आज झूम - झूम प्रगति के गीत गाना है
अवतरण हुआ प्रभु का, कथा सुनाना है
प्रथम महासंभूति सदाशिव जब आए थे
मानव समाज में मानव पशुवत् छाए थे
तंत्र साधना दे अध्यात्मिकता का परचम लहराया
बुद्धिहीन मानव को ज्ञान दिया बुद्धिजीवी बनाया
दानव समस्त धरातल पर छा अत्याचार तब करते थे
अतिक्रमण कर नारी को भोग सामग्री वे समझते थे
शिव ने प्रथम अंतरजातीय विवाह कर एक परिवार बसाया
सात्विक आहार, विचार और व्यवहार, यम - नियम बताया
ऐसा लगा मानो कैलाश पर्वत शिखर पर स्वर्ग उतर आया
सभ्यता का विकाश, वह अद्भुत क्रांतिकारी शुभयुग संधी थी
देवों का तीर्थ यहीं- धरा धाम बन ब्रह्माण्ड में सजी सँवरी थी
पाँच हजार वर्षों प्रगति हुई, आर्यावर्त भू खण्ड पर उभरा
शैन: - शैन: पुन: पशुवत् राक्षसों का टिड्डिदल था बिखरा
द्वितीय महासंभूति कृष्ण- अमावस्या की रात, चुपके से आये
मथुरा-वृंदावन के चितचोर बरसाना में लीला- फाग रास रचाये
कंस-कालिया दैत्यों का वध कर द्वारिकाधीश महाभारत रचाए
कुरुक्षेत्र में चला सुदर्शन चक्र- अधर्म कुचल धर्म ध्वज फहराए
अनगिनत मुक्त आत्मायें अवतरित हो समय समय पर यहाँ आए
कोई तीर्थंकर- कोई पैगंबर बन सुनीति- सुपथ जन जन को बतलाए
जातिवाद का कुचक्र चला, मुगल फिरंगी आर्यावर्त को लधु बनाए
अनैश्वरवादियों- पुंजिपतियों ने जब फुफकार फण फिर था ताना
तृतीय महासंभूति का धर्मस्थापनार्थ हुआ तब अवरतरण- आना
आज पूर्णिमा के दिन, महामारी फैली, हजारों जन साधु संत मरे थे
प्रयागराज महानद में स्नान- ध्यान के तब से भारत में नियम बने थे
धर्म के नाम पर शोषण अनियंत्रित हुआ, दमन चक्र त्वरित था
कुटील राजनीति का चहुँओर कुचक्र- साधु मरे, अमीर पला था
१९२१ बैशाखी पूर्णिमा थी, बिहार के जमालपुर में प्रभात रंजन आए
आनंद मूर्ति भक्तों को विराट रूप दरसा
१९५५ में आनंद परिवार बनाए
"मानव मानव एक है" का नारा पृथ्वि पर छाया
विश्व बँधुत्व कायम हो सुन अनैतिक थर्राया
सात्विता और तंत्र विज्ञान फिर से जन जन में छाया
५० खेप, विप्लव का संकेत अब कोरोना है लाया
तारक ब्रह्म सदा अपना काम प्रकृति से है करवाया
यक्ष किन्नरों, ग्वालों और बानरों को निमित्त बनाया
आज नूतन पृथ्वि हेतु शक्ति संपात हुआ है
हर शहर गाँव राज पथ सुनसान वीरान हुआ है
हिंसामुक्त स्वच्छ विश्व उभर कर शिध्र हीं आएगा
भारत विश्व गुरु बन विप्रों से अर्थनीति चलवाएगा
हर घर समृद्धि पा, कर्मठ बन जाएगा
स्वस्तिक ध्वज हर घर पर लहरायेगा
डॉ. कवि कुमार निर्मल