जब वे न पास हों, तुम आते हो!
जब वे पास हों, चले जाते हो!!
शर्म इतनी कि शर्म भी शर्माए,
अपने साये से भी शर्माते हो!!!
पास नहीं- छटक दूर जाते हो तुम,
इशारों-इशारों से मुझे भगाते हो!
रक़ीब नहीं, पर मेहरबां हो कर,
क्यों (?) बिना बात यूँ जलाते हो!!
मैं जब मुख़ातिब तो चुप होते,
मैं सो जाऊँ तब बात करते हो!!!
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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