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श्री हनुमान जी –रामचरित मानस v/s वाल्मीकि रामायण

27 मार्च 2024

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 हनुमानजी के भक्तों ने शायद ही कभी ध्यान दिया हो कि राम चरित मानस में हनुमान जी के जो
गुण चरितार्थ किए गए हैं, वे मुख्यत: शक्ति, भक्ति(श्रीराम की) और आज्ञा पालन हैं। क्योंकि इन सब गुणों को कठिन कार्यों के लिए उपयोग किया गया है, अत: उनका नाम संकट मोचन पड़ा ।  

परंतु वाल्मीकि रामायण में कई स्थानों पर हनुमान जी की बुद्धि, बोलने की कला और diplomacyका प्रचुर वर्णन है, जिसे पढ़ कर भक्तों कि भक्ति भावना व प्रसन्नता और बढ़ सकती हैं। उदाहरण के लिए: 

1. ऋश्यमुक पर्वत पर: 

पहली बार जब छुपे हुए सुग्रीव को राम लक्ष्मण के बारे में बताया जाता है, तो सुग्रीव डरते हैं कि ये कहीं बालि (वाल्मीकि रामायण में वाली ) के गुप्तचर न हों। उनके अन्य यूथपति भी उन्हे घेर कर खड़े  हो गए।  तब हनुमान जी ने सुग्रीव को कहा कि: 

· पहली बात तो यहाँ (इस मलय पर्वत पर) वाली के आदमी प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इसलिए
घबराहट को छोड़ कर सोचिए। 

· वानरोचित चपलता के कारण आप अपने विचार स्थिर नहीं रख पा रहे हैं। 

· बुद्धि और विज्ञान से सम्पन्न हो कर ही स्थिति को समझें और आवश्यक कार्य करें। 

 इत्यादि। ऐसे शब्द अपने राजा को बोलने में कितना व्यवहार कुशल होना होता है, यह तो सभी जानते हैं। 

 2.     ब्राह्मण रूप में वनवासी श्रीराम व लक्ष्मण से मिलने का वार्तालाप भी बहुत रोचक है और फिर मित्रता का उन्होने (हनुमान जी ने ) स्वं ही मित्रता का प्रस्ताव रख दिया। 

इसके पश्चात श्रीराम ने लक्ष्मण से मंत्रणा में कहा कि इनके सुंदर वार्तालाप से स्पष्ट है कि ये वेदों और व्याकरण के
ज्ञाता है (ज्ञान गुण सागर);  इन का संभाषण दोष रहित है और इनहोने बहुत थोड़े शब्दों में ही सारी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अत: इनसे वार्तालाप करो।  

3.      सुग्रीव का भोग विलास में श्रीराम का कार्य भुलने पर हनुमान जी ने ही उन्हे याद दिलाया उनका ‘धर्म’। इस वार्तालाप में उन्होने कई बुद्धियुक्त तर्कों का प्रयोग बड़ी उपयुक्त भाषा में किया। 

4.      लक्ष्मण जी जब क्रोध से भरे सुग्रीव को ‘जगाने’ आते हैं और सुग्रीव बहुत घबराहट में हैं;  

तब हनुमान जी ने ही सुग्रीव को उचित मंत्रणा दी और श्रीराम से क्षमा मांगने की भी सलाह दी।   

 ऐसा कई अन्य स्थानों पर भी है जैसे अशोक वाटिका में सीताजी से अपना परिचय देना (कि वे भय के कारण उन्हे कोई मायावी राक्षस न समझ लें), रावण को अपना परिचय देना;विभीषण को अपनी तरफ मिला लेने की मंत्रणा देना जबकि अन्य सभी इसके विरुद्ध थे।इत्यादि। 

अभी इतना ही । अन्य घटनाओं का संक्षिप्त विवरण क्रम से जोड़ा जाएगा।  

वीरेंद्र   

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सुंदर लिखा है आपने सर 👌👌👌आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏🙏

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