुनाव, मेनिफेस्टो और कुछ भी भारत में चुनाव उत्सव, तमाशा, जंग, उद्योग सब कुछ है। कभी ये समुद्र मंथन सा लगता है जिसके परिणामस्वरूप रत्न और विष दोनों निकलते हैं। इसमें कौन देवता हैं और कौन दानव ज्ञानी ही समझसकते हैं। हर एक पक्ष खुद को देवता और सामने वाले को दानव कहता है

45

चुनाव , मेनिफेस्टो ,और कुछ भी

3 अप्रैल 2019
0
0
0

चुनाव, मेनिफेस्टो और कुछ भी भारत में चुनाव उत्सव, तमाशा, जंग, उद्योग सब कुछ है। कभी ये समुद्र मंथन सा लगता है जिसके परिणामस्वरूप रत्न और विष दोनों निकलते हैं। इसमें कौन देवता हैं और कौन दानव ज्ञानी ही समझसकते हैं। हर एक पक्ष खुद को देवता और सामने वाले को दानव कहता है ।इसमें मोहनी अवतार नहीं होता। प

46

राजनीतिक पत्रकारिता

9 अप्रैल 2019
0
2
0

राजनैतिक पत्रकारिता पहले में यह बताना चाहता हूँ कि मैंमीडिया का सम्मान करता हूँ और इसकी अनिवार्यता, उपयोगिता और सार्थकता मेंकोई संदेह नहीं है। पत्रकारों का काम कभी बहुत कठिन लगता है और कभीबडा आसान।आजकल पत्रकारों के नाम से सिर्फ राजनीतिके क्षेत्र में काम करने वाले पत्रकार ही ध्यान में आते। कह सकते है

47

मोदी पहेलियाँ

23 अप्रैल 2019
0
2
1

नरेंद्र दामोदर दास मोदी, वर्तमानप्रधानमंत्री, भारत से संबन्धित पहेलियाँ। <!--[if !supportLists]-->1- <!--[endif]-->पूर्ण बहुमत कीसरकार बनायी। कैसे?<!--[if !supportLists]-->2- <!--[endif]-->नोट बंदी जैसाबड़ा कदम लिया, जनता को थोड़ी बहुत असुविधा हुई फिर भी जनता ने साथ दिया। क्यों ?<!--[if !supportL

48

...और बल्लू ने पर्चा भर दिया ।

20 जून 2019
0
0
0

… और बल्लू ने पर्चा भर दिया। (व्यंग)शहर में चुनावों की सरगरमियांशुरू हो गयीं थीं। पार्टियों के दफ्तरों में टिकट के लिये अभ्यर्थियों की पहले लाइनलगी जो शीघ्र ही भीड़ में बदल गयी जब नेतागण समर्थकों के साथ जुटने लगे। कहीं ले देके काम हो रहा था।कहीं लाठी डंडों से निबटारा हो रहा था। नेताओं ने ये सब काम क

49

अच्छे -बुरे सामाचार माध्यम

14 सितम्बर 2019
0
0
0

यह सोचना स्वाभाविक है कि बहुमत से चुनाव जीतनेवाला व्यक्ति बाकी लोगों की तुलना में अधिक लोकप्रियहोगा। तब यहस्वाभाविक है कि मैंआश्चर्यचकित हो जाऊं जब इस व्यक्ति को राष्ट्रीय मीडिया में अधिकतम बुरा-भला कहा जाए।दूसरी ओर, दुनिया भर में होने वाली उसकी प्रशंसा भी मुझे आश्च

50

लोकतंत्र में

19 नवम्बर 2019
0
0
0

लोकतन्त्र में जायज कुछ चीजें ऐसी हैं कि कब उनका रूप नाजायज़ हो जाये कुछ कह नहीं सकते । एक है किसी मांग को लेकर आंदोलन और जुलूस। नहीं कह सकते कि कब ये हिंसक और विध्वंसकारी हो जाये । कुछ नारे कनफ्यूज करते हैं ,और डराते भी हैं । उनमें एक है "हमें चाहिये आज़ादी"। बड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद तो देश को आज़

51

ए टू ज़ेड राजनीति

25 दिसम्बर 2019
0
1
0

सी ए ए ,एन सी आर , एन पी ए , डिटेन्शन सेंटर की ए बी सी डी ने देश में कोहराम मचा रखा है । साथ ही शायद मच रहे उत्पात के पीछे मुद्दों की ए बी सी डी न समझना भी है । उपरोक्त मुद्दों पर जिसकी जो राय हो उसका सम्मान करते हुए मैं सिर्फ दृष्टिगत

52

आज़ादी के नारे ,अब

8 जनवरी 2020
0
2
0

आजकल होने वाले कुछ आंदोलनों में ,ख़ास कर कुछ युवा आन्दोलनों में एक नारा बड़ी उलझन में डाल देता है और डराता भी है। वह है "आज़ादी, हमें चाहिये आज़ादी।" इसके साथ एक से अधिक उलझे सवाल पैदा किये जाते है। आंदोलन फासिस्ट और सांप्रदायिक लोगों ,पार्टियों या सरकारों के खिलाफ बताया जाता है और नारे में आगे जोड़ दिया

53

वो नक़ाबपोश कौन थे?

