【१】
गुमान हम भी करते हैं मगर,
शरहदों का फ़ासला संगीन है।
आजमाईश अधूरी बुरी फितरत,
फिसलती चट्टानों पर चला करते हैं।
लड़खड़ा जाएं गर चे थाम लेना,
मदहोशी में अंजाम गज़ब करते हैं।।
【२】
आँख बंद कर अँगुलियां हरकत करें।
खुशबुओं का नशा- नाउम्मीद ना करें।
नाउम्मीद ना करें, मुक़ाम चल कर आये,
टूटी पँखुड़ियां मुस्कुरा खिल दमक जायें।।
【३】
झिंगुर भौंरों का खेल निराला।
चल रही बे रोक टोक माला।।
उमरत लगती जब हाला,
ख़्वाबों का शिलशिला टाला;
शिलशिला टाला, सुबहा हो रही।
मयपन की कमजोर दीवार ढह रही।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल