धरती माँ ने जैसे अपनी गोद में सुला लिया
आकाश रूपी आँचल जैसे उसे उढ़ा दिया
समझती हो जैसे, उसका बेटा थक गया
पेड़ की टहनियों से माँ ने पंखा झल दिया
पंछियों की चहचाहट जैसे लोरी सुना रही हो
ठंडी हवा जैसे उसकी पीठ थपथपा रही हो
जैसे कल की फिक्र से अनभिज्ञ रहकर
शायद आज मे जीने का हुनर सीखकर
सिरहाने पादुकाओं का तकिया लगाकर
धूल की परत को मानो चादर बनाकर
जैसे कोई योगी तप में लीन हो गया हो
जैसे कोई बच्चा माँ की गोद सो गया हो
सूर्य की किरणें जैसे अठखेलियां कर रही
पत्तों से छिपकर जैसे चहरे को पढ़ रही
अचंभित थी, जैसे चिंतारहित भाव देखकर
कुछ भी न हो, फिर भी माला-माल देखकर
जैसे साधन सम्पन्न लोगो को जला रहा हो
नींद मोहताज नहीं बिस्तर की जता रहा हो
बिना अलार्म घड़ी के ही फिर वो जग गया,
तस्ला- फावड़ा उठा अपने काम में रम गया
जैसे सुकून मन में हो आज मजदूरी मिल गयी
संध्या चूल्हा जलने की व्यवस्था जो हो गयी
दिल में धन्यवाद भाव था, शायद राम के लिए
खुद खुश हो, अपनी चिंता का भार राम को दिए