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साथी

14 फरवरी 2022

10 बार देखा गया 10

उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी।

(1)

सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को,

किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।

उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,

दबी तेरे लहू में रौशनी की धार है साथी।

(2)

पड़ी थी नींव तेरी चाँद-सूरज के उजाले पर,

तपस्या पर, लहू पर, आग पर, तलवार-भाले पर।

डरे तू नाउमींदी से, कभी यह हो नहीं सकता।

कि तुझ में ज्योति का अक्षय भरा भण्डार है साथी।

(3)

बवण्डर चीखता लौटा, फिरा तूफान जाता है,

डराने के लिए तुझको नया भूडोल आता है;

नया मैदान है राही, गरजना है नये बल से;

उठा, इस बार वह जो आखिरी हुंकार है साथी।

(4)

विनय की रागिनी में बीन के ये तार बजते हैं,

रुदन बजता, सजग हो क्षोभ-हाहाकार बजते हैं।

बजा, इस बार दीपक-राग कोई आखिरी सुर में;

छिपा इस बीन में ही आगवाला तार है साथी।

(5)

गरजते शेर आये, सामने फिर भेड़िये आये,

नखों को तेज, दाँतों को बहुत तीखा किये आये।

मगर, परवाह क्या? हो जा खड़ा तू तानकर उसको,

छिपी जो हड्डियों में आग-सी तलवार है साथी।

(6)

शिखर पर तू, न तेरी राह बाकी दाहिने-बायें,

खड़ी आगे दरी यह मौत-सी विकराल मुँह बाये,

कदम पीछे हटाया तो अभी ईमान जाता है,

उछल जा, कूद जा, पल में दरी यह पार है साथी।

(7)

न रुकना है तुझे झण्डा उड़ा केवल पहाड़ों पर,

विजय पानी है तुझको चाँद-सूरज पर, सितारों पर।

वधू रहती जहाँ नरवीर की, तलवारवालों की,

जमीं वह इस जरा-से आसमाँ के पार है साथी।

(8)

भुजाओं पर मही का भार फूलों-सा उठाये जा,

कँपाये जा गगन को, इन्द्र का आसन हिलाये जा।

जहाँ में एक ही है रौशनी, वह नाम की तेरे,

जमीं को एक तेरी आग का आधार है साथी।

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रचनाएँ
सामधेनी
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'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
1

अचेतन मृत्ति, अचेतन शिला

14 फरवरी 2022
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(1) रुक्ष दोनों के वाह्य स्वरूप, दृश्य-पट दोनों के श्रीहीन; देखते एक तुम्हीं वह रूप जो कि दोनों में व्याप्त, विलीन, ब्रह्म में जीव, वारि में बूँद, जलद में जैसे अगणित चित्र। (2) ग्रहण क

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तिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई

14 फरवरी 2022
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तिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई। ’हवा में कब तक ठहरी हुई रहेगी जलती हुई मशाल? थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर, सकेगा इसको कौन सँभाल?’ अनल-गिरि पर से मुझे पुकार, राग यह गाता है कोई। ह

3

निःशेष बीन का एक तार था मैं ही

14 फरवरी 2022
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(1) ओ अशेष! निःशेष बीन का एक तार था मैं ही! स्वर्भू की सम्मिलित गिरा का एक द्वार था मैं ही! तब क्यों बाँध रखा कारा में? कूद अभय उत्तुंग शृंग से बहने दिया नहीं धारा में। लहरों की खा चोट गरजता;

4

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है

14 फरवरी 2022
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वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है। (1) चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से; चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण-चिह्न जगमग-से। शुरू हुई आराध्य-भ

5

बटोही, धीरे-धीरे गा

14 फरवरी 2022
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बटोही, धीरे-धीरे गा। बोल रही जो आग उबल तेरे दर्दीले सुर में, कुछ वैसी ही शिखा एक सोई है मेरे उर में। जलती बत्ती छुला, न यह निर्वाषित दीप जला। बटोही, धीरे-धीरे गा। फुँकी जा रही रात, दाह से झ

6

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

14 फरवरी 2022
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है। जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ? मैं चुका हूँ देख मनु को

7

जा रही देवता से मिलने?

14 फरवरी 2022
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जा रही देवता से मिलने? तो इतनी कृपा किये जाओ। अपनी फूलों की डाली में दर्पण यह एक लिये जाओ। आरती, फूल, फल से प्रसन्न जैसे हों, पहले, कर लेना, जब हाल धरित्री का पूछें, सम्मुख दर्पण यह धर देना।

8

अन्तिम मनुष्य

14 फरवरी 2022
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सारी दुनिया उजड़ चुकी है, गुजर चुका है मेला; ऊपर है बीमार सूर्य नीचे मैं मनुज अकेला। बाल-उमंगों से देखा था मनु ने जिसे उभरते, आज देखना मुझे बदा था उसी सृष्टि को मरते। वृद्ध सूर्य की आँखों

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हे मेरे स्वदेश!

