अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण, विश्वासघाती और अपमानजनक, राज्य-विस्तार की नीतियों के साथ ही भारतीय और अंग्रेज सैनिकों में भेदभाव का व्यवहार जब चारों ओर फैला तो जनमानस में भारी असंतोष उत्पन्न हुआ तो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का जन्म हुआ। महासंग्राम का नेतृत्व नाना साहेब पेशवा ने अपने प्रमुख सहयोगी अजीमुल्लाखाँ के साथ बड़ी दूरदर्शिता और चतुराई से करने की योजना बनायी, जिसमें उनके द्वारा ३१ मई १८५७ का दिन निश्चित कर अंगेजों को जब वे प्रार्थना के लिए गिरजाघर में हों, वही समाप्त करने की थी, इसके लिए उन्होंने देश भर में अपने हज़ारों प्रचारकों को फ़कीर, मौलवी,ब्राह्मण, संन्यासी, जादूगर, बहुरुपिया, ज्योतिषी आदि के रूप में भेजकर एकजुट रहने के लिए तैयार रहने को कहा। लेकिन उनकी योजना नियत तिथि से पहले ही एक स्वाभिमानी सिपाही मंगल पाण्डेय ने कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी लगी होने की बात सुनने के बाद भंग कर दी, जिसमें उसने विरोध स्वरुप मेजर जनरल ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बैंक को गोली मार दी। जिसके कारण उसे फांसी पर लटका दिया गया। इस नायक के बाद बहादुर शाह जफ़र ने मोर्चा सम्हाला लेकिन अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति से उन्हें बंदी बनाकर दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया। इसके बाद १८५७ में रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी झाँसी के लिए तात्या टोपे के साथ ऐसा महान पराक्रम दिखाया कि वह भारत के स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम के नाम से इतिहास में अंकित हुआ।
१८५७ के स्वाधीनता संग्राम में महानायकों की वीरता और बलिदान से आने वाली पीढ़ियों को आजादी के संघर्ष के लिए मर मिटने की प्रेरणा व देशप्रेम का सन्देश मिला। जिसने कई नायकों को जन्म दिया, जिन्होंने राजनैतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और सामाजिक स्तर से जनजागरण किया। सामाजिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, महामना मदनमोहन मालवीय, अरविंद घोष, स्वामी रामतीर्थ का योगदान अतुलनीय रहा तो साहित्य में वीर सावरकर, सुब्रह्मण्य भारती, बंकिमचंद्र चटर्जी, मुंशी प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी लेखनी से अलख जगाया। स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों में वासुदेव बलवंत फड़के के नाम अग्रणी है, जिन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध श्री गोविन्द रानाडे के स्वदेशी भाषणों को सुनकर देश के युवाओं में फैलाया और उन्हें एकजुट होकर लड़ने के लिए प्रेरित किया।
आजादी के नायकों की यदि हम बात करें तो इसमें मुख्यत: दो तरह के वीर सपूत थे, जिसमें एक थे राजनीतिक तो दूसरे क्रांतिकारी। जिनके अथक प्रयास से ही हमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिल सकी। राजनीतिक प्रयास में हम जिन महानायकों को योगदान को कभी नहीं भुला सकते हैं, उनमें पहले आते हैं- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जिनका नारा था "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसको लेकर रहेंगे " दूसरे थे लाला लाजपत राय, तीसरे थे स्वदेशी आंदोलन के प्रेणता गोपाल कृष्ण गोखले और फिर नई चेतना जगाने वाले महात्मा गांधी जी 'बापू', जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस।
क्रांतिकारी नायकों में चाफेकर बंधू, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, विनायक दामोदर सावरकर, वीर सावरकर, मदन लाल धींगरा, अरविन्द घोष, चंद्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह आदि।