12 जनवरी 2020
0
1
0

इंडिया बहुत बड़ा देश है। इसमें साल के बारह महीने कोई न कोई चुनाव चलता रहता है। और कोई भी सरकार रहे कहीं न कहीं किसी मुद्दे पे या मुद्दा खड़ा करके या बेमतलब धरना ,प्रदर्शन ,हड़ताल चलते रहते हैं। लोग जब हड़ताल होती है तो कभी कभी आर्थिक नुक्सान का आंकलन करते हैं। मुझे जिज्ञासा है किसी ने अध्ययन किया हो

54

आज़ादी के नारे और मुद्दों की बिरयानी।

24 जनवरी 2020
0
1
0

एक स्वतत्र संप्रभुता सपन्न राष्ट्र में जब लोगनारे लगाते हैं, “हमें चाहिये आज़ादी।” तो बड़ी विडम्बना सी लगती है। साथ ही कुछ आशंकाएजन्म लेती है। आजकल नागरिकता संशोधन बिल का कुछ लोग विरोध कररहे हैं। विरोध किसी भी मुद्दे पर हो कुछ लोगों का प्रिय नारा आज़ादी का नारा है। यहनारा एक विद्रोह के नारे जैसा लगता ह

55

जीवन रक्षकों के दुश्मन

18 अप्रैल 2020
0
0
0

देश में लगभग रोज कहीं न कहीं से स्वास्थ्य बिभागकर्मियों, डाक्टरों और पुलिस पर कुछ लोगोंद्वारा हमला करने, पथराव करने कीघटनाये सुनने में आती हैं। यह शर्मनाक हैं और खतरनाक भी जिन्हें शक्ति से रोका ही जानाचाहिए। किसी भी देश , धर्म, संप्रदाय या समाज में सब केसब जाहिल हों ऐसा संभव नहीं हैं । किन्तु आश्चर्

56

त्रासदी पर्यटन और अफ़सोस का मेला

12 अक्टूबर 2020
0
0
0

यह अवांछित और दुर्भाग्य पूर्ण सच है कि समाज में सब तरह के अपराध अब भी घटित होते हैं किन्तु सभी सुर्ख़ियों में नहीं आते। हत्या और बलात्कार जघन्य अपराध हैं। एक तो ये अपराध निंदनीय हैं और शर्मसार करने वाले है। उस पर मीडिया ,सरकारों और विभिन्न पार्टियों के नेताओं की प्रत

57

पंजाब के किसानों का आंदोलन

27 दिसम्बर 2020
0
0
0

वर्त्तमान में दिल्ली की सीमा पर चल रहे पंजाब के किसान आंदोलन की जो रूप रेखा है वह एक आदर्श हो सकती है। लम्बे संघर्ष की रणनीतिक तैयारी गजब की है। रसद सप्लाई। थोड़े थोड़े दिन बाद लोगों का घर लौटना और नये लोगो का आकर जुड़ना। मौसम के हिसाब से कपड़ों का इंतजाम। मेडिकल सुविधाएँ

58

किसान आंदोलन में विदेशी हसीनाओं की दिलचस्प दिलचस्पी।

3 फरवरी 2021
0
0
0

जब से सेक्सी और प्रसिद्द विदेशी बालाओं ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया। बल्लू सींग का जोश बढ़ गया। उनमें रेहाना नाम की गायिका है। उसका गाना तो समझ में न आया। किन्त

59

शर्मनाक राजनीति

9 फरवरी 2021
0
0
0

बेहद अफसोस है कांग्रेस राजनैतिक अनैतिकता में और आगे निकल गयी। टीवी पर दृश्य देखकर दंग रह गया। कांग्रेस पार्टी के कुछ कार्यकर्ता महान क्रिकेटर भारत रत्न श्री सचिन तेंदुलकर का कटआउट लेकर उनके खिलाफ नारे लगाते चल रहे थे । वे यहीं तक सीमित नहीं रहे उन्होने उनके कट आउट पर काली स्याही भी डाली । वजह उनका र

60

अंतहीन गरीबी

30 नवम्बर 2021
0
0
0

गरीबी का कोई विशेष वर्ण ,जाति ,वर्ग नहीं होता। किन्तु गरीबी और गरीबों की एक खास छबि हमारे दिमाग में बन गयी है ।1 गरीब किसान2 गरीब मजदूर3.कुछ अन्य तथाकथित निम्न वर्ग।ये कुछ उदाहरण हैं।समझ में नहीं आता

61

क्या मोदी को खतरा था ?

9 जनवरी 2022
2
0
1

कुछ दिन पूर्व पंजाब में पी एम की सुरक्षा के साथ जो खिलवाड़ हुआ हम सब ने देखा। अब राजनैतिक पार्टियां अपने अपने निहित स्वार्थ से प्रेरित होकर बहस में उलझी हैं कि उस घटना में प्रधान मंत्री की सुरक्षा भंग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए