प्रयागराज महातीर्थ के पं. ब्रजनाथ व मूनादेवी बढ़भागी,
25 दिसम्बर 1861 को मालवीय जी का जन्म हुआ था।
सात भाई बहनों में पाँचवें सुपुत्र, परिवार सुखी संपन्न था।
मध्यदेश मालवा से प्रयाग आये पूर्वज मालवीय कहलाये।
ब्रजनाथजी संस्कृत प्रकाण्ड विद्वान, श्रीमद्भागवत वाचक थे।
५ वर्ष आयु में प. हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में ज्ञान लिये थे।
माध्यमिक शिक्षा, प्रयाग की विद्यावर्धिनी सभा में शारदे श्रेष्ठ बने थे।
इलाहाबाद मुख्यालय विद्यालय में मकरन्द उपनाम से पद्य लिखे थे।
कवितायें पत्र-पत्रिकाओं में छपती, लोकप्रिय काव्यकार बने थे।
1879 में उनका म्योर सेण्ट्रल महाविद्यालय के विद्यार्थी रहे थे।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उच्च मैट्रीकुलेशन उत्तीर्ण हुए थे।
हैरिसन छात्रवृत्ति पा ये कलकत्ता से 1884 में स्नातक हुए थे।
देशभक्त रामपाल सिंह के विनय पर हिन्दुस्तान का सम्पादन किये।
ढाई साल जन जागरण 'इण्डियन ओपीनियन' में हाथ बँटाये।
1907 ई. में साप्ताहिक अभ्युदय का सम्पादित कर शंखनाद् किये।
'पायोनियर' के उत्तर में 1909 में लीडर पत्रिका से लोकमत जुटाये।
1924 ई. में दिल्ली 'हिन्दुस्तान टाइम्स' को सुव्यवस्थित किये।
सनातन धर्म को गति हेतु लाहौर से विश्वबन्द्य जैसे पत्र चलाये।
हिन्दी के उत्थान में इनकी भूमिका अभूतपूर्व ऐतिहासिक थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का नेतृत्व मकरंद तथा झक्कड़सिंह की चर्चा थी।
रसात्मक काव्यकारश्रेष्ट, देवनागरी हिन्दी भाषा की प्रविष्टि थी।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन की प्रथम सभा 1910 के अध्यक्ष बने थे।
फारसी-अरबी का बोझ बुरा तो संस्कृत शब्दों से गूँथना त्रुटी होगी।
भविष्यवाणी इनकी थी कि एक दिन हिंदी भाषा राष्ट्रभाषा होगी।
1919 उद्धोष हिन्दी उर्दू धर्म का नहीं, राष्ट्रीयता है, प्रश्न उठाये।
प्रान्तीय भाषाओं के विकास के साथ हीं हिन्दी को हम अपनायें।
जिस भाँति अंग्रेजी विश्वभाषा हुई, हिन्दी को भी वैश्विक बनायें।
गाँधि के महामना ने हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को लक्ष्य बनाये।
हिंदु- महासभा विश्वविद्यालय काशी संस्थापक की जयंति मनायें।
सत्यमेव जयते महामना हुंकृति कर भारत हिंद है परचम् फहरायें।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल ©®