14 फरवरी 2022
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छिप जाऊँ कहाँ तुम्हें लेकर? इस विष का क्या उपचार करूँ? प्यारे स्वदेश! खाली आऊँ? या हाथों में तलवार धरूँ? पर, हाय, गीत के खड्ग! धार उनकी भी आज नहीं चलती, जानती जहर का जो उतार, मुझ में वह शिखा

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अतीत के द्वार पर

14 फरवरी 2022
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'जय हो’, खोलो अजिर-द्वार मेरे अतीत ओ अभिमानी! बाहर खड़ी लिये नीराजन कब से भावों की रानी! बहुत बार भग्नावशेष पर अक्षत-फूल बिखेर चुकी; खँडहर में आरती जलाकर रो--रो तुमको टेर चुकी। वर्तमान का

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प्रतिकूल

14 फरवरी 2022
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(1) है बीत रहा विपरीत ग्रहों का लग्न-याम; मेरे उन्मादक भाव, आज तुम लो विराम। उन्नत सिर पर जब तक हो शम्पा का प्रहार, सोओ तब तक जाज्वल्यमान मेरे विचार। तब भी आशा मत मरे, करे पीयूष-पान; वह जिये

12

आग की भीख

14 फरवरी 2022
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(1) धुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा। कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है; मुँह को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है? दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे,

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दिल्ली और मास्को

14 फरवरी 2022
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(1) जय विधायिके अमर क्रान्ति की! अरुण देश की रानी! रक्त-कुसुम-धारिणि! जगतारिणि! जय नव शिवे! भवानी! अरुण विश्व की काली, जय हो, लाल सितारोंवाली, जय हो, दलित, बुभुक्षु, विषण्ण मनुज की, शिखा रुद्र

14

सरहद के पार से

14 फरवरी 2022
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जन्मभूमि से दूर, किसी बन में या सरित-किनारे, हम तो लो, सो रहे लगाते आजादी के नारे। ज्ञात नहीं किनको कितने दुख में हम छोड़ चले हैं, किस असहाय दशा में किनसे नाता तोड़ चले हैं। जो रोयें, तुम उन्ह

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फलेगी डालों में तलवार

14 फरवरी 2022
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(1) धनी दे रहे सकल सर्वस्व, तुम्हें इतिहास दे रहा मान; सहस्रों बलशाली शार्दूल चरण पर चढ़ा रहे हैं प्राण। दौड़ती हुई तुम्हारी ओर जा रहीं नदियाँ विकल, अधीर करोड़ों आँखें पगली हुईं, ध्यान में झ

16

जवानी का झण्डा

14 फरवरी 2022
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घटा फाड़ कर जगमगाता हुआ आ गया देख, ज्वाला का बान; खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! (1) सहम करके चुप हो गये थे समुंदर अभी सुन के तेरी दहाड़, जमीं हिल रही थी, जहाँ हिल रहा था,

17

जवानियाँ

14 फरवरी 2022
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नये सुरों में शिंजिनी बजा रहीं जवानियाँ लहू में तैर-तैर के नहा रहीं जवानियाँ। (1) प्रभात-श्रृंग से घड़े सुवर्ण के उँड़ेलती; रँगी हुई घटा में भानु को उछाल खेलती; तुषार-जाल में सहस्र हेम-दीप बालती,

18

जयप्रकाश

14 फरवरी 2022
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झंझा सोई, तूफान रुका, प्लावन जा रहा कगारों में; जीवित है सबका तेज किन्तु, अब भी तेरे हुंकारों में। दो दिन पर्वत का मूल हिला, फिर उतर सिन्धु का ज्वार गया, पर, सौंप देश के हाथों में वह एक नई तल

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राही और बाँसुरी

14 फरवरी 2022
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राही सूखी लकड़ी! क्यों पड़ी राह में यों रह-रह चिल्लाती है? सुर से बरसा कर आग राहियों का क्यों हृदय जलाती है? यह दूब और वह चन्दन है; यह घटा और वह पानी है? ये कमल नहीं हैं, आँखें हैं; वह बादल

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साथी

14 फरवरी 2022
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उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी। (1) सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को, किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को। उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती, दबी तेरे लहू में रौशनी की धार

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