"खोई यादें"
अपनों का काफ़िला संग चुपचाप चल रहा
अकेला पड़ गया गर्दिशों में जो, वो रो रहा
हम अलविदा कह रुख्सत जब हो जाएंगे
किताबों के पन्नों में सिमट सब रह जाएंगे
अफसोस कर कहेगा आने वाला जमाना
दीमक और सीलन से पन्ने बिखर- उड़ रहे
यादों में न उलझ, नई डगर पे सब चल रहे
डॉ. कवि कुमार निर्मल